संविधान के निर्माण में मध्यप्रदेश और विंध्य के सदस्यों का योगदान –

Contribution of members of Madhya Pradesh and Vindhya in the making of the Constitution

देश को गणराज्य बने हुए 75 वर्ष होने को आए। 26 जनवरी 1950 को हमारे देश का संविधान लागू हुआ था। इसी उपलक्ष्य में प्रत्येक वर्ष हम गणतंत्र दिवस मनाते हैं। 15 अगस्त 1947 में अंग्रेजों से मिली आज़ादी के बाद ही देश को सुचारु और व्यवस्थित ढंग से चलाने का एक विधान को बनाया गया था, इसको बनाने की प्रक्रिया बहुत पहले ही प्रारंभ हो गई थी। 16 मई 1946 को कैबिनेट मिशन ने संविधान सभा की संरचना और स्वरूप निर्धारित करने की योजना बनाई। जुलाई 1946 में संविधान सभा के लिए चुनाव संपन्न हुए, इस सभा में अविभाजित ब्रिटिश भारत से 296 सदस्य और भारत के रियासती राज्यों से 93 सदस्य चुने गए।

15 अगस्त 1947 को देश आज़ाद हुआ और देश दो हिस्सों डोमिनियन ऑफ़ इंडिया और डोमिनियन ऑफ़ पाकिस्तान में विभाजित हो गया। शुरू में संविधान सभा में कुल 389 सदस्य थे, जो विभाजन के बाद घटकर 299 रह गए। 389 सदस्यों में से 292 सरकारी प्रांतों से, 4 मुख्य आयुक्त द्वारा शासित प्रांतों से और 93 रियासतों से थे। 26 नवम्बर 1949 को संविधान सभा ने सर्वसम्मति से संविधान को पारित किया। 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा की आखिरी बैठक हुई और हस्ताक्षर कर सभी ने इसे सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। भारत के संविधान में कुल 395 अनुच्छेद, 8 अनुसूचि और 22 भाग थे। संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा। ‘भारत का संविधान’ को पूरा करने में कुल ₹6.4 मिलियन का खर्च आया। गणतंत्र बनने के बाद डॉ राजेंद्र प्रसाद पहले राष्ट्रपति बनाए गए और गणेश वासुदेव मावलंकर लोकसभा की बैठक में पहले अध्यक्ष बने। इसके बाद 1952 में पहली बार देश में मतदान हुए।

चूँकि जिस समय संविधान का निर्माण हो रहा था, तब आज के मध्यप्रदेश का निर्माण नहीं हुआ था, लेकिन कई छोटे-बड़े प्रांत सेंट्रल प्रॉविन्स और बरार, मध्यभारत, विंध्यप्रदेश और भोपाल थे। आज के भागौलिक मध्यप्रदेश वाले हिस्से के 19 लोग इस संविधान निर्मात्री सभा में शामिल थे। डॉ हरि सिंह गौर, पंडित रविशंकर शुक्ल, सेठ गोविंददास, भगवंतराव मंडलोई इत्यादि प्रमुख रहे। जबकि विंध्यप्रदेश से तीन व्यक्ति थे जो संविधान निर्मात्री सभा में रहे, जिनमें अवधेश प्रताप सिंह, पंडित शंभूनाथ शुक्ल और और रामसहाय तिवारी थे। इनमें से अवधेश प्रताप सिंह और पंडित शंभूनाथ शुक्ल बघेलखंड से और पंडित रामसहाय तिवारी बुंदेलखंड से थे। आइये जानते हैं मध्यप्रदेश और विंध्यप्रदेश के प्रमुख सदस्यों और संविधान सभा में उनके योगदान पर।

डॉ हरि सिंह गौर- डॉ हरि सिंह गौर, सेंट्रल प्रोविंस और बरार से संविधान सभा में शामिल हुए थे, यह भारतीय संविधान सभा के प्रमुख सदस्य थे, उन्होंने संविधान के निर्माण में अहम योगदान दिया था, केंद्रीय सभा में कई बार ब्रिटिश सरकार के ख़िलाफ़ आवाज़ भी उठाई थी और साथ ही संविधान सभा में भारत के सुप्रीम कोर्ट के गठन का प्रस्ताव पेश भी पेश किया था, डॉ गौर बहुत बड़े शिक्षाविद और समाज सुधारक भी थे, वह दिल्ली विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे साथ में ही उन्होंने, सागर में एक विश्वविद्यालय की भी स्थापना की थी, जो डॉ हरिसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय के नाम से जाना जाता है। उन्होंने देवदासी प्रथा पर रोक लगाने, महिलाओं को वकालत का अधिकार दिलाने और चाइल्ड प्रोटेक्शन एक्ट पर भी कार्य किए थे।

सेठ गोविंददास- सेठ गोविंददास जबलपुर से थे, वह एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और साहित्यकार भी थे। संविधान सभा में सीपी और बरार के प्रतिनिधि के तौर पर शामिल हुए थे। कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन को बुलाने और संपन्न करवाने को लेकर सेठ गोविंददास की प्रमुख भूमिका थी। उन्होंने मसौदा अनुच्छेद 38ए अब जिसे अनुच्छेद 48 के रूप में जाना जाता है, उस को मौलिक अधिकार बनाने की मांग की, इस अनुच्छेद के दायरे का विस्तार करके किसी भी गाय के वध पर रोक लगाने की मांग की गई। उन्होंने राष्ट्रभाषा पर चर्चा के दौरान हिन्दी को देवनागरी लिपि में अपनाने की वकालत करते हुए संविधान के मसौदे को हिन्दी में लिखने की मांग की। उन्होंने मांग की आयरिश संविधान के सामान भारतीय संविधान में राष्ट्रीय ध्वज को अपनाने और उसका वर्णन करना शामिल होना चाहिए। महात्मा गांधी के निकट सहयोगी सेठ गोविंददास 1947 से 1974 तक जबलपुर के सांसद भी रहे।

पंडित रविशंकर शुक्ल – पंडित रविशंकर शुक्ल सेंट्रल प्रॉविंस और बरार से संविधान सभा में शामिल हुए थे, वह 1956 में बने मध्यप्रदेश के पहले मुख्यमंत्री भी थे, पंडित रविशंकर शुक्ल ने संविधान सभा में अहम् योगदान दिया, हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए काम किया और उन्होंने संविधान की हिन्दी शब्दावली को बनाने पर अहम योगदान दिया, उन्होंने संविधान सभा के अपने व्यक्तव्यों से हिंदी में संविधान बनाने को लेकर जोर दिया। शुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिंदी की पैरवी करते हुए उन्होंने हिंदी में उर्दू को शामिल करने के खिलाफ अभियान चलाया। उन्होंने संविधान में अन्य भारतीय भाषाओं को अलग से शामिल करने का विरोध किया।  

भगवंतराव मंडलोई – भगवंतराव मंडलोई स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, कांग्रेस नेता और मध्यप्रदेश के दूसरे निर्वाचित मुख्यमंत्री थे, वह संविधान सभा में मध्यप्रांत और बरार से शामिल हुए थे।

हरिविष्णु कामथ – मैंगलोर कर्नाटक में जन्में हरिविष्णु कामथ ने 1933 में आई. सी. एस. की परीक्षा पास की थी, जिस समय कांग्रेस का त्रिपुरी सेशन चल रहा था, उस समय कामथ नरसिंहपुर कलेक्टर थे, नेताजी सुभाषचंद्र बोस से मुलाकात के कारण अंग्रेज सरकार उनसे नाराज हो गई और उन्होंने इस्तीफा दे दिया, इसके बाद भी नाराज अंग्रेज सरकार ने सुरक्षा कानून के तहत उन्हें जेल भेज दिया। बाद में वह फॉरवर्ड ब्लॉक में भी शामिल हो गए, और कुछ समय बाद जनजागरण के उद्देश्य से पत्रकारिता भी करने लगे। बतौर पत्रकार उनके द्वारा गांधी जी का लिया गया इंटरव्यू बहुत प्रसिद्ध है, बाद में वह संविधान सभा के सदस्य भी बने, पंडित नेहरू के आग्रह के बावजूद भी वह कांग्रेस में शामिल नहीं हुए और 1952 के प्रथम आम चुनाव में वह नरसिंहपुर-होशंगाबाद सीट से प्रजा समाजवादी पार्टी से सांसद निर्वाचित हुए।

कुसुमकांत जैन – 23 जुलाई 1921 को झाबुआ में जन्मे कुसुमकांत जैन, झाबुआ-रतलाम रियासत की तरफ से संविधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे, इसके साथ ही वह संविधान सभा के सबसे कम उम्र के निर्वाचित सदस्य भी थे, वह महज 28 वर्ष की उम्र में संविधान सभा के सदस्य निर्वाचित हुए थे। वह मध्यभारत के मंत्रिमंडल में मंत्री और आगे विधायक और सांसद भी बने। 1997 में जब देश की आज़ादी का स्वर्णजयंती समारोह मनाया गया, तो वह उस समय संविधान सभा के 12 जीवित सदस्यों में से थे।

मध्यप्रदेश के शामिल अन्य सदस्यों में राधावल्लभ विजयवर्गीय, सीताराम जाजू, मास्टर लाल सिंह सिनसिनवार और एंग्लों-इंडियन नेता फ्रेंक एंथोनी इत्यादि प्रमुख थे।

जबकि विंध्यप्रदेश से तीन व्यक्ति थे जो संविधान निर्मात्री सभा में रहे, जिनमें अवधेश प्रताप सिंह, पंडित शंभूनाथ शुक्ल और और रामसहाय तिवारी थे। इनमें से अवधेश प्रताप सिंह और पंडित शंभूनाथ शुक्ल बघेलखंड से और पंडित रामसहाय तिवारी बुंदेलखंड से थे। आइये जानते हैं कुछ बातें विंध्यप्रदेश इन नेताओं पर।

अवधेश प्रताप सिंह-
कैप्टन अवधेश प्रताप सिंह का जन्म 1888 में सतना ज़िले के रामपुर में हुआ था। तब के इलाहाबाद और के अब प्रयागराज से कानून की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे रीवा रियासत की सेना में भर्ती हो गए। जहाँ वे कैप्टन और कुछ समय तक मेजर भी रहे। कैप्टन या कप्तान उनके नाम के साथ अजीवन जुड़ा रहा रहा, जैसा कि हम देखते हैं आगे चलकर उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र देकर उन्होंने राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जैसे क्रान्तिकारियों से संपर्क किया, कुछ रियासतों के नरेशों से मिल अंग्रेज़ों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह की योजना भी बनाई। परंतु समय से पहले भेद खुल जाने पर इसमें सफलता नहीं मिली। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल हुए और 1921 से 1942 तक के आंदोलनों में लगभग चार वर्ष जेलों में बंद रहे। उन्होंने देशी रियासतों में जनतंत्र की स्थापना और समाज उत्थान के लिए निरंतर काम किया। 1948 में विंध्य प्रदेश की स्थापना के बाद 1948 से 1949 तक पहले वह वहाँ के पहले प्रधानमंत्री भी रहे। बाद में विंध्य प्रदेश राज्य से ही भारतीय संविधान सभा के सदस्य मनोनीत हुए। बाद में वह 1952 से 1960 तक राज्यसभा के सदस्य भी बने।

शम्भूनाथ शुक्ल-
पंडित शम्भूनाथ शुक्ल का जन्म 18 दिसंबर 1903 को शहडोल में हुआ। 1920 में असहयोग आंदोलन में हिस्सा लेकर जेल गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1928 में एलएलबी गोल्ड मेडल मिला। 1929 में वकालत की शुरुआत की। 1937 में कांग्रेस के सदस्य बने। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान उन्हें उमरिया जेल में रखा गया। इस दौरान बेटे की तबीयत खराब हो गई। पंडित शंभूनाथ के पिता माता प्रसाद शुक्ल फरियाद लेकर पहुंचे। अंग्रेजों ने रिहा करने के लिए पं. शंभूनाथ के सामने शर्त रख दी कि वे अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छोड़ दें, इसके एवज में तहसीलदार बना देंगे। घर में बेटा तड़प रहा था, पर उन्होंने अंग्रेजों के सामने घुटने नहीं टेके। दवा और इलाज न मिलने से बेटे की मौत हो गई। 1945 में रीवा महाराज के कानूनी सलाहकार नियुक्त हुए। स्वतंत्रता के बाद वे विंध्य प्रदेश से भारत की संविधान सभा के लिए मनोनीत किए गए। 1952 में अमरपुर से विधायक बने और सर्वसम्मति से 1952 से 1956 तक विंध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1956 में विंध्य प्रदेश के नवगठित राज्य मध्यप्रदेश के साथ विलय के बाद उन्हें 31 अक्टूबर 1956 को अपने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और वे मध्यप्रदेश के पहले वनमंत्री बने। 1967 में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में रीवा लोकसभा के सदस्य चुने गए। 1971 में रीवा के महाराज मार्तण्ड सिंह से उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद उन्हें 1971 में ही अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय रीवा का प्रथम कुलपति नियुक्त किया। 21 अक्टूबर 1978 को उनका निधन हो गया। 2016 में उनके नाम पर शहडोल विवि का नाम पंडित शंभूनाथ विश्वविद्यालय किया गया।

राम सहाय तिवारी –
पंडित रामसहाय तिवारी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य थे। वे संविधान सभा में छतरपुर रियासत के प्रतिनिधि रहे। वे रियासत के प्रधानमंत्री भी रहे। स्वतंत्रता के बाद वह 1952, 1957 के संसदीय चुनावों में खजुराहो से लोकसभा के लिए चुने गए।पण्डित रामसहाय तिवारी का जन्म 10 जून 1902 को टहनगा गांव, छतरपुर जिले में श्री मातादीन तिवारी एवं श्रीमती कृष्णा देवी के यहाँ हुआ। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा श्रीनगर, महोबा में हुयी। बाल जीवन में अली बंधुओं की महोबा सभा से राजनीतिक जीवन शुरु हुआ । मिडिल परीक्षा में सर्वोच्च आने पर अध्यापक की नौकरी मिली लेकिन राजनीतिक सक्रियता के कारण नौकरी छोड़नी पड़ी । महाराजा हाई स्कूल से भी इन्हें राजनीतिक सक्रियता के कारण निष्कासित कर दिया गया । कांग्रेस की विभिन्न राष्ट्रीय जन जागरण की गतिविधियों में भी इनकी सक्रिय भागीदारी रही। आपने 4 आने में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की थी। धीरे -धीरे तिवारी जी देशी रियासतों में राष्ट्रीय आन्दोलन के सक्रिय नेता माने जाने लगे । 1925 में तिवारी जी को छतरपुर राज्य के द्वारा 2 वर्ष का कारावास दिया गया, 1929 में पुनः जेल की यात्रा की। चंद्रशेखर आजाद के बुन्देलखण्ड आगमन के बाद ये क्रान्तिकारी गतिविधियों के प्रति भी अग्रसर हुये और आजाद के लिए 6 रिवॉल्वरो का इन्तजाम भी तिवारी जी ने ही किया था। बाद में गांधी जी से प्रभावित होकर आपने क्रान्ति का मार्ग त्यागकर अहिंसात्मक मार्ग को अपनाया। छतरपुर राज्य में लगाये गये विभिन्न करों चरू, बाँका, गुलयावन व्याई झाँरी आदि का विरोध करने का उद्देश्य लेकर, जो रगौली में बैठक आयोजित हुई, इस संगठन का अध्यक्ष ठा. हीरासिंह को व रामसहाय तिवारी जी को मंत्री बनाया गया। इनके द्वारा चलाये जा रहे आन्दोलन में जनता की भागीदारी से गति बढ़ी। परिणामस्वरूप राज्य की सरकार व अंग्रेजी प्रशासन सख्ती करने लगे और इस आन्दोलन का दमन करने हेतु चरण पादुका में 14 जनवरी 1931 को अंधाधुन्ध गोलियां चलायी गई जिसमें कई लोगों की जान गई । इस घटना से क्षुब्ध तिवारी जी कर्नल पिनेकर को मारने जा पहुँचे लेकिन वहां उन्हें पकड़ कर जेल में डाल दिया गया। तिवारी जी को 9 वर्ष का कारावास हुआ साथ ही उनकी सम्पूर्ण सम्पत्ति भी जब्त कर ली गई । अंततः जुलाई 1931 में सभी राजनीतिक बंदियों के साथ इन्हें भी स्वतन्त्र कर दिया गया । 1938 में पुनः ये 4 माह के लिये नजरबन्द रहे । 1943 में जब छतरपुर राज्य प्रजामण्डल का गठन हुआ तो उसमें ये उपमंत्री निर्वाचित हुये और राज्य में सुगठित सत्याग्रह आन्दोलन की शुरुआत हुयी, और स्व गिरफ्तारियां सत्याग्रहियों द्वारा दी गई, परिणामस्वरूप इनको भी गिरफ्तार कर लिया गया और बाद में छोड़ दिया गया। 1948 में विन्ध्य प्रदेश के गठन के बाद बुंदेलखंड क्षेत्र को कामता प्रसाद सक्सेना जी के प्रधानपतित्व में आपको वित्त एवं राजस्व मंत्री नियुक्त किया गया। तभी ये संविधान सभा के सदस्य भी मनोनीत हुये ।

इन सदस्यों के अलावा प्रारूप समिति के अध्यक्ष डॉ आंबेडकर का जन्म भी इंदौर के महू में हुआ था, हालांकि वह संविधान सभा के सदस्य पश्चिम बंगाल से चुने गए थे। इसके अलावा संविधान के अलंकरण का कार्य किया था, कलाविद और चित्रकार ब्यौहार राममनोहर सिन्हा ने। उनके चित्रों के बिना की चर्चा अधूरी ही रहा होगा। उनके ही बनाये गए चित्र को संविधान के प्रस्तावना पृष्ठ पर अंकित किया गया। इसके अलावा उनके ही बनाए गए लगभग 10 चित्रों को संविधान के अलग-अलग पृष्ठों पर अंकित किया गया। अपने इस योगदान के बदले उन्होंने कोई पारिश्रमिक भी नहीं लिया।
 

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