Dharmendra Birthday: फिल्मों के दीवानों ने शोले फिल्म न देखी हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता और जिन्होंने भी देखी है उन्हें उसके कुछ डायलॉग तो याद ही होंगे जिसमें एक मशहूर डायलॉग था बसंती इन कुत्तों के सामने मत नाचना ,जो धर्मेंद्र पा जी अपनी बसंती यानी अभिनेत्री हेमा मालिनी जी के लिए बोलते हैं ,धर्मेंद्र जी के चाहने वाले आज तक न केवल इस दमदार आवाज़ की तासीर को महसूस करते हैं बल्कि रोमांटिक हीरो के साथ साथ एक्शन हीरो की इमेज में भी उनका कोई सानी नहीं मानते और प्यार से उन्हें ही मैन भी बुलाते हैं ।
पर ये खूबसूरत बांका जवान फिल्मों में आया कैसे तो हम आपको बता दें कि धर्म सिंह देओल 8 दिसंबर 1935 को
पंजाब के लुधियाना ज़िले के साहनेवाल गांव में एक जाट सिख परिवार में किशन सिंह देओल और सतवंत कौर के घर पैदा हुए ,उनका पुश्तैनी गांव डांगो, लुधियाना के पास है
पर बचपन बीता साहनेवाल गाँव में और लुधियाना के गांव ललतों कलां में आपने पढ़ाई की , जहाँ उनके पिता गाँव के स्कूल के प्रिंसिपल थे।
उन्होंने 1952 में फगवाड़ा में मैट्रिक की पढ़ाई की।
ये उनकी बुआ का शहर है। जिनका बेटा वीरेंदर पंजाबी फ़िल्मों का सुपर स्टार और प्रोड्यूसर डायरेक्टर भी था जिनकी वजह से आपकी भी दिलचस्पी अभिनय में हुई थी लेकिन आतंक के दौर में लुधिआना में ही फ़िल्म ,जट ते ज़मीन ,की शूटिंग के दौरान आतंकियों ने गोली मार कर उनकी हत्या कर दी थी इस घटना ने धर्मेंद्र जी को अकेला कर दिया बचपन से ही वो कला प्रेमी थे और उस वक्त उनके पास एक आस ये थी कि वो फिल्मफेयर पत्रिका के राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित नए प्रतिभा पुरस्कार के विजेता बने थे और इसी बिना पर , फिल्म में काम करने के लिए पंजाब से मुंबई आ गए,
पर यहां जाकर भी काम की तलाश में खूब भटके तब कहीं जाके 1960 में अर्जुन हिंगोरानी की फिल्म , दिल भी तेरा हम भी तेरे के साथ अपने फिल्मी दुनियां में क़दम रखा इसके बाद 1961 में आपको फिल्म मिली, बॉय फ्रेंड जिस में उनकी सहायक भूमिका थी, फिर कुछ ऐसी फिल्में उन्हें मिलती गईं जिससे 1967 तक उन्हें रोमांटिक हीरो का तमग़ा मिल गया ,
और स्क्रीन पर आते ही वो अपनी दमदार पर्सनालिटी और खूबसूरत चेहरे में रूहानी सुकून देती ,भोली सी मुस्कुराहट से सबका दिल जीतने लगे फिर चाहे पर्दे पर हीरोइन कोई भी हो वो हर किसी के साथ परफेक्ट जोड़ी के रूप में नज़र आते और दर्शकों में बैठी महिलाएं अपना दिल थाम लेती , यही नहीं नायक शब्द को वो इस तरह सार्थक करते कि भाई के किरदार में भी वो खूब पसंद किए गए और बहना ने भाई की कलाई पर गीत गाते वक्त आज भी हर दफा वो याद आ ही जाते हैं ।
उन्होंने 60 के दशक में नूतन के साथ सूरत और सीरत ,बंदिनी ,दिल ने फिर याद किया ,में काम किया
; माला सिन्हा के साथ अनपढ़ , पूजा के फूल, बहारें फिर भी आएगी , की और आँखें ; आकाशदीप में नंदा के साथ अभिनय किया फिर शादी , आई मिलन की बेला में सायरा बानो के साथ नज़र आए और 1974 की रेशम की डोरी में मीना कुमारी के साथ आपकी जोड़ी सबको बहुत पसंद आई क्योंकि आप दोनों ही में ही रूमानियत के साथ कशिश, सादगी और संजीदगी थी हालांकि इससे पहले आपने 7 फिल्मों में स्क्रीन साझा की थी , जिनमें थीं मैं भी लड़की हूं , काजल , पूर्णिमा , फूल और पत्थर , मझली दीदी , चंदन का पालना , बहारों की मंजिल और फूल और पत्थर, जो उनकी पहली एक्शन फिल्म थी।
यहां हम आपको ये भी बता दें कि मीना कुमारी ने उस समय के ए-लिस्टर्स में उनको लाने के लिए पूरी कोशिश की थी,फिर
फूल और पत्थर 1966 की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फिल्म भी बन गई और धर्मेंद्र को पहली बार सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्मफेयर पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया और अनुपमा में उनके अभिनय के लिए खूब सराहना मिली और कई सम्मानों से भी नवाजा़ गया,
उसके बाद हमें उनके अभिनय से सजी बेहद हिट फिल्में मिलीं जैसे , आया सावन झूमके, मेरे हमदम मेरे दोस्त, इश्क पर जोर नहीं, प्यार ही प्यार और जीवन मृत्यु जिनमें उन्होंने रोमांटिक हीरो का रोल प्ले करते हुए हमारे दिलों में मकाम कर लिया फिर अपनी इमेज को थोड़ा बदलते हुए ,सस्पेंस थ्रिलर फिल्में कीं जैसे :- शिकार, ब्लैकमेल, कब क्यूं और कहां और कीमत और फिर 1971 की हिट फिल्म मेरा गांव मेरा देश में एक्शन हीरो बनके ,सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्मफेयर नामांकन तक पहुंच गए कहना चाहिए बहुमुखी प्रतिभा के धनी है धर्मेंद्र जी उन्होंने अभिनय के हर पहलू को छुआ और शिद्दत से निभाया
पर्दे पर उनकी और हेमा जी की जोड़ी बेहद कामयाब रही और हेमा जी का ख़ुंमार धर्मेंद्र जी के दिल पर भी छा गया जिसके चलते शादी शुदा होने के बावजूद भी उन्होंने हेमा जी से शादी कर ली कहते हैं इसके लिए उन्हें कागज़ी तौर पर अपना धर्म भी बदलना पड़ा था पर आज तक न धर्मेंद्र जी की पहली बीवी प्रकाश कौर जी , को धर्मेंद्र जी से कोई शिकायत है न उनके बच्चों को और न हेमा जी और उनकी बेटियों अहाना और ईशा को।
आपकी जोड़ी ने राजा जानी, सीता और गीता, शराफत, नया ज़माना, पत्थर और पायल, तुम हसीन मैं जवान, जुगनू, दोस्त, चरस, मां, चाचा भतीजा, आज़ाद ,सत्यकाम, और शोले जैसी बेशकीमती फिल्में हमें बतौर तोहफा दी हैं ।
धर्मेंद्र जी की हिट फिल्मों का दौर जो चला वो आज तक नहीं थमा जी हां आज भी वो हमें पर्दे पे नज़र आते रहते हैं अभी हाल ही में ,तेरी बातों में ऐसे उलझा जिया ,फिल्म में शाहिद कपूर के दादा का रोल प्ले किया था ,यमला पगला दीवाना तो आपको याद ही होगी जिसमें वो अपने बेटों सनी देओल और बॉबी देओल के साथ दिखे थे ,
धर्मेंद्र जी ने अपने पांच दशकों के करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम किया जिनमें 1976 और 1984 के बीच कई एक्शन फिल्मों में अभिनय किया।
अब वो अभिनेता के साथ साथ निर्माता और राजनीतिज्ञ भी हैं वो लोकसभा क्षेत्र बीकानेर के सासंद रहें ।
1997 में, उन्हें हिंदी सिनेमा में उनके योगदान के लिए फिल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड मिला।
2012 में, उन्हें भारत सरकार द्वारा भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया गया ।
दिलीप साहब ने कहा था कि अल्लाह – आपने मुझे धर्मेंद्र की तरह सुंदर क्यों नहीं बनाया?”।
उनका ये दिलनशीं कारवां यूं ही चलता रहे वो खुशहाल रहें ,सेहतयाब रहें और हमें बीच बीच में नज़र आते रहें आंखों की ठंडक बनकर