Electoral Bond Scheme, SC ON Electoral Bond, Electoral Bond Explain in Hindi: भारत की सभी राजनितिक पार्टियां एक ओर जहाँ लोक सभा चुनाव के प्रचार-प्रसार में जुटी हुई हैं. वहीं, Electoral Bond मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक बड़ा फैसला दिया गया है. सुचना के अधिकार के उलंघन का जिक्र करते हुए SC ने Electoral Bond से चंदा लेने पर तत्काल रोक लगा दिया है.
गुरूवार 15 फरवरी को 5 जजों की बेंच (चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा) ने यह अहम् फैसला सुनाते हुए कहा कि राजनितिक प्रक्रिया में भाग ले रहे सभी दल अहम यूनिट होते हैं। पॉलिटिकल फंडिंग की जानकारी, वह प्रक्रिया है, जिससे मतदाता को वोट डालने के लिए सही चॉइस मिलती है। वोटर्स को चुनावी फंडिंग के बारे में जानने का अधिकार है, जिससे मतदान के लिए सही चयन होता है। बता दें कि इस मामले में 6 मार्च तक सभी दलो को इलेक्टोरल बांड का हिसाब सौंपना है.
इलेक्टोरल बॉन्ड क्या होता है?
What is Electoral Bond, Electoral Bond explain in Hindi: इस रिपोर्ट में बार-बार एक नाम का जिक्र किया जा रहा है. “ Electoral Bond”. आईए सबसे पहले इसके बारे में जानते हैं. तो, इलेक्टोरल बॉन्ड किसी भी धारक को बिना किसी ब्याज दर के पोलिटिकल पार्टियों को दिया जाने वाला दान है. आसान भाषा में, इस प्रक्रिया के जरिए कोई भी आम व्यक्ति अथवा कॉर्पोरेट संस्था किसी भी राजनितिक दल को अपने मन मुताबिक दान कर सकती है. सरकार द्वारा 2018 में इस चुनावी बॉन्ड यानी इलेक्टोरल बॉन्ड को लागू किया गया.
रिपोर्ट्स के मुताबिक़, स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच से इस बॉन्ड को कोई भी खरीद सकता है. और अपने मन से किसी भी राजनैतिक दल को दान दे सकता है. बता दें कि बॉन्ड धारक एक हज़ार से एक करोड़ तक का बांड खरीद सकता है. जिसके धारक को अपने KYC की पूरी डिटेल्स बैंक को सुपुर्द करनी होगी. इसके धारक अपने पसंद के किसी भी दल को अपने चुने हुए रकम की बॉन्ड दान क्र सकता है. बसर्ते, वो दल दान लेने के लिए एलिजिबल हो.
जन प्रतिनिधि अधिनियम, 1951 की धरा 29ए की तहत पंजीकृत राजनितिक दल और जिन्होंने लोकसभा, राज्यसभा और विधान सभा चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम 1% वोट हाशिल किया हो, वो इस दान को ले सकते हैं. अब सवाल यह उठता है की इस पर विवाद क्यों हो रहा है?
Electoral Bond से किसे कितना दान मिला?
इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर विवाद क्यों?
Lok Sabha Elections: 2017 में, सदन में इसे पेश करते वक़्त वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि इसके आने से राजनितिक दलों को होने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी, साथ ही साथ काले धन के हेर फेर में अंकुश भी लगेगा. विवाद पारदर्शिता के नाम पर ही शुरू हुआ. विरोधियों ने यह कह कर आपत्ति जताया कि एक और सरकार पारदर्शिता की बात करती है और वहीँ दूसरी ओर, इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों की पहचान को सार्वजनिक भी नहीं किया जा रहा है. “ ये चुनाव में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकता है.”
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कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस स्कीम को बस कुछ ख़ास घरानों को ध्यान में रख कर ही लाया गया है. जिससे ये अरबपति वर्ग बिना किसी के नज़र में आए एक ही पार्टी को जितना चाहें उतना दान दे सकते हैं. विवाद जब आगे बढ़ा तो मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
कई बड़ी संस्थाओं ने बॉन्ड को बताया गलत
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
SC ON Electoral Bond, Supreme Court Verdict On Electoral Bond: योजना के पेश होने के उपरांत से ही इसकी भर्त्सना होनी शुरू हो गई. विरोध साल 2017 से शुरू हुआ लेकिन याचिका पर सुनवाई 2019 से शुरू हुई. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का सबसे पहला आदेश 12 अप्रैल, 2019 को आया. जिसमे सभी पार्टियों को 30 अप्रैल, 2019 तक एक लिफ़ाफ़े में इस बॉन्ड से जुडी सभी जानकारियों को चुनाव आयोग को सौंपने को कहा गया. लेकिन उस समय सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस योजना पर रोक नहीं लगाई गई थी.
इसके बाद याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी ADR के द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड पर रोक लगाने का आवेदन किया गया. जिसपर सुनवाई के दौरान CJI एस ए बोबडे ने मामले को साल २०२० तक टाल दिया था. जिसपर आज तक सुनवाई नहीं हुई थी। अब सुनवाई के दौरान सरकार ने इसे असंवैधानिक घोषित कर दिया है और साथ ही सभी पार्टियों से 6 मार्च तक हिसाब भी मांगा गया है.
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