Dadasaheb Phalke Birth Anniversary: Author: Nazia Begum / नमस्कार हम एक बार फिर हाज़िर है रूपहली यादें लेकर दोस्तों आज हमारे आस पास बहोत सी फिल्में बनती हैं हम उनकी बातें भी करते हैं पर एक ज़माना वो भी गुज़रा है जब हमारे यहां फिल्में बनती ही नहीं थी ऐसे में किसी ने सोचा फ़िल्म निर्माण के बारे में और शायद उन्हीं की बदौलत आज फ़िल्म प्रोडक्शन के आधार पर भारतीय फ़िल्म उद्योग दुनिया के सबसे बड़े फिल्म उद्योगो में से एक है और फिल्मों के लिए दिए जाने वाले सबसे बड़े पुरस्कार के बारे में हम बात करें तो वो है दादा साहब फाल्के पुरस्कार और ये वही शख्सियत हैं जिन्हें फादर ऑफ सिनेमा भी कहा जाता है क्योंकि इन्होंने भारत में पहली बार फिल्म बनाने के बारे में तब सोचा जब वो सन 1906 में अंग्रेजी फिल्म द लाइफ ऑफ क्राइस्ट देखने गए और फिल्म निर्माण से इतना आकर्षित हुए कि इसकी तकनीक सीखने लंदन चल पड़े, और वहां से आने के बाद फिल्म बनाने में जुट गए पर उस समय तकनीक इतनी विकसित नहीं थी इसलिए उन्होंने इसके उपकरण कई देशों जैसे फ्रांस ,इंग्लैंड ,अमेरिका और जर्मनी से मंगाए फिर उन्होंने 5 पौंड में एक सस्ता कैमरा खरीदा और शहर के सभी सिनेमाघरों में जाकर फिल्मों का अध्ययन और विश्लेषण किया। फिर दिन में 20 घंटे लगकर प्रयोग किये पर उनके अपने मित्र ही उनके पहले आलोचक निकले। अतः अपनी कार्यकुशलता को सिद्ध करने के लिए उन्होंने एक बर्तन में मटर बोई फिर इसके बढ़ने की प्रक्रिया को एक समय में एक फ्रेम खींचकर साधारण कैमरे से उतारा।
इसके लिए उन्होंने टाइमैप्स फोटोग्राफी की तकनीक इस्तेमाल की। फरवरी 1912 में, फिल्म प्रोडक्शन में एक क्रैश-कोर्स करने के लिए वो इंग्लैण्ड गए और एक सप्ताह तक सेसिल हेपवर्थ के अधीन काम सीखा। कैबाउर्न ने विलियमसन कैमरा, एक फिल्म परफोरेटर, प्रोसेसिंग और प्रिंटिंग मशीन जैसे यंत्रों तथा कच्चा माल का चुनाव करने में उनकी मदद की।