आप को नहीं लगता ,आज की दुनिया में हर शख़्स परेशान सा है!

न्याज़िया

मंथन। सब कुछ होते हुए भी हम जीवन का आनंद नहीं ले पाते कभी अपनी तो कभी अपनों की उलझनें हमें परेशान कर देती हैं जबकि हम या तो अपने हिस्से का संघर्ष कर चुके हैं या अभी कर रहे होते हैं फिर भी इतना हासिल कर चुके होते हैं कि सुख के चार पल हमें मिल जाएं लेकिन तब भी ये बहुत मुश्किल से नसीब होते हैं।

सब कुछ हमारी पहुंच में ही होता है

क्या ज़रूरी नहीं कि अपनी समस्याओं पे एक नज़र डाली जाए और साथ ही उन बातों पर भी ग़ौर किया जाए जो हमें खुशी देती हैं या दे सकती हैं , जिनमें से कुछ तो आपके पास ही मिल जाएंगी जिन्हें आप अनदेखा कर रहे होंगे और कुछ थोड़ा दूर होंगी जिन्हें आपको ढूंढ के लाना होगा ,जिन्हें वक़्त पे ढूंढना बहोत ज़रूरी है क्योंकि यही हैं जो हमारी बेचौनी हमारी उलझनों को कम कर सकती हैं ।

छोटी-छोटी परेशानियां ही एक दिन बड़ी हो जाती हैं

यूं तो सबकी परेशानी या ग़म में शामिल होना अच्छा होता है भले ही वो हमारे अपने हों या पराए ,उनको ढांढस बंधाना भी ठीक है लेकिन अगर आप के इख़्तेयार में है उसका हल निकलना तो उसे जड़ से उखाड़ फेंकना भी ज़रूरी है क्योंकि
रोज़ मर्रा की छोटी मोटी परेशानियां ही नज़र अंदाज़ करने से एक दिन बड़ी हो जाती हैं इसलिए अपनी या अपनों से जुड़ी हर परेशानी को वक़्त पे सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए और अगर उसका हल न मिले तो उसे एक खूबसूरत मोड़ पे छोड़ना अच्छा है ताकि आप जब भी उस राह से गुज़रे एक ख़ुशी का एहसास ही हो ग़म का नहीं ।

कभी-कभी कुछ ग़म या तकलीफें बेवक़्त आ जाती हैं

यूं तो कुछ ग़मों का आना भी वक़्त और हालात के साथ लाज़मी है जिनमें वक़्त ही मरहम लगाता है हमें ढांढस बंधाता है लेकिन जो ग़म बेवक़्त आ जाते हैं वो हमें सदमा दे जाते हैं,तोड़ के रख देते हैं इसलिए ये याद रखना ज़रूरी है कि ज़िंदगी और मौत का कोई भरोसा नहीं है ,कब शुरू हो जाए और कब खत्म तो ये सोचकर हर पल को जी भर के जीना ही चाहिए , किसी से कोई गिला शिकवा हो तो उसे घर न करने दें शिकायत करें लड़े झगड़े और दिल से निकाल दें यही बेहतर है।

ये दुनिया फ़ानी हैं

एक दिन सब खत्म हो जाएगा, हम सब मिट जाएंगे जैसे आए थे वैसे ही खाली हांथ चले जाएंगे तो चिंता किस बात की अगर हम अपने दम पर कुछ अपने ,अपनों को देना चाहते हैं तो क्यों न कुछ ऐसा उपहार दें जो सदा रहे और शायद इस तरह का प्रेम से बड़ा कोई और तोहफा नहीं है जो उन्हें जुड़ना सिखाए ,अलग होना नहीं , ऐसे कुटुंब की छाया उन्हें दिलाए जिससे उन्हें हिम्मत मिले अपनी मुश्किलों से लड़ने की या किसी का सहारा बनने की और खुश रहने की ,जो हम चाहते हैं। ग़ौर ज़रूर करिएगा इस बात पर फिर मिलेंगे आत्म मंथन की अगली कड़ी में धन्यवाद।

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