MP: 9 साल से अटकी पदोन्नति पर विवाद, कर्मचारी संगठन कोर्ट जाने की तैयारी में

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MP Promotion Policy: मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा, “नए नियमों में कुछ भी नया नहीं है। यह पुराने नियमों की नई पैकिंग है।” उन्होंने बताया कि विवाद की जड़ यह है कि आरक्षित वर्ग के लोग अनारक्षित पदों पर भी पदोन्नत हो रहे हैं।

मध्यप्रदेश सरकार के 9 साल से अटकी पदोन्नति (प्रमोशन) के नए नियमों पर विवाद गहरा गया है। अधिकारी-कर्मचारी संगठन सरकार के फैसले से नाराज हैं और कोर्ट जाने की चेतावनी दे रहे हैं। सामान्य, पिछड़ा, अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था (स्पीक) ने इसे सामान्य वर्ग विरोधी करार दिया, जबकि तृतीय वर्ग कर्मचारी संगठन ने कहा कि सरकार ने 2016 से पहले वाली व्यवस्था को ही दोहराया है। दूसरी ओर, अजाक्स (SC/ST संगठन) ने फैसले का स्वागत किया, कहते हुए कि इससे सभी वर्गों को अवसर मिलेगा।

नई पैकिंग में पुरानी दवा

मंत्रालय सेवा अधिकारी-कर्मचारी संघ के अध्यक्ष इंजीनियर सुधीर नायक ने कहा, “नए नियमों में कुछ भी नया नहीं है। यह पुराने नियमों की नई पैकिंग है।” उन्होंने बताया कि विवाद की जड़ यह है कि आरक्षित वर्ग के लोग अनारक्षित पदों पर भी पदोन्नत हो रहे हैं, जिससे उच्च पदों पर लगभग 100% पद उनके पास हैं। उदाहरण के लिए, मंत्रालय में अपर सचिव के 65 में से 58 पद आरक्षित वर्ग के पास हैं। नायक ने चेतावनी दी कि पुरानी समस्याओं को जस का तस रखने से कोर्ट केस फिर बढ़ेंगे।

2016 से रुकी पदोन्नति का सवाल

नायक ने पूछा, “जब न कोर्ट और न ही सामान्य प्रशासन विभाग ने रोक लगाई थी, तो 9 साल तक कर्मचारियों को प्रमोशन से क्यों वंचित रखा गया?” उनके मुताबिक, डेढ़ लाख कर्मचारी बिना पदोन्नति के रिटायर हो गए, और एक लाख कर्मचारी दो प्रमोशन के हकदार थे। सरकार चाहती तो 2016 से काल्पनिक पदोन्नति देकर नुकसान की भरपाई कर सकती थी।

विधि विभाग को प्रमोशन, बाकियों को क्यों नहीं?

नायक ने बताया कि विधि विभाग ने 2016 से वर्टिकल आरक्षण लागू कर पदोन्नति दी, लेकिन अन्य विभागों में ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने इसे भेदभाव बताया और सुझाव दिया कि समयमान वेतनमान के साथ उच्च पदनाम की व्यवस्था लागू होनी चाहिए, जैसा अन्य विभागों में है।

तृतीय वर्ग कर्मचारी संगठन का असंतोष

तृतीय वर्ग कर्मचारी संघ के महामंत्री उमाशंकर तिवारी ने कहा कि नए नियमों में कुछ लाभ हैं, लेकिन 2002 के आरक्षण नियमों को फिर लागू किया गया, जो पहले विवाद का कारण बने थे। उन्होंने बताया कि अनुसूचित जनजाति को 20% और अनुसूचित जाति को 16% आरक्षण मिलेगा। 2002 के इन्हीं नियमों के खिलाफ हाईकोर्ट में मामला गया था, जिसके बाद 2016 से सुप्रीम कोर्ट में मामला लंबित है। तिवारी ने कहा कि 36% आरक्षित पदों की पुरानी व्यवस्था लागू करने से कर्मचारियों में असंतोष है। उन्होंने मांग की कि पदोन्नति में आरक्षण हटाकर वरिष्ठता और कार्य के आधार पर प्रमोशन दिया जाए।

अजाक्स का समर्थन

अजाक्स के अध्यक्ष मुकेश मौर्य ने फैसले का स्वागत किया। उन्होंने कहा, “9 साल से रुकी पदोन्नति से सभी वर्गों को नुकसान हुआ था। अब सभी को अवसर मिलेगा।” संगठन की ओर से सीएम का अभिनंदन किया जाएगा।

स्पीक के अध्यक्ष डॉ. केएस तोमर ने सरकार से पांच सवाल पूछे:

  • RTI के अनुसार, सरकार ने पदोन्नति पर रोक नहीं लगाई, तो 2016 से अब तक प्रमोशन क्यों नहीं हुआ? जिम्मेदार कौन?
  • कोर्ट ने गलत प्रमोशन वाले आरक्षित वर्ग के लोगों को रिवर्ट करने का आदेश दिया, तो उन्हें दोबारा कैसे प्रमोट किया जा सकता है?
  • पहले गलती की, 9 साल तक प्रमोशन रोके, और अब वही नियम लागू। यह कौन से संविधान में लिखा है?
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अत्यधिक आरक्षण रिवर्स भेदभाव पैदा करता है। फिर अनारक्षित कोटे से आरक्षित वर्ग को प्रमोट करना कैसे सही?
  • क्रीमी लेयर को आरक्षण से बाहर रखने के फैसले हैं। हरियाणा हाईकोर्ट ने ऐसे नियम खारिज किए। मध्यप्रदेश में इन्हें क्यों दोहराया जा रहा?

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