आपको नहीं लगता कि हमें एक दो नहीं बल्कि कई लोगों से शिकायत हो जाती है? क्यों!

न्याज़िया बेगम
मंथन। उसने ऐसा नहीं किया ,वैसा नहीं किया! जबकि ऐसा नहीं है कि वो काम हम खुद अच्छे से कर पाते हों या हो सकता हम वो, कर ही न पाए और हमसे भी किसी को शिकायत हो फिर भी ता उम्र शिकायत करते रहते हैं ,तो क्या शिकायतें होनी चाहिए और होनी चाहिए तो कब तक और किस से ?

होनी चाहिए शिकायतें

देखिए शिकायतें तो होनी चाहिए क्योंकि शिकायत होगी तभी तो वो दूर होगी लेकिन सवाल ये है कि किस से? तो शायद उससे जो इसे दूर कर सके तो ज़ाहिर है कोई अपना ही होगा जो आपकी शिकायत दूर कर सकेगा वरना गैरों को क्या ग़रज़, अब ये अपना ,अपनों में तो हो ही सकता है ग़ैरों में भी हो सकता है जिसे आपको पहचानना है और ये काम भी बहुत मुश्किल है, क्योंकि सबसे पहले हमारा परिवार आता है जिसके लिए हम दिन रात मेहनत करते हैं और अपने दायित्वों को पूरा करने कि कोशिश करते रहते हैं लेकिन कभी कभी वहां भी हमें कोई नहीं समझता जैसे ही हमारी मेहनत थोड़ी कम होती है तो हमीं से हमारी शिकायतें होनी लगती हैं कि आज आपने ये नहीं किया, आज आपने वो नहीं किया, ये कोई नहीं जानना चाहता कि आपने क्यों नहीं किया? क्या आपको कोई परेशानी थी? और ये वो हमारी सबसे पहली शिकायत होती है ,जो दूसरों की शिकायतों के बीच भी ,जस की तस बनी रहती है।

यह घर तक सीमित नही

ये केवल घर की ही बात नहीं है, ये बाहर भी होता है पर वहां हम फिर भी झेल जाते हैं ये सोचकर कि वहां तो कोई अपना नहीं है ,वहां तो हम रोज़ी रोटी की तलाश में गए हैं ,उनसे कोई खून का रिश्ता तो है नहीं,वो तो हमारा ऑफिस है या कार्यस्थल है पर आपकी परेशानी पूछने वाला उसे दूर करने वाला कभी कभी बाहर भी मिल जाता है और कभी घर पर भी और कभी कभी, कहीं नहीं ,कभी नहीं मिलता मिलता। मायूसियाँ हमें घेर लेती हैं और जब हम मजबूरी में काम करते हैं तो हमें अपने आप से भी यही शिकायत होने लगती है,जिसे हम कुछ हद तक दूर भी कर सकते हैं लेकिन दूसरों के ऊपर तो हमारा इख़्तेयार नहीं होता, उनका हम क्या करें ताकि हम भी खुश रहें और अगले को भी खुश रख सकें।

भरी दुनियांँ में करे हमदर्द की तलाश

हमारे ख़्याल से ,सबसे पहले भरी दुनियांँ में कोई हमदर्द, कोई अपना तलाश करिए जो आपको समझ सके आपकी दुख तकलीफ को समझ सके पीछे छूटी आपकी ज़िम्मेदारियों न आपको याद दिलाए ,बल्कि हो सके तो जो कमी रह गई है उन को पूरा करने की कोशिश करे, क्योंकि हर कोई थकता है और उसे ज़रूरत होती है किसी अपने की जो उसके ज़ख्मों पर हमदर्दी का मरहम लगा सके ।

आखिर में शायद हम कह सकते हैं कि शिकायतें का न होना किसी से भी नाउम्मीदी है, खुद से भी दूसरों से भी ,दर ओ दीवार भी खामोश हो जाते हैं जब वो ऐसे खूबसूरत हो जाए कि उन्हें मरम्मत की ज़रूरत न हो इसलिए शिकायतें अच्छी है पर वो जो दूर हो सकें , जिसमें ,उम्मीद हो कि कोई हमारे लिए अपनी कुछ आदतें बदल लेगा ,और हम उसके लिए कुछ खुद को बदल देंगे बस ज़रूरत होती है तो मोहब्बत और इज़्ज़त की जो एक दूसरे के दिलों में होनी चाहिए शिकायतों के बावजूद।
सोचिएगा ज़रूर इस बारे में , फिर मिलेंगे मंथन की अगली कड़ी में।

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