के.जे. येसुदास के दिव्य सुर

न्याजिया बेगम

k.j. yesudas biography in hindi: दक्षिण भारतीय फिल्मों में अपनी खास जगह बनाने के बाद, 70 के दशक में बॉलीवुड में मो रफ़ी और किशोर कुमार जैसे गायकों के बीच एक ऐसी आवाज़ गूंजी जिसे गणगंधर्वन या एक दिव्य गायक के रूप में पहचान मिली
और जो गीत उनकी आवाज़ में ढलकर सबकी जुबां पर चढ़ गया वो था “जानेमन जानेमन तेरे दो नयन ” फिल्म छोटी सी बात से, बेशक आप हमारा इशारा समझ गए होंगे हम बात कर रहे हैं कट्टाससेरी जोसेफ येसुदास की जिन्हें केजे येसुदास भी कहते हैं ।
हालांकि उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए 1971 में जय जवान जय किसान के लिए अपना पहला गाना गाया था, लेकिन रिलीज़ पहले हुई फिल्म छोटी सी बात, अपने छह दशकों के करियर में आपने मलयालम , तमिल , कन्नड़ , तेलुगु , तुलु , हिंदी , ओडिया , बंगाली , मराठी के साथ-साथ अरबी , अंग्रेजी , लैटिन और रूसी सहित विभिन्न भारतीय भाषाओं में 50,000 से अधिक गाने रिकॉर्ड किए हैं।
आपने 70 और 80 के दशक के दौरान कई मलयालम फ़िल्मी गीतों की रचना भी की है। हर कलाकार का सपना होता है राष्ट्रीय पुरस्कार पाने का और येसुदास ने सर्वश्रेष्ठ पुरुष पार्श्वगायक का राष्ट्रीय पुरस्कार एक बार नहीं आठ बार जीता तो वहीं फिल्मफेयर पुरस्कार दक्षिण में पांच बार और सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक का राज्य पुरस्कार तैंतालीस बार हासिल किया, जिसमें केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल की राज्य सरकारों द्वारा दिए गए पुरस्कार शामिल हैं। कला के प्रति उनके योगदान के लिए भारत सरकार ने 1975 में आपको पद्मश्री और , 2002 में पद्म भूषण से नवाज़ा 2017 में आपको दूसरे सबसे बड़े नागरिक पुरस्कार पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। फिर मलयालम सिनेमा उनके योगदान को कैसे भूल सकता था तो
2005 में, उन्हें मलयालम सिनेमा में योगदान के लिए केरल सरकार के सर्वोच्च सम्मान जेसी डैनियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया । और 2011 में सीएनएन-आईबीएन उत्कृष्ट उपलब्धि पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनके अलावा भी इतने अवॉर्ड आपके नाम हैं कि 30 साल पहले ही उन्होंने कह दिया था कि अब मुझे किसी सम्मान की आवश्यता नहीं है नए कलाकारों को अवसर मिलना चाहिए।


कुछ और उपलब्धियों की बात करें तो 2006 में उन्होंने चेन्नई के एवीएम स्टूडियो में एक ही दिन में चार दक्षिण भारतीय भाषाओं में 16 फिल्मी गाने गाए। केरल के कोच्चि में लैटिन कैथोलिक ईसाई परिवार में ऑगस्टीन जोसेफ और एलिजाबेथ जोसेफ के घर जन्में केजे येसुदास के पिता एक प्रसिद्ध मलयालम शास्त्रीय संगीतकार और थिएटर एक्टर भी थे और उनके सबसे प्रिय मित्र, संगीतकार कुंजन वेलु भागवतर ही येसुदास के पहले गुरु थे जो चक्रवर्ती टीएन राजरत्नम पिल्लई के शिष्य थे लेकिन येसुदास यहीं नहीं रुके और आरएलवी संगीत अकादमी, थ्रिप्पुनिथुरा में अपना अकादमिक संगीत प्रशिक्षण शुरू कर गणभूषणम पाठ्यक्रम पूरा किया। बाद में उन्होंने स्वाति थिरुनल कॉलेज ऑफ़ म्यूज़िक, तिरुवनंतपुरम में कर्नाटक संगीत के उस्ताद केआर कुमारस्वामी अय्यर और सेम्मनगुडी श्रीनिवास अय्यर के संरक्षण में अध्ययन किया, लेकिन पैसों की कमी के कारण वे अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके फिर कुछ समय के लिए, उन्होंने वेचूर हरिहर सुब्रमण्यम अय्यर के अधीन भी संगीत का अध्ययन किया, जिसके बाद उन्होंने चेम्बाई वैद्यनाथ भागवतर से संगीत सीखा।


उन्हें पहला बड़ा ब्रेक हिट मलयालम फिल्म भार्या से मिला, लेकिन उनका लोकप्रिय गीत बना ‘ जाति भेदम माथा द्वेषम’ जिसे उन्होंने एमबी श्रीनिवासन के संगीत निर्देशन में 14 नवंबर 1961 को रिकॉर्ड किया था गीतकार थे ,केरल के सबसे सम्मानित संत-कवि-समाज सुधारक श्री नारायण गुरु और फिल्म थी कल्पदुकल, जो श्री नारायण गुरु के जीवन और समय के दौरान सामाजिक सुधार पर आधारित थी। इसके बाद उनकी शोहरत का सिलसिला यूं शुरू हुआ कि 1965 में, उन्हें सोवियत संघ सरकार द्वारा यूएसएसआर के विभिन्न शहरों में संगीत समारोहों में प्रदर्शन करने के लिए आमंत्रित किया गया और उन्होंने रेडियो कजाकिस्तान पर एक रूसी गीत भी गाया। 1970 में उन्हें केरल संगीत नाटक अकादमी का प्रमुख नामित किया गया और वे इस पद पर आसीन होने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे।
हिंदी गीतों की बात करें तो,
येसुदास के सबसे लोकप्रिय गाने सावन को आने दो और 1976 की फिल्म चितचोर में हैं ,
बॉलीवुड में उन्होंने रवींद्र जैन , बप्पी लाहिड़ी , खय्याम , राज कमल और सलिल चौधरी सहित संगीत निर्देशकों के लिए कई सदाबहार हिंदी फिल्मी गाने गाए हैं।


अपनी आवाज़ और अंदाज़ से सुकून देने वाले येसुदास को 14 नवंबर 1999 को, पेरिस में “म्यूजिक फॉर पीस” कार्यक्रम में “संगीत और शांति में उत्कृष्ट उपलब्धियों” के लिए यूनेस्को द्वारा मानद पुरस्कार प्रदान किया गया, जो नई सहस्राब्दी की सुबह को पहचान देने के लिए आयोजित एक बहोत प्रसिद्ध संगीत कार्यक्रम था 2001 में भी उन्होंने संस्कृत , लैटिन और अंग्रेजी में और नए युग और कर्नाटक सहित शैलियों के संगम में अहिंसा एल्बम के लिए गीत गाए।
दिव्य गायक उन्हें इसलिए भी कहा जाता है क्योंकि मध्य पूर्व में अपने संगीत समारोहों में उन्होंने संगीत के लिए हर बंधन को तोड़ दिया और अपने गीतों को रूहानी टच देते हुए कर्नाटक शैली में अरबी गाने गाए ये वो मुख्तलिफ अंदाज़ था जिसने उन्हें विदेशों में भारत का सांस्कृतिक राजदूत बना दिया जो भारतीय संगीत को बढ़ावा देता है फिर 2009 में येसुदास ने तिरुवनंतपुरम में आतंकवाद के खिलाफ एक क्रॉस-कंट्री संगीत अभियान शुरू किया, जिसका आदर्श वाक्य था ‘शांति के लिए संगीत’। यही नहीं हेमंत करकरे की पत्नी कविता करकरे ने ‘शांति संगीत यात्रा’ के शुभारंभ के अवसर पर मशाल येसुदास को सौंपी। येसुदास ने सूर्य कृष्णमूर्ति द्वारा आयोजित 36 साल पुराने सूर्य संगीत समारोह में 36 बार प्रदर्शन किया है।

एक बात हम आपको और बताते चलें कि स्वरालय येसुदास पुरस्कार संगीत कलाकारों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है। और वर्ष 2000 से यह पुरस्कार प्रतिवर्ष दिए जाते हैं जिनमें येसुदास हर जनवरी माह में गंधर्व संध्या में पुरस्कार प्रदान करते हैं। एआर रहमान ने2006 में स्वरालय कैराली येसुदास पुरस्कार जीतने के बाद एआर रहमान ने कहा, “स्वरालय के इस कदम से और अपने सबसे पसंदीदा गायक श्री येसुदास से यह पुरस्कार पाकर मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। वे दुनिया में मेरी सबसे पसंदीदा आवाज़ों में से एक हैं।” एक अन्य अवसर पर एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने येसुदास के बारे में कहा, “उनकी आवाज़ बेमिसाल है, उनकी आवाज़ ईश्वर प्रदत्त है और मैं 3 साल की उम्र से उनके गाने सुन रहा हूँ” रवींद्र जैन ने स्वीकार कहा कि यदि कभी उनकी दृष्टि वापस आ गई, तो वह सबसे पहले येसुदास को देखना चाहेंगे।

बप्पी लाहिड़ी ने 2012 में फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में कहा था : “येसुदास की आवाज़ ईश्वर द्वारा छुई गई है। किशोर दा (किशोर कुमार) के बाद, वे एक और गायक थे जिन्होंने मुझसे सबसे बेहतर काम कराया । वे एक योगी, एक रहस्यवादी हैं जो संगीत के लिए जीते हैं। वे आपकी धुनों को दूसरे स्तर पर ले जाते हैं। और उनका नोट एकदम सही है,
हिंदी फिल्मों को उनकी बहोत ज़रूरत है।
आप भी आज उनके कुछ गानों को फिर से गुनगुनाने के देखिए यक़ीन मानिए आप भी सुरों के संसार में खो जाएंगे,मंत्रमुग्ध हो जाएंगे ,येसुदास की गायिकी को सुनकर फिर चाहे वो तुझे देखकर जग वाले पर हो या कोई गाता मै सो जाता , श्याम रंग रंगा रे या फिर चश्म ए बद्दूर फिल्म का कहां आए बदरा हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *