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Daylight Saving Time : जानिए क्या है डे-लाइट सेविंग टाइम ,किन किन देशो के द्वारा इसका पालन किया जाता है और कैसे ये हमारे जीवन को प्रभावित करता है ?

सयुक्त राज्य अमेरिका के सीनेट बीते सालो में सर्वसम्मति से डेलाइट सेविंग टाइम (DST) को स्थाई बनाने वाला कानून पारित किआ है। इस कानून का नाम सनशाइन प्रोटेक्शन एक्ट ( Sunshine Protection Act 2021 ) रखा गया है। इस कानून के तहत साल में दो बार घड़ियों का समय बदलने की प्रक्रिया को पूरी तरह समाप्त करने का प्रयास किआ गया है। यदि यह कानून हाउस ऑफ़ रेप्रेसेंटिव्स( House Of Representative) में भी पारित हो जाता है और इस पर राष्ट्रपति जो बाईडन द्वारा हस्ताक्षर किए जाते है ,ये नवंबर 2023 में लागू हुआ था।

आखिर क्या है डे-लाइट सेविंग टाइम DST ?

DST के तहत कई देशो में ,घड़ियों को आमतौर पर वसंत ऋतु के दौरान एक घंटे अगर सेट किया जाता है और शरद ऋतु या पतझड़ के समय एक घंटे पीछे सेट किया जाता है। इस प्रक्रिया को हर 6 महीने में एक बार किया जाता है। DST के पक्ष में लोगो का तर्क है की इससे उन्हें दिन में अधिक घंटे मिल जाते हैं ,जहा वे दिन में प्रकाश का उपयोग करके अपने आधे -अधूरे कार्य को समाप्त कर लेते हैं और कृतिम प्रकाश के आवश्यकता से बच सकते हैं। ऐसा माना जाता है की DST प्रणाली का प्रयोग पहली बार 1 जुलाई ,1908 में कनाडा के पोर्ट आर्थर ,ओटेरियो के निवासियों ने किया था। इन लोगो ने दुनिया की पहली DST अवधि शुरू करने के लिए अपनी घड़ियों को एक घंटे आगे बढ़ा लिया था। इस विचार को वैश्विक पहचान तब मिलना शुरू हुआ जब प्रथम विश्व युद्ध के दौरान जर्मनी और ऑस्ट्रिया ने अप्रैल 1916 में कृतिम प्रकाश के व्यवस्था के उपयोग को काम करने के लिए DST की शुरुआत की। इसके पश्चात विश्व के अन्य देशों द्वारा भी इसे अपनाया गया। यूरोपी संघ के सदस्य देश अपनी घड़ियों को मार्च के अंतिम रविवार को आगे सेट करते हैं और अक्टूबर को अंतिम रविवार को वापस पीछे करते हैं। कई स्रोत अमीरीकी दार्शनिक बेंजामिन फ्रैंकलिन को DST जैसा पहला विचार देने का श्रेय देते हैं।

क्या है DST का मुख्य उद्देश्य ?

DST का उद्देश्य दिन के प्रकाश का अधिक्तम उपयोग करना और ऊर्जा दक्षता हासिल करना है। ऊर्जा की अधिक खपत के कारन जलवायु परिवर्तन में होने वाली वृद्धि से DST की प्रासंगिकता बढ़ती है। DST का इस प्रकार सतत पर्यावरण से जुड़ी अवधारणा है। घड़ी का समय आगे बढ़ा देने से कामकाजी दिन की शुरुआत अधिक जल्दी होती है। और शाम को दिन का अधिक समय मिल जाता है। एक तरीके से DST ऊर्जा की बचत कराता है।

दिन और रात की लंबाई में अंतर :

पृथ्वी में दिन और रात के समय को प्रभावित करने का मतलब यह है की की पृथ्वी अपनी धूरी पर 33 .5 डिग्री पर झुकी हुई है। इसके कारन ध्रुवों पर दिन और रात के समय में काफी अंतर ज्यादा दिखाई देता है। एक ऐसा भी समय एक देखा जाता है जब कुछ दिन के ध्रुव पर सिर्फ दिन दिखाई देता है। वही ध्रुव के पास वाले देशो में सर्दियों में रातें काफ़ी लंबी होती हैं और दिन काफी छोटे होते है। यह परिस्थिति गर्मी में उल्टी हो जाती है।

कौन -कौन से देश DST का पालन करते हैं ?

पूरी दुनिया के केवल एक तिहाई देश ही डे-लाइट सेविंग टाइम का पालन करते हैं। उन देशो में अधिकांश देश यूरोप में हैं। यूरोप में -जैसा की सयुक्त राष्ट्र परिभाषित किया गया है ; अर्मेनिया ,अज़रबैजान ,बेलारूस ,जॉर्जिया , आइसलैंड ,रूस और तुर्की ही डे -लाइट सेविंग टाइम का पालन नहीं करते है। यूरोप के बाहर ,डिलाइट सेविंग टाइम उत्तरी अमेरिकी में सबसे अधिक प्रचलित है -साथ ही लैटिन अमेरिका और कैरिबिन में भी। मिश्र एकमात्र ऐसा अफ्रीकी देश है जहा डे -लाइट सेविंग टाइम लागू है।

जीवन को कैसे प्रभावित करती है ये घड़ी :

प्रसिद्ध ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर रसल फोस्टर और प्रमुख सर्केडियन रिथम विशेषशज्ञ हमारे शरीर की घड़ियों में अलग और गहरा संबंध बताते हैं। वो कहते है की ये घड़िया हमरे शरीर की बहुत सी प्रतिक्रियाओं में ताल मेल बिठाने का काम करती हैं। जिसमे मस्तिक्ष,मासपेशियाँ ,और पाचनतंत्र शामिल हैं। ये सब 24 घंटे के अंधेरे और रौशनी से निर्धारित होता है।

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