Dr. Gangubai Hangal death anniversary: बड़ी शिद्दत और लगन से अपनी वशिष्ट शैली विकसित कर शास्त्रीय संगीत को अपने आला मकाम पर पहुंचा

Dr. Gangubai Hangal death anniversary

Dr. Gangubai Hangal death anniversary: मां एक शास्त्रीय गायिका थीं जिसकी वजह से समाज से उन्हें सम्मान नहीं मिला क्योंकि उस वक्त औरतों का बाहर गाना, गाना अच्छा नहीं माना जाता था फिर भी बेटी ने गायन को अपने करियर के रूप में चुना, बचपन से मां के साथ रियाज़ किया फिर जब 13 साल की हुई तब से बकायदा संगीत का प्रशिक्षण लिया, पहले कृष्णाचार्य हुलगुर, जो कि एक किन्नरी (वीणा जैसा तार वाला वाद्य) वादक थे, उन से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत के अध्ययन में एक वर्ष में साठ रचनाएँ सीखीं इसके बाद गुरु सवाई गंधर्व और दत्तोपंत देसाई से भी सीखा।

भजन और ठुमरी से शुरुआत
1945 तक वो पूरे भारत में और ऑल इंडिया रेडियो स्टेशनों के लिए गाने लगी, शुरुआत में भजन और ठुमरी सहित हल्की शास्त्रीय शैलियों का प्रदर्शन किया था, लेकिन फिर ख्याल पर ध्यान केंद्रित किया और हल्का शास्त्रीय गाने से भी इनकार कर दिया और कहा कि वह केवल राग गाएंगी, तब से वो बन गईं अपनी अलग पहचान रखने वाली, गंगूबाई हंगल जो कर्नाटक से हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की ख़याल शैली की एक भारतीय गायिका कह लाईं और अपनी गहरी, शक्तिशाली आवाज़ के लिए जानी जाने लगीं, हंगल किराना घराने से ताल्लुक रखती थीं, उनका जन्म 05 मार्च 1913 को धारवाड़ में, कृषक चिक्कुराओ नादिगर और कर्नाटक संगीत की गायिका अंबाबाई के घर हुआ था ।

केवल प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की
गंगू बाई ने वहां केवल प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की और उनका परिवार 1928 में हुबली चला गया ताकि वो हिंदुस्तानी संगीत का अध्ययन भी कर सकें, फिर क्या था गंगू बाई हंगल कर्नाटक विश्वविद्यालय के मानद संगीत प्रोफेसर के रूप में कार्य करने लगीं।
16 साल की उम्र में ब्राह्मण वकील गुरुराव कौलगी से शादी की और परिवार के दायित्वों के साथ संगीत के कर्तव्य पथ पर भी अपने फर्ज़ अदा करती रहीं।

कई पुरस्कार मिले
बड़ी शिद्दत और लगन से उन्होंने अपनी वशिष्ट शैली विकसित की, इस राह में गंगूबाई हंगल को कई पुरस्कार मिले जैसे:-
कर्नाटक संगीत नृत्य अकादमी पुरस्कार, 1962 में, पद्म भूषण , 1971 में, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार 1973 में, संगीत नाटक अकादमी फ़ेलोशिप , 1996 में और पद्म विभूषण 2002 में मिला।

गंगूभाई हंगल के नाम पर संगीत विश्वविद्यालय
सन 2008 में, कर्नाटक राज्य सरकार ने प्रस्तावित कर्नाटक राज्य संगीत विश्वविद्यालय, मैसूर का नाम गंगूभाई हंगल के नाम पर रखने का फैसला किया, इसके बाद, कर्नाटक राज्य डॉ. गंगूबाई हंगल संगीत और प्रदर्शन कला विश्वविद्यालय अधिनियम, 2009 को राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किया गया और वर्तमान में कर्नाटक राज्य डॉ. गंगूभाई हंगल संगीत और प्रदर्शन कला विश्वविद्यालय मैसूर, कर्नाटक से संचालित होता है। गंगूबाई हंगल की जन्मस्थली गंगोत्री को कर्नाटक सरकार द्वारा संग्रहालय में परिवर्तित कर दिया गया है। हुबली में डॉ. गंगूबाई हंगल गुरुकुल पारंपरिक गुरु-शिष्य परंपरा में कलाकारों को प्रस्तुतियां देने के लिए प्रशिक्षित करता है। उन्होंने अपना आखिरी संगीत कार्यक्रम मार्च 2006 में अपने करियर के 75 वें वर्ष पर दिया था अपने अमूल्य प्रयासों के ज़रिए, शास्त्रीय संगीत को अपने आला मकाम पर पहुंचा कर 21 जुलाई 2009 को 96 वर्ष की आयु में वो स्वर्ग सिधार गईं, पर अपने एक और अनमोल निर्णय के साथ,अंग दान के प्रति भी जागरूकता बढ़ाने के लिए अपनी आँखें दान कर गईं। सितंबर 2014 में, हिंदुस्तानी संगीत में उनके योगदान को याद करते हुए इंडिया पोस्ट द्वारा एक डाक टिकट जारी किया गया था।

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