न्याजिया बेग़म
Death anniversary of classical singer Ustad Sultan Khan: सारंगी की मधुर धुन को छेड़ कर गाने वाले, सात सुरों के खेल से अपने हुनर का लोहा मनवाने वाले, विश्व भर में सारंगी को एक नई पहचान दिलाने वाले । जी हां, हम बात कर रहे हैं सौ रंगों की बहार अपने नाम में संजोए ,सारंगी को बजाने में महारथ हासिल करने वाले जोधपुर घराने के एक भारतीय सारंगी वादक और शास्त्रीय गायक उस्ताद सुल्तान खान की जो ज़ाकिर हुसैन और बिल लासवेल के साथ भारतीय फ्यूजन समूह तबला बीट साइंस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे । उन्हें 2010 में भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान, पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। सुल्तान खान का जन्म 15 अप्रैल 1940 को राजस्थान के सीकर ज़िले में हुआ था, जो भारतीय साम्राज्य की एक रियासत थी । उन्होंने अपने पिता उस्ताद गुलाब खान से सारंगी सीखी। उनके भाई स्वर्गीय नासिर खान और उनके छोटे भाई नियाज़ अहमद खान सितार वादक थे।
पहला प्रदर्शन ग्यारह साल की उम्र में
उन्होंने अपना पहला प्रदर्शन ग्यारह साल की उम्र में अखिल भारतीय संगीत सम्मेलन में दिया था, और जॉर्ज हैरिसन के 1974 डार्क हॉर्स वर्ल्ड टूर पर रविशंकर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन किया था। उन्हें उस्ताद अमीर खान , उस्ताद बड़े गुलाम अली खान , जैसे सभी महान संगीत उस्तादों के साथ संगत करने का सौभाग्य मिला। सुल्तान खान ने 1960 में 20 साल के नौ जवान के रूप में गुजरात के राजकोट में ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन से अपना करियर शुरू किया और राजकोट में आठ साल बहुत खुशी से काम करते हुए, एक दिन उन्हें लता मंगेशकर की राजकोट यात्रा के दौरान उनके साथ संगत करने का मौका मिला और लता जी ने उन्हें गाते – गाते सारंगी बजाने के लिए कहा जो उनकी दोनों कलाओं का एक साथ उत्कृष्ट प्रदर्शन रहा जिससे लता जी भी बहोत खुश हो गईं ,सुल्तान खान जी के लिए भी ये करियर का अहम मोड़ साबित हुआ ,कुछ दिनों बाद उनका तबादला मुंबई रेडियो स्टेशन में कर दिया गया।
मुंबई रेडियो से जुड़ने के बाद
मुंबई रेडियो से जुड़ने के बाद, वह न केवल मुंबई शास्त्रीय संगीत संघ बल्कि फिल्म उद्योग संगीत से भी जुड़ गए क्योंकि तब तक वो बहोत से नामचीन हस्तियों को जानने लगे थे । इसके बाद ही उन्होंने डिज़रिथिमिया के पहले एलपी और गेविन हैरिसन के 1998 के एल्बम सैनिटी एंड ग्रेविटी में स्वर और सारंगी का योगदान दिया फिर मौका मिला उमराव जान फिल्म का ‘जिंदगी जब तेरी बज़्म में लाती है मुझे’ गाने को अपनी सारंगी की धुन से ऐसा सवांरने का और ये गीत अमर हो गया. इसके बाद 1999 में हिंदी फिल्म हम दिल दे चुके सनम में कविता कृष्णमूर्ति और शंकर महादेवन के साथ ” अलबेला सजन आयो रे …” गीत गाया और मकबूल , कच्चे धागे , मिस्टर एंड मिसेज अय्यर जैसी फिल्मों में भी अपनी आवाज़ दी । इसके अलावा परज़ानिया , जब वी मेट , अग्नि वर्षा , सुपरस्टार , राहुल और पांच में भी अपने हुनर का जलवा दिखाया । उन्होंने पाकिस्तानी क़व्वाली गायक ,नुसरत फतेह अली खान का भी गायन में साथ दिया।
ऑस्कर विजेता फिल्म गांधी में था संगीत
1982 में, ऑस्कर विजेता फिल्म गांधी में भी उनका संगीत था और उसके बाद उन्होंने 1983 में हीट एंड डस्ट जैसी अन्य हॉलीवुड फिल्मों के लिए भी आपने साज़ और आवाज़ का जादू बिखेरा ,फिल्म के लिए ही महात्मा गांधी की हत्या और अंतिम संस्कार के दुखद दृश्यों के दौरान सुल्तान खान ने उदास और मर्मस्पर्शी सारंगी बजाई जो अपने आप में एक मिसाल है। 1993 में, उन्होंने यूनाइटेड किंगडम के हाउस ऑफ कॉमन्स के एक कमरे में उस्ताद अल्ला रक्खा और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के साथ मिलकर एक दुर्लभ संगीत पेश किया जिसे देखने के लिए जानी मानी हस्तियां पहुंची और उसके बाद ही वो बीबीसी रेडियो लंदन के नियमित कलाकार बन गये और बीबीसी 2 डॉक्यूमेंट्री “लंदन कॉलिंग” के लिए संगीत भी तैयार किया।
फिल्म निर्माता इस्माइल मर्चेंट के साथ जुड़ाव
फिल्म निर्माता इस्माइल मर्चेंट के साथ जुड़ाव तब और बढ़ गया जब उस्ताद सुल्तान खान ने उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के साथ मिलकर फिल्म इन कस्टडी (1993) के लिए साउंडट्रैक तैयार किया जिसमें संगीत को उर्दू भाषा की एक विशेष शैली के अनुरूप अनुकूलित किया गया । इसके बाद, उस्ताद सुल्तान खान ने एक मर्चेंट आइवरी प्रोडक्शन के लिए भी संगीत रचा , जिसे “द स्ट्रीट म्यूज़िशियन ऑफ़ बॉम्बे” कहा गया। सुल्तान खान सन 2000 में टाइम्स ऑफ एविल में जोनास हेलबोर्ग और गिटार वादक शॉन लेन के साथ गुड पीपल में दिखाई दिए और एक साक्षात्कारकर्ता में कहा कि, “पश्चिमी प्रभावों ने मेरे संगीत को एक अलग आयाम दिया है।” उन्होंने पिया बसंती नाम का एल्बम भारतीय पार्श्व गायिका केएस चित्रा के साथ बनाया जो उस साल का नंबर एक एल्बम रहा जिसके शीर्षक गीत ने कई पुरस्कार भी जीते । उनके कुछ और एल्बम भी काफी मशहूर हुए जैसे उस्ताद और दीवाज़, शून्य , भूमि , और उस्ताद नुसरत फतेह अली खान के साथ पुकार ,यही नहीं , सुल्तान खान ने गीत भी लिखे और तमिल फिल्म योगी के लिए तो अभिनय भी किया । उन्होंने योगी की थीम और उसी एल्बम के गीत “यारोदु यारो” के लिए एकल सारंगी भी बजाई ।
कई अन्य संगीत पुरस्कार अपने नाम किये
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार सहित कई अन्य संगीत पुरस्कार भी आपके नाम रहे, साथ ही 1998 में महाराष्ट्र का गोल्ड मेडलिस्ट पुरस्कार और अमेरिकन एकेडमी ऑफ आर्टिस्ट अवॉर्ड भी आपने जीता लेकिन वो वक्त भी आया जब ये सुरीला कारवां थम गया ,लंबी बीमारी के बाद उनके एल्बम, पिया बसंती रे की रिलीज़ की 11वीं वर्षगांठ की पूर्व संध्या पर 27 नवंबर 2011 को वो अनुपम सुर लहरियों को तलाशते हुए हमसे दूर चले गए इस फ़ानी दुनिया को अलविदा कह गए। वो पिछले चार वर्षों से किडनी डायलिसिस से गुज़र रहे थे और अपने जीवन के आखिरी कुछ दिनों में उनकी आवाज़ चली गई थी। पर वो हमें अपने संगीत का वो अनमोल खज़ाना दे गए हैं जिसकी बदौलत वो हमेशा जावेदा रहेंगे,कहते हैं उनकी सारंगी उनके साथ गाती थी वो भारतीय संगीत की सभी शैलियों की बारीकियों को श्रोताओं के समक्ष प्रस्तुत करती थी ,जिसकी वजह से हम मंत्रमुग्ध हो जाते थे और आज भी जब इसे सुनते हैं तो इसकी रौ में , इसके बहाव में बह जाते हैं। सारंगी के अलंकृत और चमत्कारी रूप को और शास्त्रीय संगीत की सहजता को शायद हम उस्ताद सुल्तान खान की वजह से ही महसूस कर पाते हैं ।