Abhi Dilli Door Hai Ki Kahani Hindi Mein: ‘दिल्ली अभी दूर है’ या ‘अभी दिल्ली दूर है’, अर्थात अभी मंजिल दूर है। सरल शब्दों में कहें तो इस कहावत का प्रयोग तब किया जाता है जब सफलता मिलने में देर हो। आज कल यह एक राजनैतिक ताना देने का नारा भी बन गया है, जो अक्सर नेताओं पर तंज कसने के लिए, उनके विपक्षियों द्वारा प्रयोग किया जाता है। लेकिन इस कहावत का संबंध है एक बादशाह और एक सूफी संत से, इसके पीछे एक इतिहास है, कैसे बनी यह कहावत आइए जानते हैं।
‘दिल्ली अभी दूर है‘ कहावत की कहानी क्या है
दिल्ली अभी दूर है य अभी दिल्ली दूर है कहावत की उत्पत्ति एक फारसी पंक्ति “हनूज दिल्ली दूर अस्त” से हुई है, यह पंक्ति कही थी सुप्रसिद्ध सूफी संत निजामउद्दीन औलिया ने। औलिया एक सुप्रसिद्ध सूफी संत थे, लेकिन उनका ही समकालीन1320 में दिल्ली का सुल्तान बना गयासुद्दीन तुगलक उन्हें पसंद नहीं करता था। उन दोनों की अदावत की कई कहानियाँ प्रसिद्ध हैं, एक कहानी है- एक बार सुल्तान दिल्ली में तुगलकाबाद नाम के नए शहर का निर्माण कर रहा था, जिससे शहर भर के मजदूर उसके यहाँ काम करते थे, लेकिन उसी समय निजामुद्दीन औलिया एक बावड़ी का निर्माण करवा रहे थे, औलिया के प्रति श्रद्धा रखने वाले मजदूर दिन को सुल्तान के यहाँ काम करते थे और रात को औलिया के यहाँ, यह बात जब सुल्तान को पता चली तो उसने पूरे दिल्ली भर में दिए और मशालों जलाने वाले तेल की पर रोक लगा दी, जिसके बाद कहते हैं औलिया ने तुगलकाबाद को शाप दिया “या रहे उज्जड़ या बसे गुज्जर”, अर्थात यह नगर या तो उजाड़ रहेगा या तो यहाँ गूजर रहेंगे।
कहते हैं सुल्तान गयासुद्दीन ने कई बार औलिया को अपमानित करने की कोशिस की थी। 1324 में सुल्तान बंगाल अभियान पर गया, बंगाल के पूर्वी क्षेत्र के सोनारगाँव में विद्रोहों का दमन उसका मुख्य उद्देश्य था। इसके साथ ही सुल्तान ने तिरहुत के राजा को पराजित किया और वापस दिल्ली की ओर लौटने लगे, दिल्ली लौटने से पहले ही उन्हें अपने विरुद्ध साजिश का शक था, उन्हें लगता था, औलिया सुल्तान के विरुद्ध साजिश करने वाले को शह देते हैं, इसीलिए वह दिल्ली से चलने से पहले औलिया को संदेश भेजता है, उनके अभियान से वापस आने से पहले ही दिल्ली छोड़ दे, अभियान से वापस लौटते समय ही रास्ते में सुल्तान ने फिर संदेश देकर दिल्ली छोड़ देने की हिदायत दी, इसके बदले औलिया ने भी सुल्तान गयासुद्दीन को एक संदेश भेजा “हनूज दिल्ली दूर अस्त” अर्थात अभी दिल्ली दूर है।
लेकिन सचमुच सुल्तान के लिए दिल्ली दूर ही रही, सुल्तान ने दिल्ली से कुछ दूर पर यमुना के किनारे अपना खेमा लगा रखा था, वहीं एक तूफान के कारण उसका तंबू गिर गया और वह दबकर मर गया, इब्नबतूता कहता है की यह साजिश खुद सुल्तान के पुत्र जौना खान ने रची थी, जो बाद में दिल्ली की तख्त में मुहम्मद बिन तुगलक के नाम से गद्दी पर बैठा।
जब तुगलकाबाद हुआ उजाड़
लेख के शुरुआत में हमने तुगलकाबाद के बसने के समय की एक स्टोरी बताई थी, दरसल मुहम्मद बिन तुगलक को अपनी सनक के लिए जाना जाता था, सुल्तान बनने के बाद दक्षिण पर स्थायी शासन स्थापित करने के उद्देश्य से उसने राजधानी परिवर्तन का निर्णय लिया और राजधानी को तुगलकाबाद से दौलताबाद (देवगिर) करने का आदेश दे दिया, उसके इस आदेश के बाद तुगलकाबाद से देवगिरि के रास्ते में बहुत से लोगों की मौत हो गई थी, वहाँ का हवा-पानी इत्यादि बदलने से भी लोग परेशान थे, चूंकि सुल्तान की यह योजना असफल रही, इसीलिए राजधानी दुबारा तुगलकाबाद ले जाने का फैसला किया गया, लेकिन तुगलकाबाद फिर से नहीं आबाद हो सका।
जब मुग़ल बादशाह ने इस कहावत का प्रयोग किया
1739 में हिंदुस्तान पर ईरान के शासक नादिरशाह ने आक्रमण किया था, उस समय पर हिंदुस्तान पर मुग़ल सत्ता काबिज थी, बादशाह था औरंगजेब का पोता मुहम्मदशाह, जो रंगीला नाम से जाना जाता था। वह संगीत, रक्स, शराब और अफीम का शौकीन था, वह फारसी का शायर भी था, सदा रंगीला उसका पेन नाम था। उसे दिल्ली की गद्दी पर सैय्यद बंधुओं ने बैठाया था, पर निजाम और अवध के नवाब के मदद से उसने सैय्यद बंधुओं से निजात पाई और मुग़ल राजनीति पर इनका प्रभाव बढ़ गया।
जब नादिरशाह भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्रों पर पहुंचा, तो बादशाह को खबर दी गई, तो रास-रंग में डूबे रंगीला ने जवाब दिया ‘अभी दिल्ली दूर है’, वह हर बार यही दुहराता अभी दिल्ली दूर है। और दिनभर रासरंग में डूबा रहता था, आखिरकार नादिरशाह दिल्ली की तरफ बढ़ता रहा और कर्नाल की लड़ाई में मुग़ल फौजों को हराया दिल्ली पहुँचकर दिल्ली में भारी आतंक और नरसंहार मचाया।