राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने स्वामी रामभद्राचार्य को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान किया

Draupadi Murmu, Jagadguru Rambhadracharya, Jnanpith Award, Sanskrit Literature: भारत की राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मू (Droupadi Murmu) ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन (Vigyan Bhavan) में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रख्यात संस्कृत विद्वान और साहित्यकार जगद्गुरु रामभद्राचार्य (Jagadguru Rambhadracharya) को 58वां ज्ञानपीठ पुरस्कार (Jnanpith Award) प्रदान किया। यह सम्मान उन्हें संस्कृत साहित्य (Sanskrit Literature) और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में उनके असाधारण योगदान के लिए दिया गया। समारोह में राष्ट्रपति ने स्वामी रामभद्राचार्य की साहित्यिक और आध्यात्मिक उपलब्धियों की सराहना करते हुए उन्हें एक प्रेरक व्यक्तित्व बताया।

राष्ट्रपति मुर्मू ने अपने संबोधन में कहा, “श्री रामभद्राचार्य जी ने शारीरिक दृष्टिबाधा के बावजूद अपनी अंतर्दृष्टि और दिव्यदृष्टि से साहित्य और समाज की अनुपम सेवा की है। उनकी रचनाएँ सनातन संस्कृति की अमर धरोहर हैं।” उन्होंने स्वामी जी के बहुआयामी योगदान को श्रेष्ठता का प्रेरक उदाहरण बताया।

ज्ञानपीठ पुरस्कार क्यों मिला?

जगद्गुरु रामभद्राचार्य को यह पुरस्कार उनकी संस्कृत साहित्य में गहन रचनाओं और हिंदू धर्म की साहित्यिक धरोहर को समृद्ध करने के लिए प्रदान किया गया। उन्होंने 240 से अधिक ग्रंथों की रचना की, जिनमें काव्य, टीकाएँ, और धार्मिक ग्रंथ शामिल हैं। उनकी रचनाएँ विश्व पटल पर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की महत्ता को रेखांकित करती हैं। इसके अलावा, उन्होंने सामाजिक क्षेत्र में विशेष रूप से दृष्टिबाधित और वंचित वर्गों के उत्थान के लिए महत्वपूर्ण कार्य किया।

स्वामी रामभद्राचार्य कौन हैं?

जगद्गुरु रामभद्राचार्य, जिन्हें 2015 में पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया, एक प्रख्यात संस्कृत विद्वान, कवि, और आध्यात्मिक गुरु हैं। उत्तर प्रदेश के जौनपुर में 1950 में जन्मे स्वामी जी ने बचपन में ही दृष्टि खो दी, लेकिन अपनी असाधारण स्मृति और विद्वता से संस्कृत, हिंदी, और अन्य भाषाओं में महारत हासिल की। वे तुलसी पीठ के संस्थापक और रामचरितमानस के गहन व्याख्याता हैं। उनकी रचनाएँ और प्रवचन भारतीय संस्कृति को जीवंत बनाते हैं।

इस समारोह में कई गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे, और स्वामी जी के इस सम्मान को सनातन धर्म और संस्कृत साहित्य के गौरव के रूप में देखा जा रहा है। यह पुरस्कार भारतीय साहित्य के क्षेत्र में सर्वोच्च सम्मान है, जो स्वामी जी की साहित्यिक और सामाजिक सेवा को अमर करता है।

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