Mauganj Violence News | मऊगंज हिंसा पर रीवा के पूर्व सांसद का विवादित बयान

Mauganj Hinsa News Hindi Mein: हाल ही में कुछ दिन पहले मऊगंज जिले के गड़रा गाँव में एक जमीन विवाद में सन्नी द्विवेदी नाम के एक युवक का अपहरण कर और फिर निर्ममता से उसकी हत्या कर दी गई थी, उसे बचाने गई पुलिस की टीम पर भी हमला किया गया, जिसमें एक एएसआई रामचरण गौतम की मृत्यु हो गई थी और कई पुलिस और प्रशासन लोग घायल भी हो गए थे। इस घटना के बाद कई लोगों की गिरफ़्तारी हुई और गाँव में अभी भी तनाव का माहौल है।

नाराज ब्राम्हण संगठनों ने निकाली रैली

इस घटना के बाद ब्राम्हण समाज के नाराज सामाजिक संगठनों ने रीवा में बंद बुलाया और रैलियाँ निकाली, क्षत्रिय और व्यापारी समाज के संगठनों ने इस बंद का समर्थन किया, बंद का आयोजन शांतिपूर्ण रहा, उसके बाद बहुजन संगठनों ने भी इस घटना के न्यायिक जांच के लिए रीवा जोन के आईजी से मिलकर अपना ज्ञापन सौंपा। लग रहा था शायद अब धीरे-धीरे सब ठीक हो रहा है, लेकिन वाह रे राजनीति, उसने लाशों को भी नहीं छोड़ा।

पूर्व सांसद के विवादित बोल

ऐसा समय जब अनावश्यक बयानबाजियों से बचना चाहिए, तब रीवा के एक पूर्व सांसद ने गैरजरूरी बयानबाजी करते हुए, इस कांड के लिए आदिवासी समाज की पीठ थपथपाई है, उन्हें वाहवाही दी और उनके इस आपराधिक कृत्य को सामाजिक संघर्षों से जोड़कर इसे क्रांतिकारी कदम बताते हुए उनके कार्य का समर्थन भी किया है। सोशल मीडिया में उनका एक वीडिओ वायरल हो रहा है जिसमें पूर्व सांसद भड़काऊ बयान देते नजर आ रहें, ध्यान से देखने पर पता चलता है यह वीडियो किसी रैली का है, जो जातिगत जनगणना के समर्थन में की गई थी। लेकिन जातिगत जनगणना की मांग करते-करते पूर्व सांसद महोदय मऊगंज की घटना पर अपराधियों का समर्थन करने लगे, और बोलते बोलते इस घटना को क्रांतिकारी भी बता दिया।

कौन हैं बुद्धसेन पटेल

दरसल यह बयानबाजी करने वाले नेता हैं रीवा के पूर्व सांसद बुद्धसेन पटेल, जो बीएसपी पार्टी से 1996 में रीवा से सांसद और 1993 में गुढ़ विधानसभा से विधायक भी रहें हैं। वह समय-समय पर अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता भी बदलते रहते हैं, उनकी राजनैतिक जीवन की शुरुआत बसपा से हुई थी, उसी से पहले वह विधायक और फिर सांसद बने। बाद में बीजेपी में शामिल हो गए और जिला महामंत्री भी थे, बाद में वह पहले टीआरएस पार्टी में और फिर से बसपा में शामिल हो गए।

क्या बोले पूर्व सांसद

“हमारे रीवा में बहुत बड़ा कांड हो गया, यह कोई बड़ा कांड नहीं है, बल्कि 75 साल बाद आई चेतना और जागरूकता है। अशोक कोल जो आदिवासी समाज से था, उनको रास्ते में ही मार दिया गया, मौत के घाट उतार दिया गया। जब अशोक के घरवालों को यह बात पता चली, तो उन लोगों के भीतर जज्बा जाग गया और उन्होंने एक टीम बना ली और जिस आदमी ने उसे मारा था, उन्होंने एक टीम बना ली और जिस आदमी ने उसे मारा था, उसके घर जाकर उसका गला काट दिया, प्रशासन वहाँ बीजेपी का था, वहाँ सब लोग बैठे थे, इनको तो मजा आया अशोक कॉल को मार दिया, लेकिन जब कोल लोगों ने उस दुबे को मार दिया, तो पुलिस का सारा अमला कोलों को मारने पहुँच गए, कोलों के सब नात-रिश्तेदार और चाहने वाले भी पहुँच गए, और उन्होंने पुलिस बल पर भी हमला कर दिया, जिसमें पुलिस का भी एक ब्राम्हण मारा गया। इस घटना में दो ब्राम्हण और एक कोल मारे गए, उस कोल को मैं धन्यवाद देता हूँ, जिसने मान-सम्मान के लिए अपनी बात के बदले के लिए, इस घटना को अंजाम दिया, और इसकी ही जरूरत है, कब तक सहते रहोगे, कब तक अपमान करवाते रहोगे।”

सांसद का बयान विंध्य में वर्ग संघर्ष को बढ़ावा देने वाला

उनका यह बयान ना केवल एक पूर्व सांसद के लिए बेहद गैरजिम्मेदराना है बल्कि यह शांतिप्रिय विंध्य के लोगों में सामाजिक विद्वेष पैदा भी कर सकता है। सांसद महोदय को यह याद रखना होगा, यह लड़ाई किन्हीं जाति और समुदायों की नहीं, बल्कि एक ममूली सा जमीनी विवाद था, जिसने इतना खून-खराबा किया। घटना क्यों हुई, कैसे हुई, यह सवाल अब पुराना है, पुलिस इसकी छानबीन भी कर रही है, लेकिन नया हमें यह ध्यान रखना होगा बेमतलब की बयानबाजियों से सामाजिक समरसता और शांति ना बिगड़े। क्योंकि बिहार की जातिगत लड़ाई हमारे लिए बहुत बड़ा उदाहरण है, जब क्रांति के नाम पर की जा रही लड़ाइयों ने बिहार में भारी खून-खराबा और नरसंहार किए थे 80 और 90 के दशक में बिहार अपने जातिगत लड़ाइयों के वजह से जल रहा था, समाचार पत्रों में रोज ही नरसंहार की खबरें आती रहती थीं, यह सब हुआ था नक्सलबाड़ी आंदोलन की वजह से और नेताओं की जातिगत बयानबाजियों की वजह से, लेकिन इन सब से कोई क्रांति तो नहीं आई, बल्कि बिहार की परम-पावन धरती रक्तरंजित जरूर हुई, शुक्र है बिहार नीतीश कुमार के राज में इस दौर निकल चुका है। पूर्व सांसद महोदय को भी यह बात याद रखनी होगी।

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