पश्चिम बंगाल के दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर (Digha Jagannath Temple) को ‘जगन्नाथ धाम’ (Jagannath Dham) नाम देने पर ओडिशा के भक्तों और पुजारी समुदाय में नाराजगी फैल गई है। यह मंदिर पुरी के 12वीं सदी के श्री जगन्नाथ मंदिर (Puri Jagannath Temple) की प्रतिकृति के रूप में बनाया गया है, लेकिन इसके नामकरण और कुछ रीति-रिवाजों को लेकर विवाद (Digha Jagannath Dham Name Controversy) गहरा गया है। ओडिशा के भक्तों का कहना है कि ‘जगन्नाथ धाम’ नाम केवल पुरी के मंदिर के लिए ही उपयुक्त है, जो हिंदू धर्म के चार धामों (Char Dham) में से एक है। आइए जानते हैं इस विवाद के प्रमुख पहलुओं को।
विवाद की शुरुआत
पश्चिम बंगाल सरकार ने 30 अप्रैल 2025 को दीघा में 250 करोड़ रुपये की लागत से बने जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने इसे ‘जगन्नाथ धाम’ कहकर प्रचारित किया, जिससे ओडिशा के भक्तों (Odisha Devotees) में असंतोष फैल गया। उनका मानना है कि यह नाम पुरी के मंदिर की पवित्रता (Sanctity of Puri Temple) को कम करता है। प्रसिद्ध रेत कलाकार सुदर्शन पटनायक (Sudarsan Pattnaik) ने ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी (Mohan Charan Majhi) को पत्र लिखकर इस मामले में हस्तक्षेप की मांग की है।
भक्तों और पुजारियों की आपत्ति
ओडिशा के भक्तों और पुरी मंदिर के पुजारियों (Puri Temple Servitors) का कहना है कि हिंदू धर्म में केवल चार धाम हैं—बद्रीनाथ, द्वारका, पुरी और रामेश्वरम (Four Dhams in Hinduism)। दीघा के मंदिर को ‘धाम’ कहना धार्मिक परंपराओं (Hindu Religious Traditions) के खिलाफ है। वरिष्ठ पुजारी रामचंद्र दासमोहपात्रा (Ramachandra Dasmohapatra) ने बताया कि पुरी में भगवान जगन्नाथ की मूर्तियां नीम की लकड़ी (Neem Wood Idols) से बनती हैं, जबकि दीघा में पत्थर की मूर्तियां (Stone Idols) हैं, जो परंपरा के विपरीत है। इसके अलावा, दीघा मंदिर में ‘ब्रह्म स्थापना’ (Brahma Sthapana) की बात ने भी विवाद को बढ़ाया, क्योंकि यह पुरी मंदिर की एक विशेष और गोपनीय रस्म है।
पुरी मंदिर की विशिष्टता पर खतरा
पुरी के जगन्नाथ मंदिर को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन (Puri Temple Tourism) के लिहाज से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। ओडिशा सरकार के 2023 के आंकड़ों के अनुसार, पुरी में आने वाले 97.25 लाख पर्यटकों में से 13.59 लाख बंगाल से थे। भक्तों को डर है कि दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहने और इसके प्रचार जैसे नारे—“पुरी जाने की जरूरत नहीं, दीघा में भी है जगन्नाथ धाम” (No Need to Visit Puri Slogan)—से पुरी का पर्यटन प्रभावित हो सकता है। पुरी मंदिर के सुआर महासुआर निजोग और पुष्पलक निजोग (Suar Mahasuar Nijog, Puspalaka Nijog) ने अपने सदस्यों को दीघा मंदिर के रीति-रिवाजों में भाग लेने से मना किया है, अन्यथा निष्कासन की चेतावनी दी है।
पश्चिम बंगाल सरकार का रुख
पश्चिम बंगाल सरकार का कहना है कि दीघा का मंदिर पुरी की तरह ही भक्तों और पर्यटकों (Digha Temple Tourism) को आकर्षित करने के लिए बनाया गया है। यह 20 एकड़ में फैला है और इसमें कालिंग शैली की वास्तुकला (Kalinga Architecture) और राजस्थान के गुलाबी बलुआ पत्थर (Pink Sandstone) का उपयोग किया गया है। ममता बनर्जी ने इसे बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर (Bengal Cultural Heritage) का हिस्सा बताया। हालांकि, विपक्षी नेता सुवेंदु अधिकारी (Suvendu Adhikari) ने सवाल उठाया कि सरकारी दस्तावेजों में इसे ‘जगन्नाथ धाम संस्कृति केंद्र’ (Jagannath Dham Sanskriti Kendra) क्यों कहा गया है, न कि मंदिर।
मांग और अपील
सुदर्शन पटनायक ने ममता बनर्जी से माफी मांगने और दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहना बंद करने की अपील की है। उन्होंने ओडिशा सरकार से इस मामले को पश्चिम बंगाल सरकार के साथ उठाने का आग्रह किया। इसके अलावा, ‘ब्रह्म स्थापना’ के दावों की जांच (Investigation on Brahma Sthapana) की भी मांग की गई है, क्योंकि यह पुरी मंदिर की विशिष्टता से जुड़ा है। भक्तों का कहना है कि दीघा मंदिर का निर्माण स्वागत योग्य है, लेकिन इसे पुरी की तरह पवित्र ‘धाम’ (Sacred Dham Status) का दर्जा देना गलत है।
निष्कर्ष
दीघा के जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन जहां बंगाल के लिए एक सांस्कृतिक उपलब्धि है, वहीं इसके नामकरण ने ओडिशा के भक्तों के बीच विवाद (Odisha-West Bengal Temple Dispute) पैदा कर दिया है। यह मामला धार्मिक भावनाओं, सांस्कृतिक पहचान (Cultural Identity), और पर्यटन प्रतिस्पर्धा (Tourism Competition) का मिश्रण बन गया है। दोनों राज्यों के बीच बातचीत से इस विवाद का समाधान निकलने की उम्मीद है, ताकि भगवान जगन्नाथ के भक्तों की आस्था (Faith of Jagannath Devotees) और पुरी मंदिर की पवित्रता बरकरार रहे।