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Delhi HC ने कहा- UCC वक्त की जरूरत, मुस्लिम लॉ में बालविवाह कानूनी मगर लेकिन पॉक्सो में क्राइम

Delhi High Court On Uniform Civil Code: दिल्ली हाईकोर्ट ने बाल विवाह के एक मामले में सुनवाई के दौरान समान नागरिक संहिता (UCC) की जरूरत पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि पर्सनल लॉ में बाल विवाह की अनुमति है, लेकिन POCSO एक्ट और भारतीय न्याय संहिता (BNS) में इसे अपराध माना गया है। इस टकराव को खत्म करने के लिए UCC लागू करना समय की मांग है। यह टिप्पणी हामिद रजा नामक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान आई।

Hameed Raza Case, POCSO Bail Hearing: हामिद रजा पर IPC की धारा 376 (बलात्कार) और POCSO एक्ट के तहत मामला दर्ज है। आरोप है कि उन्होंने नाबालिग लड़की से शादी की। FIR लड़की के सौतेले पिता ने दर्ज कराई, लेकिन दस्तावेजों में उम्र को लेकर विरोधाभास है। लड़की का जन्म 2010-11 बताया गया, लेकिन अस्पताल रिकॉर्ड में पहली डिलीवरी के समय 17 साल उम्र दर्ज है। लड़की ने हलफनामे में खुद को 23 साल बताया। साथ ही, सौतेले पिता पर ही लड़की का यौन शोषण और उसके पहले बच्चे का पिता होने का आरोप है। कोर्ट ने FIR की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए।

“क्या अब UCC की तरफ बढ़ने का समय नहीं आ गया है?

जस्टिस अरुण मंगला की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा, “क्या समाज को लंबे समय से चले आ रहे पर्सनल लॉ का पालन करने के लिए अपराधी बनाया जाना चाहिए?” उन्होंने आगे जोर दिया, “क्या अब UCC की तरफ बढ़ने का समय नहीं आ गया है, जिसमें एक ऐसा ढांचा बनाया जाए, ताकि पर्सनल लॉ जैसे कानून राष्ट्रीय कानूनों पर हावी न हों?

कोर्ट ने उम्र विवाद को ट्रायल में तय करने को कहा। साथ ही, रजा की गिरफ्तारी को संवैधानिक मानदंडों का उल्लंघन और केस दर्ज करने में देरी को तेज ट्रायल के अधिकार का हनन बताया। नतीजतन, हामिद रजा को जमानत दे दी गई।

कोर्ट ने इस्लामी पर्सनल लॉ का जिक्र किया, जहां प्यूबर्टी (लगभग 15 साल) पर शादी की इजाजत है। लेकिन POCSO, IPC और BNS में बाल विवाह अपराध है। उत्तराखंड को आजादी के बाद पहला राज्य बताया, जहां UCC लागू हुआ। गोवा में पुर्तगाली सिविल कोड के तहत पहले से UCC है। CM पुष्कर सिंह धामी ने 27 जनवरी 2025 को UCC की घोषणा की। पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “संविधान में समान नागरिक संहिता की इच्छा व्यक्त की गई है। संविधान के 75 साल बाद अब समय है कि इस लक्ष्य को हासिल किया जाए।”

यह टिप्पणी UCC बहस को नई गति दे सकती है। UCC से बाल विवाह, हलाला, बहुविवाह और तलाक-ए-बिद्दत जैसी प्रथाएं खत्म हो सकती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे सभी समुदायों में कानूनी एकरूपता आएगी और सामाजिक सद्भाव बढ़ेगा। केंद्र सरकार UCC पर काम कर रही है, लेकिन धार्मिक संगठनों का विरोध है।

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