Devika Rani Death Anniversary| देविका रानी – भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री

Devika Rani life story in hindi: हिंदी सिनेमा की शुरुआत 1913 में आई मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र से मानी जाती है, लेकिन उस दौर में फिल्म में स्त्री पात्रों को को भी पुरुष कलाकार ही निभाया करते थे, क्योंकि सिनेमा को अच्छा नहीं माना जाता था, तब उस बंदिशों के दौर में एक लड़की का पदार्पण हुआ, और उसके आने के साथ ही, फिल्मों में लड़कियों के आगमन की शुरुआत हुई, यह लड़की थीं देविका रानी जिन्हें हिन्दुस्तानी सिनेमा की पहली अभिनेत्री माना जाता है। उन्हें हिंदी सिनेमा की ड्रीम गर्ल और इंडियन गार्बो भी कहा जाता था।

कौन थीं देविका रानी

देविका रानी हिंदी सिनेमा की पहली अभिनेत्री के साथ ही फिल्म निर्माता और कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर भी थीं। देविका रानी का जन्म 30 मार्च 1908 को मद्रास प्रांत के विशाखापट्टनम के एक संभ्रांत बांग्ला परिवार में हुआ था, उनके पिता कर्नल मन्मथ चौधरी आर्मी में डॉक्टर थे और माँ का नाम लीला देवी था। उनके दादा दुर्गादास चौधरी जमींदार थे और दादी सुकुमार देवी, रवींद्रनाथ टैगोर की बहन थीं। देविका रानी जब 9 साल की थीं तभी उन्हें लंदन पढ़ाई के लिए भेज दिया गया था, वहीं से अपनी स्कूलिंग करने के बाद रॉयल अकेडमी ऑफ ड्रामाटिक आर्ट और रॉयल अकेडमी ऑफ म्यूजिक से अभिनय और संगीत की पढ़ाई की, इसके अलावा उन्होंने आर्किटेक्चर, सेट डिजाइनर का भी प्रशिक्षण लिया था।

हिमांशु राय के साथ मुलाक़ात

1928 में लंदन में ही उनकी मुलाक़ात हिमांशु राय से हुई, जो वहाँ फिल्म निर्माण की ट्रैनिंग के लिए आए थे, देविकारानी की प्रतिभा से प्रभावित होकर मिस्टर रॉय ने उन्हें अपनी टीम जॉइन करने के लिए आमंत्रित किया लेकिन बतौर अभिनेत्री नहीं, बल्कि सेट डिजाइनर के तौर पर, धीरे-धीरे दोनों में नजदीकी हुई और दोनों एक-दूसरे से प्रेम करने लगे और 1929 में उन्होंने शादी भी कर ली और अपने पति के साथ भारत लौट आईं।

हिंदी सिनेमा की पहली अभिनेत्री

हिमांशु राय एक फिल्म बनाना चाहते थे, जिसके लीड हीरो भी वह स्वयं थे, इसीलिए उन्होंने अपने अपोजिट अपनी पत्नी को ही कास्ट करने का फैसला किया, फिल्म थी कर्मा जो 1933 में रिलीज हुई। इस तरह हिंदी सिनेमा को पहली अभिनेत्री मिली। यह फिल्म भारत, जर्मनी और ब्रिटिश निर्माताओं ने मिलकर बनाई थी, यह इंडियन सिनेमा की पहली फिल्म थी, जिसमें किसिंग सीन था। यह फिल्म कुछ खास सफल तो नहीं रही, लेकिन समीक्षकों द्वारा सराही गई। इस फिल्म के बाद उनके पति ने बॉम्बे टॉकीज नाम के फिल्म प्रोडक्शन कंपनी और स्टूडियो की स्थापना की। इस स्टूडियो में जिस फिल्म का पहली बार निर्माण हुआ वह थी “जवानी की हवा” जो कि एक क्राइम थ्रिलर फिल्म थी, इस फिल्म में देविका रानी मुख्य अभिनेत्री थीं और उनके अपोजिट थे “नज़्म-उल-हसन“, यह पूरी फिल्म एक ट्रेन पर फिल्माई गई थी।

जब फिल्म के हीरो संग भाग गईं देविकारानी

नज़्म-उल-हसन लखनऊ के रहने वाले थे, बतौर अभिनेता उन्हें मौका हिमांशु राय ने ही दिया था, जवानी की हवा के बाद उन्हें फिल्म जीवननैया में भी देविकारानी के अपोजिट कास्ट किया गया, कहते हैं हिमांशु राय की बंदिशों से अजीज होकर देविकारानी की नजदीकी नज़्मउलहसन से हो गई, फिल्म जीवननैया की कुछ शूटिंग ही हुई थी देविकारानी अपने अभिनेता हसन के साथ भाग गईं, देविकारानी के यूँ भाग जाने से हिमांशु राय की बहुत बदनामी हुई, और वह आर्थिक तौर पर उन्हें बहुत घाटा हुआ और कर्ज भी हो गया, फाइनेंसरों के दबाव के करण हिमांशु राय ने देविका रानी को वापस बुलाने का फैसला किया। बॉम्बे टॉकीज में एक साउन्ड इंजीनियर थे शशधर मुखर्जी जो बंगाली थे और देविकारानी उन्हें अपना भाई मानती थीं। यह पता चलने के बाद कि वह भाग कर कलकत्ता गईं हैं, हिमांशु राय ने शशिधर मुखर्जी को उन्हें समझाने भेजा। मुखर्जी के समझाने के बाद वह अपने पति के वापस आ गईं और फिर से अभिनय में सक्रिय हो गईं।

जब अशोक कुमार के साथ बनी हिंदी सिनेमा की पहली सुपरहिट जोड़ी

देविका रानी तो वापस आ गईं, पर हिमांशु राय ने नज़्म-उल-हसन को बॉम्बे टॉकीज से निकाल दिया, लेकिन फिल्म तो बनानी थी इसीलिए हिमांशु राय ने शशिधर मुखर्जी के साले अशोक कुमार को बतौर अभिनेता मौका दिया जो आगे चलकर भारत के बहुत बड़े अभिनेता बने। देविका रानी और अशोक कुमार की जोड़ी ने साथ मिलकर कई सुपरहिट फिल्मों में साथ काम किया जिनमें जन्मभूमि, अछूत कन्या, सावित्री, इज्जत, निर्मला, वचन और अंजान प्रमुख हैं।

देविका रानी की लोकप्रियता

अपने 10 साल के फिल्मी कैरियर में उन्होंने कुल 15 फिल्मों में काम किया और बहुत लोकप्रिय हुईं। अछूतकन्या नाम की फिल्म में उन्होंने एक दलित लड़की का किरदार निभाया था, जिसे एक ब्राम्हण लड़के से प्यार हो जाता है, इस फिल्म में उनकी अभिनय ने दर्शकों और समीक्षकों की खूब वाहवाही बटोरी। इसके बाद उन्हें ‘फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन स्क्रीन’ और ड्रीमगर्ल भी कहा गया। यानि वह हेमामालिनी से पहले ही सिनेमा की ड्रीमगर्ल बन चुकी थीं। लेकिन उनके अभिनय, रूप और सौंदर्य के प्रशंसक खास लोग भी थे, उन्हीं में से एक थे पंडित नेहरू, देविका रानी सरोजिनी नायडू की दोस्त थीं और उनके कहने के बाद ही उन्होंने ‘अछूतकन्या’ देखी थीऔर उनके अभिनय के मुरीद हो गए, पंडित नेहरू ने बाद में उनके लिए एक प्रशंसक के तौर पर पत्र भी लिखा था।

मुंबई के गवर्नर रहे सर रिचर्ड टेंपल भी देविकारानी के सौंदर्य के मुरीदों में से थे। अछूत कन्या की शूटिंग के दौरान मुंबई के गवर्नर रहे लॉर्ड बेबार्न तो नियमित रूप से गवर्नर हाउस से शूटिंग स्थल तक जाते थे, ब्रिटेन के ज्यादातर अखबार उनके अभिनय, सुंदरता और धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलने की प्रशंसा से उन दिनों भरे रहते।

देविका रानी जिन्होंने सिनेमा में दिलीप कुमार को मौका दिया

1940 में पति हिमांशु राय के निधन के बाद बॉम्बे टॉकीज की सारी जिम्मेदारी उनके जिम्मे ही आ गई, पुनर्मिलन और किस्मत जैसी फिल्मों का निर्माण उन्होंने किया। एकबार एक यात्रा के दौरान उनकी मुलाकात एक लड़के से हुई जिसे उन्होंने मुंबई आकर अभिनय में हाथ आजमाने के लिए प्रोत्साहित किया, यह लड़का था हिंदी सिनेमा के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार, जिन्हें देविका रानी ने अपनी फिल्म ज्वारभाटा से अभिनय का मौका और आगे तो फिर पूरा इतिहास है, दिलीप कुमार के अलावा उन्होंने मधुबाला को फिल्मों में अभिनय का मौका दिया, कहतें हैं बेबी मुमताज़ का नाम मधुबाला देविकारानी ने ही रखा था।

सिनेमा से दूरी

इधर बॉम्बे टॉकीज की फिल्म्स लगातार फ्लॉप हो रहीं थीं, उसके कलाकार उसे छोड़कर दूसरे स्टूडियो में जा रहे थे, 1944 में उनकी मुलाक़ात एक रूसी पेंटर स्वेतोस्लाव रोरिक से हुई, पति के निधन के बाद अकेली रह गईं देविका रानी ने उनके अंदर एक जीवनसाथी की तलाश की और 1945 में उन्होंने उनसे शादी कर ली और फिल्म कैरियर को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। शादी के बाद वह अपने पति के साथ मनाली चली गईं, कुछ वर्ष वहाँ रहने के बाद वह अपने पति के साथ बैंगलोर शिफ्ट हो गईं, वहीं उन्होंने 450 एकड़ जमीन में बहुत बड़ा फार्म हाउस बनाया और इम्पोर्ट एक्सपोर्ट का कार्य करने लगीं।

मृत्यु और सम्मान

बैंगलोर में वह अपने मृत्युपर्यंत रहीं, 1993 में उनके पति का निधन हो गया और उसके एक ही साल बाद 9 मार्च 1994 को सांस लेने में तकलीफ के चलते उनकी भी मृत्यु हो गई। 1958 में भारत सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया, जबकि 1969 में उन्हें सिनेमा के क्षेत्र में दिया जाने वाला सबसे प्रमुख दादा साहब फाल्के अवार्ड से भी सम्मानित किया गया, यह सम्मान पाने वाली वह पहली कलाकार थीं। 1990 में सोवियत रूस ने उन्हें ‘सोवियत लैंड नेहरु अवार्ड’ से उन्हें सम्मानित किया। अपने गुस्से की वजह से उन्हें हिंदी सिनेमा की ड्रैगन लेडी भी कहा जाता था। वह भारतीय सिनेमा की पहली अभिनेत्री मानी जाती हैं, उन्होंने भारतीय सिनेमा को वैश्विक स्तर के सिनेमा के समकक्ष तक पहुँचाने का भरपूर प्रयास किया।

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