Dev Anand Death Anniversary: सुरैया संग थे देव आनंद के प्यार के चर्चे

Dev Anand Death Anniversary: (Author Nyaziya)आज बात करते हैं ऐसे अभिनेता की जिनका हर अंदाज़ मुख्तलिफ था लोग उनपर इस क़दर फिदा थे कि एक झलक पाने को घंटों खड़े रहते थे और कहते हैं कि इस हुजूम में कई हादसे भी हुए जिसकी वजह से उन्हें और जचने यानी उनका पसंदीदा काला कोट पैंट पहनने के लिए कोर्ट ने मना कर दिया था इस पर पाबंदी लगाने के लिए बाकायदा नोटिस जारी किया गया था ,
पर हर हाल में ये भोला सदाबहार हीरो कहर ढाता था ख़ास कर लड़कियों पर जी हां ये थे हम सबके चहीते देव आनंद साहब जो खुद कहते थे कि मै कुछ अलग नहीं करता हूं जैसा पर्दे के पीछे हूं वैसा ही आपको पर्दे पर भी नज़र आता हूँ मेरा हंसी मज़ाक मेरा बोलना बात करना सब वैसा ही है यहां तक कि मेरा मफलर या टोपी पहनने का स्टाइल भी अपना है ।

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पर हम तो यही कहेंगे कि ऊपर वाले न उन्हें बड़ा फुरसत से बनाया था ज़हानत की भी वो उम्दा मिसाल थे।
जिसकी वजह से हमेशा चर्चा में रहे फिर चाहे उनकी रील लाइफ हो ,रियल लाइफ हो या फिर उन्हीं की तरह उनका खूबसूरत इश्क़ अभिनेत्री सुरैया से,जिसके अधुरा रहने की खबरें जहां एक तरफ ज़ोरों पर थी वहीं सुरैया को त उम्र इस बात का अफ़सोस रहा कि वो अपने घर के खिलाफ जाकर देव साहब का हाँथ न थाम सकीं।
देव साहब को भी इस बात का बहोत दुख हुआ और कुछ वक्त बाद उन्होंने अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से शादी कर ली।
तो चलिए आज उनको क़रीब से जानने की कोशिश करते हैं,देव आनंद जी का पूरा नाम था धर्मदेव पिशोरीमल आनंद वो 26 सितंबर 1923 को पंजाब के गुरदासपुर ज़िले की शकरगढ़ तहसील में पैदा हुए आपके
पिता पिशोरी लाल आनंद जी गुरदासपुर ज़िला न्यायालय में वकील थे।
देव जी की छोटी बहन शील कांता कपूर, फिल्म निर्देशक शेखर कपूर की माँ हैं । उनके बड़े भाइयों में मनमोहन आनंद और चेतन आनंद थे , और विजय आनंद उनके छोटे भाई थे , आप सब भाइयों में आपस में बहुत बनती थी,देव साहब ने आगे चलकर अपने बड़े भाई चेतन आनंद के साथ नवकेतन फिल्म्स की सह स्थापना की थी ।


अब बात करते हैं उस दौर की जब उन्होंने जवानी की दहलीज़ में क़दम रखा और अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद 40 के दशक की शुरुआत में जब आनंद ने अपना गृहनगर छोड़ दिया और बॉम्बे चले गए थे, जहां उन्होंने सैन्य सेंसर कार्यालय में 65 रुपये मासिक वेतन पर अपना करियर शुरू किया और फिर उन्होंने 85 रुपये के वेतन पर एक लेखा फर्म में बतौर क्लर्क की नौकरी कर ली थी अगर वो वहीं काम करते रहते तो आज हम देव आनंद साहब की बात न कर रहे होते पर अच्छा हुआ एक दिन देव साहब ने अछूत कन्या और किस्मत जैसी फिल्मों में अशोक कुमार के अभिनय को देख लिया जिसके बाद उनमें भी अभिनय करने की ख्वाहिश जगी इसलिए वो भाई चेतन के साथ (IPTA) यानी इंडियन पीपुल्स थिएटर एसोसिएशन के सदस्य बन गए और कुछ वक्त बाद प्रभात फिल्म स्टूडियो के बाबू राव पई के ऑफिस इंटरव्यू देने पहुंच गए ,जिसके बारे में वो खुद बताते थे कि
“मुझे याद है कि जब मैं राव पई के कार्यालय में दाख़िल हुआ तो वो मुझे देखते रह गए और मुझे बाद में पता चला कि उस समय उन्होंने मन बना लिया था कि ये लड़का एक ब्रेक का हकदार है और उन्होंने लोगों से कहा कि ‘इस लड़के की मुस्कान और खूबसूरत आंखों के साथ ज़बरदस्त आत्मविश्वास ने मुझे बहोत प्रभावित किया।'” ख़ैर इसके बाद जल्द ही प्रभात फिल्म्स की (१९४६) की फिल्म हम एक हैं में मुख्य भूमिका मिल गई ये फिल्म हिंदू-मुस्लिम एकता के बारे में थी, जहां देव आनंद ने एक हिंदू लड़के की भूमिका निभाई थी और उनके साथ कमला कोटनीस थीं।


पुणे में फिल्म की शूटिंग के दौरान ही देव आनंद साहब की दोस्ती अभिनेता गुरु दत्त से हुई थी जो एक दूसरे का हमेशा साथ देते रहे , लेकिन तब तो दोनों फिल्म जगत में नए कलाकार ही थे और इस मुलाक़ात के दो साल बाद ही 1948 की फिल्म
जिद्दी से देव साहब ने अपनी पहचान बनाई थी फिर आई(1951) की ब्लॉकबस्टर क्राइम थ्रिलर बाज़ी जिसने उन्हें बुलंदियों पर पहुंचा दिया, जिसे 1950 के दशक में बॉलीवुड में आने वाली “बॉम्बे नोयर” फिल्मों की श्रृंखला का अग्रदूत माना जाता है।
फिर उनके अभिनय से सजी लगातार ब्लॉक बस्टर फिल्मों का दौर चल निकला जिनमें थीं ,जाल , टैक्सी ड्राइवर , इंसानियत, मुनीमजी , सीआईडी ​​, पेइंग गेस्ट , काला पानी और काला बाजार ।


लेकिन 60 के दशक की फिल्मों जैसे, मंजिल जब प्यार किसी से होता है , हम दोनों , असली-नकली और तेरे घर के सामने ने उन्हें बेहद रोमांटिक छवि का हीरो बना दिया यहां हम
1965 की फिल्म गाइड को कैसे भूल सकते हैं जो उन के करियर मील का पत्थर मानी जाती है आरके नारायण के उपन्यास पर आधारित इस फिल्म ने 38वें अकादमी पुरस्कारों में सर्वश्रेष्ठ विदेशी भाषा फिल्म के लिए प्रवेश किया इसके बाद थ्रिलर फिल्म ज्वेल थीफ और जासूसी से भी प्रेम पुजारी के साथ अपने निर्देशन में कदम रखा । 70 और 80 के दशक में उन्होंने कई बेहद सफल फ़िल्मों में काम किया, जिनमें जॉनी मेरा नाम (1970), जो उस साल की सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली फ़िल्म थी।
कुछ और फिल्मों का ज़िक्र करें तो ,
हरे रामा हरे कृष्णा , बनारसी बाबू, हीरा पन्ना, अमीर ग़रीब , वारंट , देस परदेस , स्वामी दादा और लश्कर उस वक्त की मशहूर फिल्में थीं ।
2011 की फ़िल्म चार्जशीट आप की आखिरी फ़िल्म थी।


उनकी कई फ़िल्मों ने दुनिया को एक नया नज़रिया दिया है सांस्कृतिक दृष्टिकोण के साथ साथ कई सामाजिक मुद्दों पर भी प्रकाश डाला ,ऐसा ही कुछ हमें काला पानी और गाइड फ़िल्मों में भी देखने को मिलता है जिसके लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार भी जीता ।
त ज़िंदगी उम्दा काम करते हुए अपनी कोशिशों को कामयाब करते हुए 3 दिसंबर 2011 को वो अपनी मंज़िल ए मकसूद पर पहुंच कर इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए,
छह दशकों से अधिक के करियर में, उन्होंने 100 से अधिक फिल्मों में काम किया। आनंद को चार फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है , जिसमें दो सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के लिए हैं । भारत सरकार ने उन्हें 2001 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण और 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया।

उनके अंदाज़ को आज भी कॉपी किया जाता है पर वो अदाकारी , वो अंदाज़, वो नफासत, वो भोलापन जिसके लिए हम आज भी तरसते हैं और बेकरार हो जाते हैं उनकी फिल्में देखने के लिए वो देव आनंद ,दूसरा नहीं हो सकता ।

यह भी देखें :https://youtu.be/iq2bKsDmaS4?si=GktXw_fYxptUiJnq

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