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खुले बद्रीनाथ मंदिर के कपाट, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की गई पहली पूजा

Badrinath Dham Temple News In Hindi: आखिर छः महीनों के लंबे इंतजार के बाद बद्रीनाथ धाम के कपाट 4 मई को विधिवत पूजा पाठ के साथ खोल दिए गए औरे इसके साथ ही, उत्तराखंड धाम के चारों धामों में तीर्थ यात्रा प्रारंभ हो गई है। कपाट खुलने के साथ ही मंदिर में पहली पूजा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से हुई। इसके साथ ही हजारों श्रद्धालु भगवान बद्रीविशाल के दर्शन के लिए पहुंचने लगे। बद्रीनाथ धाम में आगामी छः माह तक दर्शन किए जाएंगे।

सुबह 6 बजे खुले मंदिर के कपाट

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट 4 मई को सुबह 6 बजे ही खुल गए। मंदिर के मुख्य पुजारी जिन्हें रावल कहते हैं उन्होंने गणेश वंदना के बाद ही मंदिर के पट खोल दिए। गढ़वाल की महिलाओं गढ़वाली संस्कृति के अनुरूप लोकगीत गाए। झुमौला नृत्य भी किया। जबकि गढ़वाल राइफल की बैंडों ने पारंपरिक धुने बजाई, इसके साथ ही उत्तराखंड के चारों धामों की यात्रा पूरी तरह से शुरू हो गई।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की गई पहली पूजा

मंदिर के कपाट पूरे वैदिक मंत्रोच्चार और विधि-विधान से की गई पूजा के बाद खुले। पट खोलने के बाद यहाँ पहली पूजा देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की गई। पट खुलते समय यहाँ कई बीजेपी नेताओं के साथ ही सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उपस्थित थे। उन्होंने पहली पूजा और महाभिषेक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम से की, साथ ही उन्होंने राज्य और देश के लिए सुख समृद्धि की भी कल्पना की।

पहले ही दर्शन के लिए हजारों की भीड़

मंदिर में पट खुलने के साथ ही देश के कोने-कोने से आए करीब 10 से 15 हजार श्रद्धालु मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे। आगामी दिनों में और भी ज्यादा श्रद्धालुओं के आने की संभवना है। मंदिर में पट खुलने के अवसर पर मंदिर को 15 टन फूलों से सजाया गया। इसके साथ दर्शन के लिए आए श्रद्धालुओं पर फूलों से पुष्पवर्षा भी की गई।

बद्रीनाथ धाम का महत्व

बद्रीनाथ धाम भारतवर्ष की संस्कृति में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यह हिंदू धर्म के चार प्रमुख तीर्थों में से एक है। यह मंदिर भगवान श्रीहरि विष्णु को समर्पित है। बद्रीनाथ दो शब्दों के मेल से बना है, बद्री और नाथ। बद्री या बदरी का अर्थ है बेर का वन और नाथ का अर्थ है स्वामी। माना जाता है यह वन पहले भगवान शिव का तपस्यास्थल था, जिसे भगवान विष्णु ने शिशु रूप धर के उनसे ले लिया था। माना जाता है 8-9वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा के साथ मिलकर आदिशंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से उठाकर भगवान बद्रीनाथ को पुनः स्थापित करवाया था। उनके द्वारा स्थापित जोशीमठ यहाँ अभी भी स्थित है। माना जाता है भगवान बद्रीनाथ की की पूजा 6 माह मनुष्य करते हैं और मंदिर बंद हो जाने के बाद देवलोक के देवता।

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