Dulari’s Birth Anniversary | हिंदी सिनेमा की ममतामयी ‘दुलारी’

About Actress Dulari In Hindi: अगर हम अभिनेत्री अंबिका गौतम को आपको याद करने को कहें तो शायद आप न याद कर पाएं लेकिन अगर एक सीधी सादी सी दुलारी मां को याद करने को कहें तो आपको देर नहीं लगेगी क्योंकि उनकी इसी भूमिका ने हमारे दिलों में घर कर लिया था। जब प्यार किसी से होता है (1961), मुझे जीने दो (1963), तीसरी कसम (1966), पड़ोसन (1968) और दीवार (1975) इत्यादि उनके अभिनय से सजी कुछ बेमिसाल फिल्में हैं।

Dulari’s Birth Anniversary

कैसे पड़ा दुलारी नाम | Dulari’s Birth Anniversary
दरअसल 18 अप्रैल 1928 को नागपुर महाराष्ट्र में जन्मीं दुलारी जी का असली नाम अंबिका गौतम था। वो उत्तर प्रदेश के अवध क्षेत्र की कन्याकुब्ज ब्राह्मण थीं और उनका घर का नाम राजदुलारी था पर लाड़ दुलार में धीरे धीरे केवल दुलारी ही रह गया।

कैसे आईं मायानगरी | Dulari’s Birth Anniversary
उनके पिता विट्ठलराव गौतम यूं तो डाकतार विभाग में नौकरी करते थे, लेकिन अभिनय के बहोत शौकीन थे अभिनय करने का अरमान दिल में जोश मार ही रहा था कि अभिनेत्री अरुणा ईरानी के नाना की नाटक कंपनी नागपुर आ गई बस फिर क्या था उनके अरमानों को पंख लग गए और वो अपनी नौकरी छोड़कर नाटक कंपनी में शामिल हो गए फिर उसी के साथ मुंबई आ गए। ये वक्त रहा होगा कुछ सन 1930 का।

कैसे जुड़ना हुआ अभिनय से | Dulari’s Birth Anniversary
विट्ठलराव गौतम अपने मर्ज़ी के काम में इतना रम गए कि अब उन्हें अपने घर लौटने का मन ही नहीं कर रहा था इसलिए परिवार को भी मुंबई बुला लिया ,उस वक़्त दुलारी कुछ बारह बरस की रहीं होंगी आगे की पढ़ाई करने के बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनका घर कुछ आर्थिक तंगी झेल रहा है क्योंकि नाटकों से इतनी आमदनी नहीं थी कि घर खर्च आसानी से चल जाए इसलिए दुलारी भी नाटक कंपनी ‘अल्फ़्रेड-खटाऊ’ में काम करने लगीं।


थोड़ा अनुभव होने के बाद उन्होंने और दूसरी कंपनियों के देसी नाटक और गुजराती नाटकों में भी रोल किए। इसी तरह आगे बढ़ते हुए वो पहुंची ‘बॉम्बे टॉकीज़’ जहां उन्हें 1941 की फिल्म में छोटी सी भूमिका मिल गई जिसमें वो एक सीन में, आश्रम में रहने वाली लड़की के किरदार में नज़र आयी थीं, ये भूमिका छोटी थी लेकिन फिल्म जगत को आपका परिचय कराने के लिए बड़ी थी।

इन फिल्मों की बदौलत आपको जल्द ही मिला काम | Dulari’s Birth Anniversary

इन फिल्मों के बाद उन्हें सेठ यूसुफ़ फ़ज़लभाई के ‘नेशनल स्टूडियो’ में 100 रुपए महिने की तनख्वाह पर नौकरी मिल गयी और इसी बैनर तले आपने हमें ‘रोटी’, ‘अपना पराया’ और ‘जवानी’ जैसी फिल्में दीं जिसमें उन्होंने सह अभिनेत्री के छोटे छोटे रोल निभाए थे दुलारी जी ने एक बार बताया था कि ‘फ़िल्म ‘जवानी’ में वो फ़िल्म की हिरोईन हुस्नबानो की सहेली बनी थी, जिनके साथ उन्हें एक गीत पर डांस करना था, लेकिन डांस करना उन्हें बिल्कुल भी नहीं आता था सीखने पर भी नहीं आया और ये एक ऐसी कमी थी, जो कभी पूरी नहीं हुई, मेरे करियर में रोड़े भी अटकाए और मुझे हमेशा सादे शालीन किरदारों में रहने के लिए मजबूर कर दिया।
ख़ैर बॉम्बे टॉकीज़ की ही फिल्में 1941 की बहन और 1943 की हमारी बात ने आपको फिल्म जगत में स्थापित कर दिया था और अगले कई दशकों तक वो अभिनय करती रहीं जिसमें 135 से ज़्यादा फिल्मों में चरित्र भूमिकाओं में नज़र आईं।

उनकी कुछ प्रमुख भूमिकाओं से सजी फिल्मों को हम याद करें तो | Dulari’s Birth Anniversary

एक सशक्त किरदार के साथ उन्होंने अपने अभिनय का लोहा मनवाया 1953 की फिल्म जीवन ज्योति में फिर कुछ गुजराती फ़िल्में, चुंडी अने चोखा (1957), गुणसुंदरी (1948), कार्यवर और मंगल फेरा (1948) में भी अपने अभिनय का कमाल दिखाया, उनकी कुछ और यादगार फिल्में रहीं- आंख का तारा, आखिरी डाकू, दरिंदा, आहुति, नास्तिक, दिल्लगी और दरवाज़ा।

लेकिन 1960 के दशक के अंत से लेकर 1970 के दशक के अंत तक दुलारी हमें अपनी वही दुलारने वाली मां लगती हैं जो हमारे जीवन में , रक्षक ,साथी और मार्गदर्शक की कई भूमिकाएं निभाती है। इन फिल्मों में हमें ख़ासतौर पर याद आती हैं,
पड़ोसन, जॉनी मेरा नाम और दीवार।

बात करें उनके जीवन साथी की तो | Dulari’s Birth Anniversary

आपने 1952 में साउंड रिकॉर्डिस्ट जेबी जगताप से शादी की थी और अपने घर परिवार में इतनी व्यस्त हो गई थी कि फिर नौ साल बाद रुपहले पर्दे पर वापसी की क्योंकि घर परिवार की ज़िम्मेदारियों को रियल लाइफ ही नहीं रियल लाइफ में भी वो बख़ूबी निभा रही थी।

आखिरी बार फिल्म जिद्दी में आईं नजर

साइड हिरोईन से हीरोइन और फिर मां के किरदार तक पहुंचने वाली दुलारी ने ‘आना मेरी जान मेरी जान संडे के संडे’ और ‘जवानी की रेल चली जाए’ जैसे ज़बर्दस्त हिट गीतों में भी अपने अभी ने की अलग छाप छोड़ी है। अपने शानदार अभिनय से उन्होंने फिल्मजगत की कई मशहूर मांओं के बीच अपनी जगह बनाई। दुलारी आख़री बार वो गुड्डू धनोआ द्वारा निर्देशित 1997 की फिल्म ज़िद्दी में नज़र आईं थीं ।

ज़िंदगी के आखिरी पड़ाव में मिला इंडस्ट्री का साथ | Dulari’s Birth Anniversary

जानी मानी अदाकारा होने के नाते उस वक्त पूरे फिल्म इंडस्ट्री के लोगों से उनके ताल्लुक़ात बने हुए थे इसलिए जब वो बीमार रहने लगीं तो अभिनेत्री वहीदा रहमान के कहने पर, सिने एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन ने उनके खर्चे उठाए थे।
उन्हें अल्ज़ाइमर था जिसकी वजह से वो दो साल से ज़्यादा बिस्तर पर रहीं और इसी तरह 18 जनवरी 2013 को
दुनिया से चली गईं, पर मां तो हमेशा अपने बच्चों को साथ रहती है इसी लिए अपने चाहने वालों के दिलों में वो फिल्मी पर्दे की दुलारी मां बनकर ही रहती हैं।

ममतामई कई रूप थे उनके | Dulari’s Birth Anniversary

मां जैसे उनके कोई भी रूप हो जैसे फिल्म- बहन में अस्पताल की नर्स का,
अलबेला में बहन का, तीसरी कसम में, हीरामन की भाभी का, पेइंग गेस्ट में
उमा का, पासपोर्ट में बेनी दयाल की पत्नी का, सरस्वतीचंद्र में नायक, सरस्वती चंद्र की सौतेली माँ का
पड़ोसन में, भोला की मौसी का, हक़ीक़त में अमर की माँ का, दीवार में ,चंदर की माँ और अंबा में
नानी माँ का, हर किरदार को उन्होंने अपने उम्दा अभिनय से जीवंत और यादगार बना दिया।

बिमल रॉय की देवदास में उन्होंने थोड़ा अलग किरदार भी निभाया | Dulari’s Birth Anniversary

बिमल रॉय की देवदास फिल्म में वो स्ट्रीट सिंगर के रूप में नज़र आईं, उनपर फिल्माए गए दो गीत याद करके देखिए
“आन मिलो आन मिलो श्याम संवारे” और “साजन की हो गई गोरी” आप भी खो जाएंगे उनकी भोली सी मुस्कान और मातृत्व की छांव में।

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