भारत में बढ़ती जल समस्या का गंभीर परिणाम भुगतेगी अर्थव्यवस्था, रिपोर्ट में खुलासा

जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं किसी देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती हैं

मूडीज रेटिंग्स ने चेतावनी दी कि भारत की बढ़ती जल समस्या (WATER CRISIS) से अर्थव्यवस्था पर गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जल संकट और जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली प्राकृतिक आपदाएं किसी देश की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकती हैं। रेटिंग एजेंसी की यह चेतावनी ऐसे समय आई है जब भारत उपभोग और आर्थिक विकास के मामले में अन्य देशों की तुलना में तेजी से आगे बढ़ रहा है।

व्यवसाय और समुदाय आय में गिरावट देखेंगे

मूडीज ने भारत को Baa3 स्थिर रेटिंग दी है। यह सबसे निचली निवेश ग्रेड रेटिंग है। उनका कहना है कि भारत में पानी की कमी बढ़ती जा रही है। भारत मानसून पर बहुत निर्भर है। जल आपूर्ति में कोई भी कमी कारखानों और खेतों के संचालन को प्रभावित कर सकती है। इससे खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ेंगी। प्रभावित व्यवसाय और समुदाय अपनी आय में गिरावट देखेंगे। नागरिक अशांति भी फैल सकती है।

भारत में सबसे निचले स्तर पर

मूडीज ने भारत के लिए पर्यावरणीय जोखिमों पर एक नोट में कहा, “इससे भारत की आर्थिक वृद्धि में अस्थिरता बढ़ सकती है।” झटके के सामने अर्थव्यवस्था कमजोर हो सकती है। रेटिंग एजेंसी के मुताबिक, पानी की कमी का सबसे ज्यादा असर कोयला आधारित बिजली उत्पादन और स्टील उत्पादन पर पड़ेगा। मूडीज़ के अनुसार, भारत उन देशों में से एक है जो जल जोखिमों से सबसे अधिक प्रभावित हैं। जी-20 अर्थव्यवस्थाओं में पानी जैसी बुनियादी सेवाओं तक पहुंच का स्तर भारत में सबसे निचले स्तर पर है।

पानी की कमी की सीमा 1,000 घन मीटर

दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश भारत तेजी से आर्थिक विकास का अनुभव कर रहा है। इसके साथ ही औद्योगीकरण एवं शहरीकरण तेजी से आगे बढ़ रहा है। परिणामस्वरूप जल की उपलब्धता कम हो जाती है। मूडीज की रिपोर्ट के अनुसार, प्रति व्यक्ति औसत वार्षिक जल उपलब्धता 2021 में पहले से ही 1,486 क्यूबिक मीटर से गिरकर 2031 में 1,367 क्यूबिक मीटर होने की उम्मीद है। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार, 1,700 क्यूबिक मीटर से नीचे का स्तर पानी की कमी को दर्शाता है। पानी की कमी की सीमा 1,000 घन मीटर है।

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