History Of Chola Dynasty In Hindi: हाल ही पिछले दिनों अभिनेता माधवन ने कहा था उनकी इतिहास की किताबों में मुग़ल और सल्तनतों के कई चैप्टर थे, लेकिन चोल वंश से संबंधित केवल एक चैप्टर था। जिसके बाद सोशल मीडिया में इतिहास की किताबों को लेकर फिर से बहस छिड़ गई। लेकिन कौन थे चोल और भारतीय इतिहास में वह इतने महत्वपूर्ण क्यों थे? चोल मध्यकालीन भारत में एक राजवंश था जिसने सुदूर दक्षिण पर शासन किया था। राजराजा प्रथम और राजेंद्र प्रथम इस वंश के सबसे प्रमुख शासक थे, जिन्होंने देश के बाहर भी कई राज्यों और द्वीपों पर विजय प्राप्त की।
कौन थे चोल
चोल मध्यकालीन भारत में एक राजवंश था जिसने सुदूर दक्षिण पर शासन किया था। राजराजा प्रथम और राजेंद्र प्रथम इस वंश के सबसे प्रमुख शासक थे। इनके पास एक बड़ी नौसेना थी, जिसके बल पर उन्होंने आज के दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राज्यों पर अपनी विजय पताका फहराई। चोलों का जिक्र पाण्ड्य और चेरों के साथ सम्राट अशोक के अभिलेख में भी है जो सुदूर दक्षिण पर शासन किया करते थे। इसी तरह खारवेल के हाथीगुंफा अभिलेख में चोलों का जिक्र है। लेकिन चोलों के बारे में विस्तृत जानकारी संगम साहित्य में भी मिलती है।
चोलों का उदय
लेकिन इसके बाद भी प्रारंभ में चोल कोई बड़ी शक्ति नहीं थे। बल्कि पाण्ड्य, पल्लव और राष्ट्रकूटों के सामंत थे। चोल वंश का उदय सुदूर दक्षिण भारत में हुआ था। इस वंश का संस्थापक विजयालय था, जो प्रारंभ में पल्लवों के अधीन उरैयुर प्रदेश का सामंत था। जिसने 850 में पल्लवों को हराकर तंजौर पर अधिकार कर लिया था। इसके साथ ही दक्षिण में चोल राजाओं का उदय हुआ। विजयालय के बाद कई चोल राजाओं ने राज्य किया लेकिन वह दक्षिण में ही लड़ते रहे।
राजराजा प्रथम ने साम्राज्य का विस्तार किया
चोल वंश के राजाओं में राजराजा प्रथम ने ही सर्वप्रथम साम्राज्य विस्तार का प्रारंभ किया। उसका मूल नाम उरुल मोझी वर्मन था। वह राजा परांतक और उसकी पत्नी वनावन महादेवी का पुत्र था। 984 ईस्वी में वह गद्दी पर बैठा और 1014 तक उसने शासन किया। राजा बनने के बाद उसने कलिंग पर शासन करने वाले पूर्वी गंगों को पराजित किया, उसने केरल और पाण्ड्य देश पर भी विजय प्राप्त की। लेकिन उसका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण अभियान था पश्चिमी चालुक्यों के विरुद्ध हालांकि लंबे संघर्ष के बाद उनका दमन नहीं किया जा सका। उसने अपने नवल सेना के बल पर श्रीलंका के उत्तरी हिस्से पर भी अधिकार कर लिया।
राजेन्द्र प्रथम जिसने दक्षिण-पूर्व में साम्राज्य विस्तार किया
राजराजा प्रथम के बाद उसका पुत्र राजेंद्र प्रथम चोल साम्राज्य का शासक बना। उसे राजेंद्र महान के नाम से संबोधित किया जाता है, उसका युग चोल साम्राज्य के इतिहास का स्वर्ण युग कहलाता है। अपने पिता के समय से ही वह युवराज रूप से कार्य करने लगा था। 1014 में वह पिता की मृत्यु के बाद वह राजा बना। पहले के तरह ही चालुक्यों से उसका अंतहीन युद्ध चलता रहा। लेकिन उसने कलिंग होते हुए पाल राज्य पर आक्रमण कर सुदूर बंगाल तक अपना प्रभाव बढ़ाने का कार्य किया। लेकिन उसको मुख्य सफलता अपनी नवल सेना के कारण मिली जब उसने सम्पूर्ण श्रीलंका पर आधिपत्य जमा लिया। मालदीव और लक्षद्वीप पर भी विजय प्राप्त हुई। लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राज्यों श्रीविजय, तांब्रालिंगा, केदाह और पेगु पर अपना प्रभाव जमाया। उसने बंगाल की खाड़ी के समस्त व्यापार पर एकाधपत्य स्थापित कर लिया। जिसके कारण बंगाल की खाड़ी को चोलों की झील भी कहा जाता है।
चोल साम्राज्य का पतन
लेकिन राजेंद्र प्रथम के निधन के बाद से ही चोल साम्राज्य का पतन प्रारंभ होने लगा था। लेकिन फिर भी वह कुछ क्षेत्रों पर अपना अधिकार जमाने में सफल रहे। 1070 में चालुक्य वंश के कुलोतुंग ने जो अपनी माँ की तरफ से चोल वंश का था, उसने चोल साम्राज्य पर शासन करना प्रारंभ कर दिया। इसके साथ चोलवंश केवल नाममात्र का बचा, क्योंकि अब चालुक्य वंश यहाँ शासन करने लगा था। लेकिन 1279 में मदुरै में पाण्ड्य वंश के उदय के साथ ही आंशिक बचे हुए चोल साम्राज्य का पतन हो गया।
चोलों की स्थापत्य और मूर्तिकला
चोल केवल उत्साही योद्धा और शासक ही नहीं थे। बल्कि वह उत्साही निर्माता भी थे उन्होंने अपने दौर में कई मंदिर और मूर्तियों का निर्माण करवाया था। जो स्थापत्य की दृष्टि से बहुत उत्तम मानी जाती हैं। चोलों ने मंदिर निर्माण की द्रविड शैली को प्रोत्साहित किया।, उनके द्वारा बनवाए गए कुछ मंदिर थे राजराजेश्वर मंदिर, वृहदेश्वर मंदिर, गंगईकोंड चोलपुरम इत्यादि के मंदिर इनमें प्रमुख हैं। प्रतिमाओं की दृष्टि से नटराज शिव की कांस्य प्रतिमा अत्यंत अनुपम मानी जाती है। वैसे तो माना जाता है चोल मुख्यतः शैव्य थे, लेकिन उनके द्वारा बनवाई गई कई वैष्णव प्रतिमाएँ भी हैं। जिनमें भगवान विष्णु की दूसरी पत्नी भूदेवी की प्रतिमा प्रमुख है।
भारत में सफल नहीं हो पाए चोल राजा
चोलों ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई राज्य और साम्राज्यों पर भले ही प्राप्त की हो, अपना उपनिवेश स्थापित किया हो। लेकिन चोल राजा भारत में इतने सफल नहीं हुए। उन्होंने कलिंग और गौड़ पर आक्रमण जरूर किए लेकिन उन पर स्थायी शासन स्थापित नहीं कर पाए। इसी तरह पश्चिमी चालुक्यों से उनके सतत युद्ध और संघर्ष होते रहे, लेकिन ना तो वह उन पर पूर्ण विजय प्राप्त कर पाए और ना ही उनका पूर्णतः दमन कर पाए।