न्याजिया बेगम
Death anniversary Husnlal Bhagatram: अभी तो मैं जवान हूं, कभी उदासी में आप ये गाना सुन के देखिए ये इतना पुर असर है कि इसके संगीत और बोलों से आप पल भर में ही तर – ओ – ताज़ा और जोश से भरा हुआ महसूस करेंगे और ये कमाल है, प्रसिद्ध वायलिन वादक, भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक और संगीतकार हुस्न लाल जी का, लेकिन गायक के रूप में उनकी प्रतिभा को हम सब नहीं जानते ।. हुस्न लाल की बात चले और भगतराम का ज़िक्र न हो ऐसा तो हो ही नही सकता क्योंकि न केवल आप दोनों भाई थे बल्कि बॉलीवुड की पहली दिग्गज संगीत निर्देशक जोड़ी भी थे। भगत राम ने 1930 के दशक में अकेले “भगत राम बातिश” नाम से कुछ फिल्मों के लिए संगीत तैयार किया वो एक कुशल हारमोनियम वादक माने जाते थे। 1944 में, वो और हुस्न लाल पहली बार हुस्न लाल – भगत राम नाम से एक फिल्म के लिए संगीत तैयार करने के लिए एकजुट हुए और धीरे धीरे दोनों भाई 1940 और 1950 के दशक की शुरुआत में लोकप्रिय संगीतकार बन गए , हुस्न लाल का जन्म 8 अप्रैल 1920 को और भगतराम का जन्म 1914 को ,काहमा, पंजाब, ब्रिटिश भारत में हुआ था ।
हुस्नलाल भगतराम की कुछ सर्वश्रेष्ठ रचनाओं की फ़ेहरिस्त पर हम नज़र डालें तो ,कुछ गीत अपने पुर कशिश संगीत से हमें आज भी अपनी ओर खींच लेते हैं जैसे फिल्म बड़ी बहन के गीत ,चले जाना नहीं और चुप चुप खड़े हो वो मेरी तरफ यूं चले आ रहे – , लहरों से पूछ लो – फिल्म काफ़िला के गीत तेरे नैनों ने चोरी किया फिल्म ( प्यार की जीत ) क्या यही तेरा प्यार है और
हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाए फिल्म ( मिर्ज़ा साहिबां) ओ परदेसी मुसाफिर, कैसे करता है इशारे फिल्म ( बलम ) – लता मंगेशकर और सुरैया के बीच आधी रात फिल्म का एक दुर्लभ युगल गीत हमें दुनिया को दिल के ज़ख्म । ओ माही ओ दुपट्टा मेरा देदे , अपना बना के छोड़ नहीं जाना फिल्म ( मीना बाज़ार ) ऐ सनम, मैं तुझे पुकारूं सनम सनम फिल्म ( सनम )
शाम ए बहार फिल्म शमा परवाना अभी तो मैं जवां हूं फिल्म ( अफसाना ) – लता मंगेशकर के सर्वश्रेष्ठ गीतों में से एक था जिसकी खूब चर्चा हुई पर दिलकश धुनों का ये सुरीला कारवां थम गया जब 28 दिसंबर 1968 को हुस्न लाल इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए ,दिलनशीं धुनों को तलाशते हुए एक सुरीले संसार में खो गए और इस दुख में भगत राम न केवल अकेले पड़ गए बल्कि कमज़ोर भी हो गए और ज़्यादा दिन वो भी उनसे दूर नही रह पाए ,कुछ ही सालों बाद 29 नवंबर 1973 को वो भी हमें छोड़कर अपने भाई हुस्न लाल के पास चले गए पर हमारे लिए छोड़ गए संगीत का एक ऐसा सबक ऐसा बेशकीमती
खज़ाना जो हमेशा हमारे दिलों के क़रीब रहेगा और हुस्न लाल भगत राम को सदा जावेदा भी रखेगा ।