अमेरिकन EVM और भारतीय EVM में क्या फर्क है? कांग्रेस जनता से झूठ बोल रही

What is the difference between American EVM and Indian EVM: देश में 11 सालों से राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी सिर्फ एक ही रोना रो रहे हैं ‘मोदी ने EVM हैक कर ली’. चुनाव आयोग से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में यह साबित हो चुका है कि भारतीय चुनाव में इस्तेमाल होने वाली EVM हैक नहीं हो सकती। फिर भी कांग्रेस पार्टी देश की जनता से झूठ बोलने से बाज़ नहीं आ रही है, Congress EVM के नाम पर जनता को बरगलाने की कोशिश कर रही है.

हाल ही में अमेरिकी ख़ुफ़िया एजेंसी की अध्यक्ष तुलसी गबार्ड (Tulsi Gabbard EVM) ने अमेरिकी चुनाव में इस्तेमाल होने वाली EVM के हैक होने के सबूत मिलने की बात कही. तुलसी गबार्ड ने कहा कि हमारे पास EVM हैक होने के सबूत हैं.

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गबार्ड द्वारा ऐसा दावा करने के बाद US में खलबली मच गई लेकिन भारत में कांग्रेस ने इसका मुद्दा ही बना दिया। लोग कहने लगे कि Rahul Gandhi का EVM पर आरोप सही है अब तो तुलसी गबार्ड भी बोल रही हैं. लेकिन तुलसी गबार्ड राहुल गांधी की तरह चुनाव हारने के बाद यह दावा अपनी हार छुपाने के लिए नहीं कर रही हैं. उनके पास EVM हैक होने के सबूत हैं और राहुल गांधी सिर्फ हवा हवाई बातें कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी सिर्फ आरोप लगा रही है ना तो उन्होंने कोई जांच की है न हैक करके दिखाया है सिर्फ और सिर्फ झूठे दावे किए जा रहे हैं.

भारत की EVM अमेरिकी EVM की तरह हैक नहीं हो सकती

  • भारतीय EVM: भारतीय EVM पूरी तरह स्टैंडअलोन मशीनें हैं, जो किसी भी इंटरनेट, वाई-फाई, ब्लूटूथ या बाहरी नेटवर्क से नहीं जुड़ी होतीं। इनमें दो मुख्य हिस्से होते हैं: कंट्रोल यूनिट (पोलिंग ऑफिसर के पास) और बैलट यूनिट (वोटर के लिए)। ये दोनों एक 5-मीटर केबल से जुड़े होते हैं। इनका डिज़ाइन बेहद सरल है, जैसे पुराने कैलकुलेटर या टाइपराइटर, जिसमें कोई जटिल सॉफ्टवेयर या ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं होता।
  • अमेरिकी EVM: अमेरिका में EVM की कोई एकरूपता नहीं है; अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग सिस्टम इस्तेमाल होते हैं। इनमें डायरेक्ट रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रॉनिक (DRE) मशीनें, टचस्क्रीन डिवाइस, और ऑप्टिकल स्कैन सिस्टम शामिल हैं। कई अमेरिकी मशीनें जटिल सॉफ्टवेयर पर चलती हैं और कुछ मामलों में नेटवर्क से जुड़ी हो सकती हैं (जैसे, परिणाम ट्रांसमिशन के लिए)। कुछ काउंटियों में मॉडम के जरिए डेटा भेजा जाता है, जो साइबर जोखिम बढ़ाता है।

नेटवर्क कनेक्टिविटी

  • भारतीय EVM: ये मशीनें पूरी तरह ऑफलाइन हैं। इनमें कोई वायरलेस या नेटवर्किंग क्षमता नहीं होती। वोट रिकॉर्ड करने से लेकर गिनती तक, सब कुछ फिजिकल प्रक्रिया के जरिए होता है। मशीनों को मैन्युअल रूप से सुरक्षित स्थानों पर ले जाया जाता है और परिणाम कंट्रोल यूनिट के डिस्प्ले से पढ़े जाते हैं।
  • अमेरिकी EVM: कुछ अमेरिकी मशीनें इंटरनेट या स्थानीय नेटवर्क से जुड़ी हो सकती हैं, खासकर परिणामों को केंद्रीय टैबुलेटर तक भेजने के लिए। उदाहरण के लिए, फ्लोरिडा, इलिनॉय, और मिशिगन जैसे राज्यों की कुछ काउंटियों में मशीनें ऑनलाइन ट्रांसमिशन का इस्तेमाल करती हैं। यह कनेक्टिविटी साइबर हमलों का जोखिम बढ़ाती है, जैसे डेटा इंटरसेप्शन या मैलवेयर।

वोटर वेरिफिकेशन और पेपर ट्रेल

  • भारतीय EVM: भारत में हर EVM के साथ वोटर वेरिफायबल पेपर ऑडिट ट्रेल (VVPAT) जोड़ा गया है। VVPAT एक प्रिंटर यूनिट है जो वोट डालने के बाद एक पेपर स्लिप जनरेट करता है, जिसमें वोटर द्वारा चुना गया उम्मीदवार और प्रतीक दिखता है। यह स्लिप 7 सेकंड तक दिखती है और फिर सील बंद डिब्बे में चली जाती है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर, 2% VVPAT स्लिप्स की गिनती EVM परिणामों से मिलान के लिए की जाती है। यह पारदर्शिता और ऑडिट की सुविधा देता है।
  • अमेरिकी EVM: अमेरिका में VVPAT का इस्तेमाल सभी राज्यों में अनिवार्य नहीं है। कुछ DRE मशीनें बिना पेपर ट्रेल के काम करती हैं, जिससे ऑडिट करना मुश्किल हो जाता है। जहाँ पेपर ट्रेल मौजूद है (जैसे ऑप्टिकल स्कैन सिस्टम में), वहाँ वोटर पेपर बैलट भरते हैं, जिसे मशीन स्कैन करती है। लेकिन अगर सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी हो, तो बिना व्यापक ऑडिट के इसे पकड़ना मुश्किल है।

सुरक्षा विशेषताएँ

  • भारतीय EVM: भारतीय EVM की सुरक्षा कई स्तरों पर सुनिश्चित की जाती है। मशीनें केवल भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ECIL) द्वारा बनाई जाती हैं। इनमें कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं होता, केवल हार्ड-कोडेड चिप्स होती हैं, जिन्हें बाद में बदला नहीं जा सकता। ये मशीनें प्रति मिनट केवल 5 वोट रिकॉर्ड कर सकती हैं, जिससे बूथ कैप्चरिंग जैसी धोखाधड़ी मुश्किल हो जाती है। मशीनों को कई परतों वाली सील से बंद किया जाता है, और EVM ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर से उनकी लोकेशन रियल-टाइम मॉनिटर की जाती है।
  • अमेरिकी EVM: अमेरिकी मशीनों की सुरक्षा राज्य और निर्माता पर निर्भर करती है। कुछ मशीनों में पुराने सॉफ्टवेयर (जैसे विंडोज XP) का इस्तेमाल होता है, जो साइबर हमलों के लिए कमजोर हो सकता है। नेटवर्क कनेक्टिविटी और जटिल सॉफ्टवेयर के कारण हैकिंग का जोखिम बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, 2018 में DEF CON हैकिंग कॉन्फ्रेंस में हैकर्स ने दिखाया कि कुछ अमेरिकी EVM को मिनटों में हैक किया जा सकता है। हालाँकि, ये टेस्ट नियंत्रित माहौल में थे, और वास्तविक चुनाव में ऐसा होने का कोई ठोस सबूत नहीं मिला।

पारदर्शिता और विश्वास

  • भारतीय EVM: भारत में EVM की विश्वसनीयता पर समय-समय पर सवाल उठे हैं, लेकिन VVPAT और रैंडम ऑडिट ने इसे मजबूत किया है। भारतीय EVM की सादगी (कोई नेटवर्क, कोई सॉफ्टवेयर अपडेट) इसे हैकिंग से बचाती है, लेकिन कुछ आलोचकों का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग या स्टोरेज के दौरान छेड़छाड़ संभव है। फिर भी, व्यापक निगरानी और पार्टियों के एजेंट्स की मौजूदगी इसे मुश्किल बनाती है।
  • अमेरिकी EVM: अमेरिका में EVM पर भरोसा कम है, क्योंकि अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग सिस्टम और मानक हैं। कुछ मशीनें बिना पेपर ट्रेल के काम करती हैं, जिससे पारदर्शिता कम हो जाती है। 2016 और 2020 के चुनावों में EVM हैकिंग के दावे उठे, लेकिन जांच में कोई ठोस सबूत नहीं मिला। फिर भी, नेटवर्क कनेक्टिविटी और सॉफ्टवेयर की जटिलता के कारण लोग संशय में रहते हैं।

लागत और रखरखाव

  • भारतीय EVM: भारतीय EVM की लागत कम है (M3 मॉडल की कीमत लगभग 17,000 रुपये)। ये बैटरी से चलती हैं और बिजली की जरूरत नहीं पड़ती। इनका रखरखाव आसान है, और इन्हें सुरक्षित गोदामों में रखा जाता है।
  • अमेरिकी EVM: अमेरिकी मशीनें महँगी होती हैं, क्योंकि इनमें टचस्क्रीन, सॉफ्टवेयर, और नेटवर्किंग हार्डवेयर शामिल होता है। रखरखाव और अपडेट की लागत भी ज्यादा है, और हर राज्य का सिस्टम अलग होने से एकरूपता की कमी रहती है।

हैकिंग की संभावना पर निष्कर्ष

  • भारतीय EVM: हैकिंग की संभावना बेहद कम है, क्योंकि ये मशीनें ऑफलाइन हैं, कोई ऑपरेटिंग सिस्टम नहीं है, और VVPAT ऑडिट के लिए पेपर ट्रेल देता है। लेकिन मैन्युफैक्चरिंग, स्टोरेज, या फिजिकल एक्सेस के दौरान छेड़छाड़ के दावे उठते रहे हैं, जिन्हें चुनाव आयोग ने खारिज किया है।
  • अमेरिकी EVM: हैकिंग का जोखिम ज्यादा है, क्योंकि कुछ मशीनें नेटवर्क से जुड़ी होती हैं और जटिल सॉफ्टवेयर पर चलती हैं। बिना पेपर ट्रेल वाली मशीनें ऑडिट के लिए कमजोर हैं। फिर भी, वास्तविक चुनाव में बड़े पैमाने पर हैकिंग का कोई पुख्ता सबूत नहीं मिला।

भारत की EVM क्यों हैक नहीं हो सकती

  • भारतीय EVM की सादगी और ऑफलाइन प्रकृति इसे साइबर हैकिंग से काफी हद तक सुरक्षित बनाती है, जबकि अमेरिकी EVM की विविधता, नेटवर्क कनेक्टिविटी, और सॉफ्टवेयर जटिलता इसे सैद्धांतिक रूप से अधिक असुरक्षित बनाती है। लेकिन दोनों ही सिस्टमों में फिजिकल छेड़छाड़ या मानवीय गलती का जोखिम पूरी तरह खत्म नहीं होता। भारतीय सिस्टम की ताकत उसकी एकरूपता और VVPAT में है, जबकि अमेरिकी सिस्टम की कमजोरी उसकी असमानता और कुछ मशीनों में पेपर ट्रेल की कमी है।

अमेरिकन EVM और भारतीय EVM में क्या फर्क है

What is the difference between American EVM and Indian EVM: 
विशेषताभारतीय EVMअमेरिकी EVM
कनेक्टिविटीपूरी तरह ऑफलाइन, कोई नेटवर्क नहींकुछ ऑनलाइन, मॉडम/नेटवर्क यूज़
डिज़ाइनस्टैंडअलोन, साधारण चिपटचस्क्रीन, जटिल सॉफ्टवेयर
पेपर ट्रेलVVPAT अनिवार्य, ऑडिट के लिएकुछ में नहीं, ऑडिट मुश्किल
सुरक्षाहार्ड-कोडेड, छेड़छाड़ मुश्किलसॉफ्टवेयर, हैकिंग जोखिम
एकरूपतापूरे देश में एक जैसीहर राज्य में अलग-अलग
लागतसस्ती, कम रखरखावमहँगी, ज्यादा रखरखाव

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