Chhatrapati shivaji maharaj jayanti : शिवाजी कौन थे? शिवाजी ने क्या किया? हम उन्हें क्यों याद करते हैं? बचपन में हम सभी ने शिवाजी के बारे में जरूर पढ़ा होगा। वे महाराष्ट्र के एक प्रमुख राजनेता, साम्राज्य के संस्थापक और मराठा साम्राज्य के पहले छत्रपति थे। छोटी सी उम्र में चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने कई युद्ध लड़े और अपना पूरा जीवन धर्म की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। आज यानी 19 फरवरी 2024 को छत्रपति शिवाजी की जयंती है। इस मौके पर जानिए उस वीर योद्धा के बारे में जिनका नाम इतिहास के सुनहरे पन्नों में दर्ज है।
शिवाजी से डरने लगा था आलमपनाह आदिलशाह
बीजापुर और मुगलों के खिलाफ शिवाजी के युद्ध कौशल और रणनीति को हर कोई सलाम करता था। उनकी गुरिल्ला युद्ध कला दुश्मनों पर भारी पड़ती थी। चौथ और सरदेशमुखी पर आधारित राजस्व संग्रह प्रणाली की मदद से उन्होंने एक मजबूत मराठा राज्य की नींव रखी। बीजापुर के शासक आदिलशाह को शिवाजी की बढ़ती प्रसिद्धि से डर लगने लगा। तब आदिलशाह ने उन्हें कैद करने की योजना बनाई।
अपने पिता को कराया आदिल शाह की कैद से आजाद
शिवाजी को बहुत जल्द ही आदिल शाह की साजिश का पता चल गया। आदिल शाह तो उन्हें पकड़ नहीं सका लेकिन शिवाजी के पिता शाहजी उनकी योजना में फंस गए। इसकी जानकारी मिलते ही शिवाजी ने आदिल शाह को मुंहतोड़ जवाब देने की योजना बनाई। अपनी नीति और साहस से उन्हें उस जेल को खोजने में ज्यादा समय नहीं लगा, जहां उनके पिता कैद थे। उन्होंने न सिर्फ अपने पिता को आदिल शाह की कैद से छुड़ाया बल्कि पुरंदर और जावली के किलों पर भी कब्जा कर लिया।
मुगलों को देने पड़े 24 किले। Chhatrapati shivaji maharaj jayanti
इस पूरी घटना के बाद औरंगजेब ने शिवाजी को पकड़ने के लिए दोस्ती का जाल बिछाया। उसने जय सिंह और दिलीप खान को पुरंदर संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए शिवाजी के पास भेजा। संधि के बाद शिवाजी को मुगल शासक को 24 किले देने पड़े। इसके बाद औरंगजेब ने शिवाजी को आगरा बुलाया और धोखे से उन्हें कैद कर लिया, लेकिन ज्यादा समय तक नहीं। शिवाजी जल्द ही औरंगजेब की कैद से भाग निकले।
शिवाजी को कैसे मिली ‘छत्रपति’ की उपाधि। Chhatrapati shivaji maharaj jayanti
आपको बता दें जैसे ही औरंगजेब ने उन्हें धोखे से बंदी बनाया, शिवाजी समझ गए कि पुरंदर की संधि केवल दिखावा थी। अपनी वीरता और युद्ध कौशल के बल पर उन्होंने न केवल औरंगजेब की सेना को हराया बल्कि सभी 24 किलों पर फिर से कब्ज़ा कर लिया। इस बहादुरी के बाद 6 जून 1674 को रायगढ़ किले में उन्हें छत्रपति की उपाधि दी गई। छत्रपति में छत्र का मतलब एक प्रकार का मुकुट होता है जिसे देवता या बहुत पवित्र पुरुष पहनते हैं, जबकि पति का मतलब गुरु होता है।
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