Delhi Air Pollution: जानिए दिल्ली प्रदूषण की असली वजहदिल्ली में इस वक्त जबरजस्त प्रदूषण है। बढ़ते प्रदूषण के स्तर के लिए राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर चलने वाले वाहनों को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि सर्दियों के महीनों में दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को प्रभावित करने वाले प्रदूषकों में वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन सबसे बड़ा योगदानकर्ता है।
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गौरतलब है कि दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के स्तर के लिए राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर चलने वाले वाहनों को सबसे ज्यादा जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। एक नए अध्ययन से पता चला है कि सर्दियों के महीनों में दिल्ली के वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) को प्रभावित करने वाले प्रदूषकों में वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (CSE) ने अपने अध्ययन का समर्थन आंकड़ों के साथ किया है। आंकड़े बताते हैं कि स्थानीय स्रोतों से फैलने वाले प्रदूषकों में आधे से ज्यादा हिस्सा वाहनों का है। दिल्ली वर्तमान में बहुत खराब वायु गुणवत्ता की चपेट में है। क्योंकि 31 अक्तूबर को दिवाली के त्योहार के बाद से प्रदूषण का स्तर उच्च बना हुआ है।
सीएसई ने जारी किया आकड़ा
सीएसई द्वारा साझा किए गए नए अध्ययन में कहा गया है कि स्थानीय स्रोत दिल्ली के प्रदूषण में लगभग 30 प्रतिशत का योगदान देते हैं। जिसमें सड़क की धूल, निर्माण गतिविधियों से होने वाला प्रदूषण या दिवाली के त्योहारों के दौरान जलाए जाने वाले पटाखों की तुलना में वाहनों से होने वाला उत्सर्जन सबसे बड़ा हिस्सा है। दिल्ली में रोजाना करीब 11 लाख निजी या व्यावसायिक वाहन सड़कों पर चलते हैं।
इसके साथ ही सीएसई ने आईआईटीएम, टेरी-एआरएआई, सीपीसीबी के रियल-टाइम एयर क्वालिटी डेटा और गूगल मैप्स से ट्रैफिक डेटा जैसे विभिन्न निकायों के डेटा का विश्लेषण करने के बाद अपना अध्ययन तैयार किया है।
सीएसई की निदेशक सुनीता नारायण ने कहा, “हालांकि प्रतिकूल मौसम की स्थिति के कारण सर्दियों के दौरान खेतों में आग लगाने और पटाखे जलाने से प्रदूषण बढ़ता है, लेकिन वे अकेले इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। सबसे बड़ा कारण वाहनों से निकलने वाला उत्सर्जन है और हमें इस समस्या से निपटने के लिए साल भर प्रयास करने की जरूरत है। आपातकालीन उपाय के तौर पर सिर्फ जीआरएपी (GRAP) को लागू करना ही काफी नहीं होगा।”
दिल्ली प्रदूषण : ट्रैफिक जाम का प्रभाव
ट्रैफिक जाम भी राष्ट्रीय राजधानी में वायु गुणवत्ता को खराब करने का कारण बनता है। सीएसई के डेटा से पता चला है कि शाम 5 बजे से रात 9 बजे के बीच पीक ट्रैफिक घंटों के दौरान, औसत ट्रैफिक की रफ्तार 15 किमी प्रति घंटे तक कम हो जाती है। लगभग इसी समय, NO2 का स्तर दोपहर 12 बजे से सायं 4 बजे के बीच, जब ट्रैफिक की औसत रफ्तार 21 किमी प्रति घंटा होती है, की तुलना में 2.3 गुना ज्यादा होता है।
दिलचस्प बात यह है कि रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि वाहन पार्किंग की उच्च मांग भी संसाधनों पर दबाव डालती है। इसने शहर की 10 प्रतिशत से ज्यादा भूमि पर कब्जा कर लिया है। और सालाना पंजीकृत नई कारों के लिए 615 फुटबॉल मैदानों के बराबर जगह की जरूरत होती है।
दिल्ली प्रदूषण: पराली जलाने और पटाखे जलाने से कितना प्रदूषण होता है?
अध्ययन में यह भी कहा गया है कि स्थानीय स्रोतों से फैलने वाला प्रदूषण दिल्ली में वायु गुणवत्ता को खराब करने में सबसे बड़ा योगदानकर्ता नहीं है। इसमें कहा गया है कि दिल्ली को पड़ोसी क्षेत्रों से फैलने वाले प्रदूषण से ज्यादा नुकसान होता है। जो लगभग 35 प्रतिशत प्रदूषक सामग्री का योगदान करते हैं। दिल्ली दुनिया के कुछ सबसे प्रदूषित शहरों के बगल में स्थित है। जिसमें उत्तर प्रदेश के गाजियाबाद और ग्रेटर नोएडा जैसे शहर शामिल हैं, जहां कई औद्योगिक इकाइयां भी मौजूद हैं। पड़ोसी क्षेत्रों से होने वाला प्रदूषण दिल्ली के भीतर स्थानीय स्रोतों की तुलना में पांच प्रतिशत अधिक योगदान देता है।
दिल्ली में प्रदूषण बढ़ने के अन्य कारणों में पराली जलाना भी शामिल है। जो आश्चर्यजनक रूप से शहर की बिगड़ती वायु गुणवत्ता में मात्र 8.19 प्रतिशत का योगदान देता है।
क्या हैं सीएसई के सुझाव
प्रदूषण कम करने के लिए सीएसई ने दिल्ली की स्थानीय सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था में सुधार समेत कई उपाय सुझाए हैं। दिल्ली का मेट्रो रेल नेटवर्क और दिल्ली परिवहन निगम द्वारा संचालित बसें वर्तमान में यात्रियों द्वारा उपयोग किए जाने वाले सार्वजनिक परिवहन के दो प्रमुख स्रोत हैं। इन दोनों प्रणालियों के मजबूत नेटवर्क के बावजूद, सीएसई का मानना है कि दिल्ली में अभी भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली की कमी है, जो प्रदूषण को कम करने में मदद कर सकती है। दिल्ली में वर्तमान में 7,683 बसें हैं जिनमें लगभग 1,970 इलेक्ट्रिक बसें भी शामिल हैं।
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