compassionate appointment Satna MP : हाई से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक साक्षी ने जीती हर जंग लेकिन भ्रष्टतंत्र मनमानी पर आमादा

compassionate appointment Satna MP : सतना । सतना की साक्षी सिंह ने पिता की मृत्यु के बाद अनुकंपा नियुक्ति के लिए 10 साल तक न्याय की लड़ाई लड़ी। हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जीत के बावजूद डीईओ कार्यालय ने आदेश नहीं माना। कभी संवेदनशील सहायता के रूप में शुरू की गई अनुकंपा नियुक्ति योजना आज कई बार बेरुखी और लापरवाही का प्रतीक बन जाती है। सतना जिले की एक युवती साक्षी सिंह का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पिता के निधन के बाद वर्ष 2015 में आवेदन करने के बावजूद, 10 वर्षों से उन्हें न्याय की प्रतीक्षा है – जबकि हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक सभी स्तरों पर उन्हें न्यायिक जीत मिल चुकी है।

10 वर्षों की लम्बी हक़ की दास्तां – compassionate appointment Satna MP

साक्षी सिंह के पिता कुबेर सिंह स्कूल शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। 2015 में उनके निधन के बाद, परिवार की सहमति से साक्षी ने अनुकंपा नियुक्ति के लिए जिला शिक्षा अधिकारी (डीईओ) कार्यालय में आवेदन किया। लेकिन डीईओ कार्यालय ने यह कहते हुए आवेदन अस्वीकार कर दिया कि साक्षी के पास “संविदा शाला शिक्षक ग्रेड-2 या 3 अथवा प्रयोगशाला सहायक” पद के लिए आवश्यक योग्यता नहीं है। इसी के साथ साक्षी के संघर्ष की शुरुआत हुई।

हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक , हर स्तर पर फतेह – compassionate appointment Satna MP

1 ) हाईकोर्ट सिंगल बेंच – साक्षी ने डीईओ के निर्णय को हाईकोर्ट में चुनौती दी। कोर्ट ने सभी पक्षों को सुनने के बाद डीईओ को आदेश दिया कि साक्षी को अनुकंपा नियुक्ति दी जाए।
2 ) दूसरा कदम – डबल बेंच – डीईओ ने सिंगल बेंच के फैसले को न मानते हुए डबल बेंच में अपील की। लेकिन अदालत ने एक बार फिर साक्षी के पक्ष में फैसला सुनाया।
3) – रिवीजन अपील – हार के बावजूद डीईओ ने रिवीजन दाखिल की। अदालत ने इसे “अनावश्यक विलंब” बताते हुए डीईओ पर ₹10,000 का जुर्माना (कास्ट) लगाया और राशि साक्षी को देने का आदेश दिया।
4) अंतिम मोर्चा – सुप्रीम कोर्ट – डीईओ कार्यालय यहीं नहीं रुका, मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। 6 अक्टूबर 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने भी डीईओ की याचिका खारिज करते हुए कहा कि “हम इस आदेश में हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं।” इसके साथ साक्षी की कानूनी जीत पक्की हो गई – लेकिन प्रशासनिक संवेदनशीलता अब भी गायब है।

फैसले के बावजूद कार्रवाई शून्य – compassionate appointment Satna MP

सुप्रीम कोर्ट का आदेश आने के बाद भी डीईओ सतना ने अब तक साक्षी सिंह की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू नहीं की है। विभागीय सूत्र बताते हैं कि “नियम स्पष्ट नहीं हैं” का हवाला देकर नियुक्ति टाल दी जा रही है। जबकि इसी कार्यालय में कई विवादित अनुकंपा नियुक्तियां पहले ही दी जा चुकी हैं, जिनमें से कुछ पर शिकायतें जनसुनवाई पोर्टल तक पहुंच चुकी हैं।

अनुकंपा नियुक्ति व्यवस्था पर सवाल – compassionate appointment Satna MP

यह मामला सिर्फ एक व्यक्ति की लड़ाई नहीं, बल्कि उस प्रशासनिक असंवेदनशीलता का प्रतीक है जो जरूरतमंद परिवारों की सहायता के बजाय उनकी परेशानी बढ़ा रही है। अनुकंपा नियुक्ति का उद्देश्य था-परिवार को आर्थिक सहारा देना, न कि वर्षों तक कोर्ट-कचहरी के चक्कर लगवाना।

निष्कर्ष – साक्षी सिंह का यह संघर्ष बताता है कि कानून की जीत और इंसाफ मिलने के बीच एक संवेदनहीन तंत्र की दीवार खड़ी है। हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट तक सभी ने उनके पक्ष में आदेश दिए, फिर भी नियुक्ति नहीं होना हमारे सिस्टम की मानवता की हार है। अब सवाल यह है कि क्या शासन-प्रशासन इस “अनुकंपा की जीत” को “व्यवहारिक न्याय” में बदल पाएगा ?

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