Dharmendra Death News : बॉलीवुड के ही-मैन धर्मेंद्र देओल का 89 वर्ष की उम्र में निधन हो गया। धर्मेंद्र का अंतिम संस्कार विले पार्ले श्मशान भूमि में किया गया। दिवंगत अभिनेता धर्मेंद्र को अंतिम विदाई देने के लिए सलमान खान, संजय दत्त, अमिताभ बच्चन, अभिषेक बच्चन, आमिर खान समेत कई सेलेब्स पहुंचे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी दिग्गज अभिनेता धर्मेंद्र के निधन को एक युग के अंत कहा है।
अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद हुआ धर्मेंद्र का निधन
अभिनेता धर्मेंद्र की तबीयत लगातार बिगड़ रही थी और उन्हें मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 12 नवंबर को उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली थी, लेकिन 24 नवंबर 2025 को उनका निधन हो गया। धर्मेंद्र का जीवन फिल्मों की दुनिया के साथ-साथ राजनीति का भी दिलचस्प सफर रहा, हालांकि यह अध्याय उनकी सिनेमाई यात्रा जितना सफल नहीं रहा।
धर्मेंद्र ने भाजपा से राजनीति में कदम रखा
2004 में बीजेपी के ‘शाइनिंग इंडिया’ कैंपेन ने धर्मेंद्र को प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने शत्रुघ्न सिन्हा के साथ लालकृष्ण आडवाणी से मुलाकात की और उनकी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत हुई। बीजेपी ने उन्हें राजस्थान की बीकानेर लोकसभा सीट से टिकट दिया, और उन्होंने अपने लोकप्रियता के दम पर कांग्रेस के रमेश्वर लाल डूडी को लगभग 60 हजार वोटों से हराकर संसद में प्रवेश किया।
धर्मेंद्र ने कहा था- ‘मैं संसद की छत से कूद जाऊंगा’
चुनाव प्रचार के दौरान धर्मेंद्र का फिल्मी जोश बार-बार देखने को मिलता था। एक रैली में उन्होंने कहा था, “अगर मेरी बात नहीं मानी गई, तो मैं संसद की छत से कूद जाऊंगा!” यह बयान पूरे देश में चर्चा का विषय बन गया। उनके समर्थकों में भारी उत्साह देखा गया, मानो ‘शोले’ के वीरू राजनीतिक मंच पर उतर आए हों।
फिल्मों की तरह राजनीति में नहीं चमके धर्मेंद्र
संसद पहुंचने के बाद उनका राजनीतिक सफर उम्मीदों के अनुरूप नहीं रहा। धीरे-धीरे उन पर आरोप लगने लगे कि बीकानेर में वह बहुत कम मिलते थे। संसद में उनकी उपस्थिति बेहद कम थी। वे फिल्मों की शूटिंग और फार्महाउस में अधिक व्यस्त रहते थे। कुछ समर्थक यह भी कहते रहे कि वह पर्दे के पीछे काम करवाते थे। इसके बावजूद उनकी छवि ‘निष्क्रिय सांसद’ के रूप में बन गई।
2009 ने धर्मेंद्र ने राजनीति छोड़ दी
2009 में धर्मेंद्र ने राजनीति को अलविदा कह दिया। बाद में उन्होंने स्पष्ट कहा, “काम मैं करता था, लेकिन क्रेडिट कोई और ले जाता था। शायद यह दुनिया मेरे लिए नहीं बनी थी।” उनके बेटे सनी देओल ने भी स्वीकार किया कि पिता राजनीति में सहज नहीं थे और चुनाव लड़ने का उन्हें पछतावा रहा।
धर्मेंद्र भले ही राजनीति में चमक न पाए हों, लेकिन उनकी फिल्मों, मेहनत और सादगी की मिसाल हमेशा भारतीय फिल्म इतिहास में चमकती रहेगी।
