Eco-Friendly Ganesh Festival Celebration 2025 – गणेश उत्सव में श्रद्धा और प्रकृति संरक्षण का संकल्प

Eco-Friendly Ganesh Festival Celebration 2025 – गणेश उत्सव में श्रद्धा और प्रकृति संरक्षण का संकल्प – गणेश उत्सव, भारत का एक अत्यंत लोकप्रिय और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध पर्व है, जिसे देशभर में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व जहां भक्तों के लिए आस्था और श्रद्धा का प्रतीक है, वहीं इसके दौरान होने वाली गतिविधियां पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव भी डाल सकती हैं,जैसे प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) की मूर्तियां, रासायनिक रंग, प्लास्टिक की सजावट, और नदी/तालाब में विसर्जित होने वाली पूजन-सामग्री। परंतु अब समय आ गया है कि हम अपनी श्रद्धा को प्रकृति-संरक्षण के साथ संतुलित करें। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि कैसे हम पूजन-सामग्री की खरीदारी से लेकर विसर्जन के बाद की प्रक्रिया तक हर कदम पर पर्यावरण का ध्यान रखते हुए ईको-फ्रेंडली गणेश उत्सव मना सकते हैं।

ईको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियां परंपरा के साथ प्रकृति की रक्षा
मिट्टी की मूर्तियां बनाम POP मूर्तियां – POP मूर्तियां जहां पानी में घुलने में वर्षों लेती हैं और जहरीले रसायन छोड़ती हैं, वहीं मिट्टी की मूर्तियां कुछ ही घंटों में घुलकर पर्यावरण को कोई हानि नहीं पहुंचातीं। स्थानीय कुम्हारों द्वारा बनाई गई मूर्तियां चुनकर न केवल पर्यावरण बचाएं बल्कि स्थानीय आजीविका को भी समर्थन दें।

बीज गणेश मूर्ति का विकल्प – इन मूर्तियों में बीजों को शामिल किया जाता है। विसर्जन के बाद इन्हें मिट्टी में रोप दिया जाता है और कुछ हफ्तों में पौधे उगने लगते हैं। यह एक प्रतीकात्मक संदेश देता है आस्था के साथ विकास, संरक्षण और संवर्धन व सृजन भी जरूरी।

सजावट और पूजन-सामग्री – प्रकृति के रंगों में श्रद्धा
ईको-फ्रेंडली सजावट के उपाय – थर्मोकोल, प्लास्टिक की सजावट के बजाय कागज़, जूट, प्राकृतिक रंग, केले के पत्ते, सूती वस्त्र, सूखी पत्तियां, फूलों की माला आदि का प्रयोग करें। री-यूज़ करने योग्य सजावट खरीदें जो हर साल काम आ सके। इसके अलावा पूजन-सामग्री की खरीदारी में ध्यान देने योग्य भी कुछ बातें हैं जैसे स्थानीय बाजारों से खरीदी गई सामग्री पर्यावरणीय दृष्टिकोण से बेहतर होती है क्योंकि यह लंबी दूरी की ट्रांसपोर्टेशन से बचाती है। प्लास्टिक में पैक सामान न लें  कागज़ के थैलों का इस्तेमाल करें।

पूजन विधि में अपनाएं हरित दृष्टिकोण – प्राकृतिक धूप-दीप और हवन सामग्री – रासायनिक धूपबत्ती और इत्र के बजाय नीम, कपूर, गाय के गोबर से बनी धूप, लौंग, इलायची, घी आदि का उपयोग करें जो शुद्धता और स्वास्थ्य दोनों के लिए लाभदायक है।

पानी की बचत – पूजन के दौरान कम जल का प्रयोग करें। मूर्ति स्नान के लिए एक ही पात्र में जल भरें और उस जल को पेड़-पौधों में डालें।

विसर्जन की वैकल्पिक विधियां नदी नहीं, घर का जल-विसर्जनएक जागरूक पहल

घरेलू विसर्जन – बाल्टी या टब में मूर्ति का विसर्जन कर सकते हैं। उसके बाद वह पानी पेड़ों में डाल सकते हैं।
इससे नदी-तालाबों में प्रदूषण नहीं होता।

सामूहिक विसर्जन केंद्र – कई शहरों में स्थानीय नगरपालिकाएँ ईको-फ्रेंडली विसर्जन टैंक स्थापित करती हैं। इनका उपयोग करके नियमित सफाई और पुनर्चक्रण संभव होता है।

पूजन-सामग्री का पुनर्चक्रण – फूलों और पत्तियों से बनाएं खाद – विसर्जन के समय फूलों, पत्तियों और अन्य जैविक सामग्री को नदी में ना डालें। इन्हें एकत्र कर घरों में वर्मी-कम्पोस्टिंग या पॉट कम्पोस्टिंग द्वारा खाद में बदला जा सकता है। फूलों से धूप, गुलाल और हर्बल रंग बनाना,सूखे फूलों से प्राकृतिक गुलाल या अगरबत्ती बनाई जा सकती है। नीम, तुलसी, गेंदा जैसे फूल/पत्तियाँ एंटीसेप्टिक गुण रखते हैं, जिन्हें औषधीय प्रयोजन में प्रयोग किया जा सकता है।

कैसे बनाएं ? खाद (Compost) – एक हवादार बाल्टी या ड्रम लें,उसमें सूखे फूल, पत्तियां, किचन वेस्ट (छिलके, चाय की पत्ती) डालें। हर परत पर थोड़ी मिट्टी या गोबर की खाद डालें , इसे ढक कर रखें और हर 4-5 दिन में हिला दें,30-45 दिनों में शुद्ध जैविक खाद तैयार हो जाएगी।

सामूहिक जिम्मेदारी – समाज और मंडलों की भूमिका
मंडल स्तर पर बदलाव – बड़े सार्वजनिक मंडल मिट्टी की मूर्तियां , सोलर लाइट्स, और वाटर ट्रीटमेंट सिस्टम अपनाएं,”No Plastic” नीति अपनाएं और भक्तों को भी जागरूक करें।

बालकों और युवाओं की भागीदारी – स्कूली बच्चों और कॉलेज के छात्रों को ईको-फ्रेंडली गणेश उत्सव प्रोजेक्ट्स में सम्मिलित करें। पोस्टर प्रतियोगिता, निबंध लेखन, नुक्कड़ नाटक के ज़रिए जागरूकता फैलाई जा सकती है।

गणेश जी से पर्यावरणीय संदेश एक प्रेरणा – भगवान गणेश को प्रकृति का संरक्षक भी माना गया है। उनका वाहन चूहा जो उनका वहां कहलाता है, उनके बड़े कान जो सबकी सुनते हैं, और उनकी सूंड जो बाधाओं को हटाती है,ये सब हमें एक सीख देते हैं कि प्रकृति, संतुलन और विवेक के साथ जीवन जिएं।

विशेष – पर्यावरण-संवेदनशील गणेश उत्सव कोई नया विचार नहीं, बल्कि हमारी पुरातन परंपरा का आधुनिक रूप है। यह आवश्यक नहीं कि श्रद्धा और पर्यावरण एक-दूसरे के विरोधी हों। बल्कि, सही सोच और जागरूकता से हम दोनों को साथ लेकर चल सकते हैं। गणेश उत्सव में प्रकृति की रक्षा करना, असल में गणपति बप्पा के प्रति हमारी सच्ची भक्ति का परिचायक है। आइए, इस वर्ष हम सब यह संकल्प लें ।

संक्षिप्त उपायों की सूची – Quick Tips
मिट्टी या बीज गणेश मूर्ति ही चुनें,
सजावट में प्लास्टिक और थर्मोकोल से बचें,
फूल-पत्तियों को नदी में ना फेंकें, खाद बनाएं,
विसर्जन के लिए घर या सामूहिक टैंक का उपयोग करें,
बच्चों और समाज को जागरूक करें,
हर साल दोबारा प्रयोग हो सकने वाली सजावट अपनाएं।

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