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Death Anniversary Of White Tiger Mohan: दुनिया के पहले सफ़ेद बाघ ‘मोहन’ की कहानी

Story Of White Tiger Mohan: बाघ…. एक ऐसा जानवर जो गर्व और शक्ति का प्रतीक है लेकिन कई लोग इस वन्यजीव से नफरत भी करते हैं क्योंकि ये खूंखार, जानलेवा और निर्दयी भी होता है. लेकिन आज से लगभग साढ़े पांच दशक पहले एक ऐसी घटना हुई थी जब दुनियभर के लोग एक बाघ की मौत पर रोए थे, एक रियासत की पूरी प्रजा मर चुके बाघ को अंतिम विदाई देने के लिए सड़कों पर उमड़ पड़ी थी. उस दिन कभी न झुकने वाला बघेलखंड साम्राज्य का परचम भी गिरा दिया गया था, बाघ की मौत ने उसके रखवालों और यहां तक कि उसके मालिक और उस रियासत के महाराज को भी इतना दुःखी कर दिया था कि वे खाना-पीना छोड़ एकांतवास में चले गए थे. वो कोई साधारण बाघ नहीं था बल्कि दुनिया का पहला सफ़ेद बाघ ‘मोहन’ था.

सफ़ेद बाघ मोहन की कहानी

ये कहानी शुरू होती है 1951 से, तब रीवा रियासत के महाराज मार्तण्ड सिंह अपने शाही मेहमान जोधपुर के महाराज अजीत सिंह के साथ सीधी जिले के कुसमी क्षेत्र में पड़ने वाले बरघी जंगल में शिकार करने के लिए निकले। तब राजा-महाराजा जंगली जानवरों का शिकार कर उन्हें अपनी दीवारों की रौनक बढ़ाने का शौक रखते थे. महाराज अपने शाही मेहमान के साथ 27 मई से लेकर 4 जून तक अभियान चलाते हैं और इस दौरान 13 बाघ, जिनमे 6 नर, 5 मादा और 2 शावकों का शिकार करते हैं. लेकिन महाराजा मार्तण्ड सिंह एक शावक की जान बक्श देते हैं और उसे अपने महल ले जाते हैं.

वो कोई आम पीले रंग का शावक नहीं था बल्कि दूध सा सफ़ेद, गुलाबी नाक और तेज दांतो वाला ऐसा बाघवंश था जिसे पहले कभी दुनिया के किसी कोने में न देखा गया और ना ही इसके बारे में कभी सुना गया. वो शावक कोई और नहीं बल्कि दुनिया का पहला सफ़ेद बाघ मोहन था. आज 19 दिसंबर है और आज से 54 साल पहले मोहन का निधन हुआ था.

जब गोविंदगढ़ आया सफ़ेद बाघ मोहन

जंगल में एक गुफा के अंदर वह डरा-सहमा हुआ नन्हा सा सफ़ेद शावक महाराज की आंखों में चमक रहा था. महाराज ने उसका शिकार करने की जगह उसे पकड़ने का मन बनाया और पिंजरा मंगवाकर उसे अपने कब्जे में ले लिया। महाराज ने उस दुर्लभ बाघ को अपने शाही महल गोविंदगढ़ के किले में पालने की योजना बनाई। महाराज अपना अभियान खत्म कर अपने महल तक पहुँचते उससे पहले ही यह खबर पूरी रियासत में पहुंच गई कि रीवा के महाराज ने एक अद्भुत शावक को पकड़ा है.

जब महाराज गोविंगढ़ पहुंचे तो पूरा क्षेत्र उस सफ़ेद शावक के दीदार के लिए महल में उमड़ पड़ा. महाराज उस शावक के सौंदर्य से इतना मोहित हो गए कि उसका नाम मोहन रख दिया।

जबतक मोहन शावक रहा, तबतक महाराज भी उसके साथ खेला करते थे लेकिन जब शावक मोहन, बाघ बन गया तो उसे एक विशाल बाड़े तक सिमित कर दिया गया. फिर भी महाराज हर रोज़ मोहन के साथ फुटबॉल खेलने के लिए उसके बाड़े के पास जरूर जाते थे.

मोहन से सभी अदब से पेश आते थे

इतिहासकारों का कहना है कि सफ़ेद बाघ मोहन की इज्जत और खिदमत वैसे ही होती थी जैसे किसी राजवंश के महाराज की। मोहन के केयरटेकर अदब से पेश आते थे. सभी उसे मोहन सिंह इधर आइये, मोहन सिंह भोजन करिये जैसे सम्मानित भाषा से ही पुकारते थे.

मोहन की कहानी को गहराई से जानने वाले बताते हैं कि वे रविवार के दिन खाना नहीं खाता था. चाहे कोई कितनी भी कोशिश कर ले, खुद महाराज साहब भी उसे खाना परोसें तो भी नहीं। रविवार के दिन वो सिर्फ दूध पीता था. वो ऐसा क्यों करता था यह रहस्य ही रह गया.

एक बार मोहन गोविंदगढ़ किले की दिवार फांद कर भाग निकला था, काफी देर तक जब उसकी खोज की गई तब मोहन मुकुंदपुर की मांद रिर्जव के जंगली क्षेत्र में मिला। कहा जाता है कि यह क्षेत्र बाघों को काफी भाता था.

पूरी दुनिया में मोहन के वंशज

1955 में पहली बार मोहन की ब्रीडिंग करवाई गई, लेकिन उसकी रानी एक सामान्य बाघिन थी. दोनों के शावक भी सामान्य पीले रंग के पैदा हुए. 30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा ने चार शावकों को जन्म दिया जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया. 19 वर्षों तक जीवित रहे मोहन की तीन रानियां थीं. मोहन से कुल 34 शावक जन्मे, जिनमे 21 सफ़ेद थे. मोहन की रानियों में बेगम ने 14, राधा 7 और सुकेशी ने 13 सफेद बाघों को जन्म दिया था. 6 सितंबर को 1967 में मोहिनी और सुकेशी से चमेली और 17 नवंबर 1967 को सफ़ेद शावक विराट जन्मा।

नेहरू और राजेंद्र प्रसाद इसी लिए रीवा आए थे

मोहन के वंशजों को एक-एक करके इंग्लैड, अमेरिका और यूरोप देशों में भेजा गया. सफेद बाघ होने की आश्चर्यजनक खबर सुनकर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू रीवा आए थे. महाराज मार्तंड सिंह ने इन्हे बाघ उपहार में दिए थे. बाघ की खरीदी बिक्री भी यहां शुरू हुई. ब्रिटेन की महारानी को बाघ की ट्रॉफी भेंट की गई. इस तरह से मोहन की संताने दुनियाभर में फैल गईं.

मोहन की मौत ने सभी को रुला दिया

19 दिसंबर 1969 को 19 वर्ष की उम्र में सफेद बाग मोहन की मौत हो गई। मोहन की मौत के बाद कई दिनों के लिए महाराज एकांत में चले गए। उस दिन रीवा में राजकीय शोक घोषित किया गया था। बांधवगद्दी के राजसी ध्वज में पार्थिव शरीर ढंका गया, बंदूकें झुकाकर सलामी दी गई। गोविन्दगढ बाघ महल में मोहन का वंशज विराट आखिरी बाघ था, इसकी मौत के बाद महाराज का बाघों से मोह भंग हो गया और बाघों को यहां से बाहर भेज दिया गया।

मोहन की मौत के बाद सुकेशी नाम की बाघिन को दिल्ली के चिडिय़ाघर भेजा गया।
चमेली को लेकर मोहन के केयर टेकर पुलुआ बैरिया को भी दिल्ली बुला लिया गया।
8 जुलाई 1976 को आखिरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मौत हो गई।

एक सफ़ेद बाघ पूरे विंध्य की पहचान बन गया, आज दुनिया में जितने भी सफ़ेद बाघ हैं उनका DNA विंध्य से जुड़ा हुआ है. विन्ध्यवासी इस बात को गर्व से कहते हैं कि हम उस धरा से हैं जिसने दुनिया को सबसे पहले सफ़ेद बाघ से रूबरू कराया, दुनिया तक सफ़ेद बाघों को पहुँचाया।

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