Chhath Song-Kaanch Hi Baans Ke Bahangiya Lyrics In Hindi : छठ मैया को समर्पित पारम्परिक लोकगीत – भारतीय लोकसंस्कृति की गहराई को समझना हो तो लोकगीतों में झांकना आवश्यक है। ये गीत न सिर्फ भावनाओं का माध्यम हैं, बल्कि समाज की परंपरा, भक्ति और जीवन-दर्शन का जीवंत दस्तावेज भी हैं। छठ पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों में एक गीत सबसे अधिक लोकप्रिय है, “कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए…यह गीत न सिर्फ एक भक्त का भाव है, बल्कि यह भक्ति, परिश्रम और आस्था का प्रतीक भी है। इसमें उस क्षण का चित्रण है जब व्रती या श्रद्धालु छठ मैया की पूजा के लिए घाट की ओर बहंगी (बांस की डंडी पर टोकरी लटकाकर) लेकर जा रहे होते हैं। कांच ही बांस के बहंगिया छठ गीत बिहार-पूर्वांचल की लोकआस्था और छठ मैया की भक्ति का प्रतीक है। जानिए इस लोकगीत के बोल, अर्थ,सांस्कृतिक महत्व और इसका लोकजीवन से गहरा सम्बन्ध।
छठ पूजा में गया जानें वाला पारम्परिक लोकगीत……..
“कांच ही बांस के बहंगिया”
कांच ही बांस के बहंगिया,बहंगी लचकत जाए-बहंगी लचकत जाए।
होए ना बलम जी कहरिया,बहंगी घाटे पहुंचाए-बहंगी घाटे पहुंचाए
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए, बहंगी लचकत जाए।
बाट जे पूछे ना बटोहिया,बहंगी केकरा के जाए-बहंगी केकरा के जाए.
तू तो आंध्र होवे रे बटोहिया,बहंगी छठ मैया के जाए-बहंगी छठ मैया के जाए।
वह रे जे बाड़ी छठी मैया,बहंगी उनका के जाए-बहंगी उनका के जाए।
कांच ही बांस के बहंगिया, बहंगी लचकत जाए, बहंगी लचकत जाए।

गीत का शाब्दिक और भावार्थ
यह गीत साधारण दिखता है, परंतु इसके हर शब्द में आस्था की गहराई और लोकजीवन की सरलता झलकती है।
“कांच ही बांस के बहंगिया” का अर्थ- कांच (मजबूत व चिकनी) बांस की बनी बहंगी, जिसमें पूजा का सामग्री लेकर श्रद्धालु घाट की ओर बढ़ रहा है।
“बहंगी लचकत जाए” – यानी वह बहंगी चलते समय लचक रही है यह दृश्य श्रद्धा और परिश्रम दोनों को दर्शाता है।
गीत में बलम (पति या साथी) से कहा गया है कि बहंगी घाट तक पहुंचाने में मदद करें।
जब कोई राहगीर पूछता है कि बहंगी किसके लिए जा रही है, तो उत्तर मिलता है, यह छठी मैया के लिए जा रही है।
इस प्रकार यह गीत एक साधारण संवाद के माध्यम से भक्ति, नारी-शक्ति और लोकपरंपरा का सजीव चित्रण करता है।
छठ पूजा और बहंगी का प्रतीकात्मक अर्थ
छठ पर्व का प्रत्येक तत्व गहराई से जुड़ा हुआ है- सूर्य की उपासना, जल, मिट्टी, व्रत, और बहंगी (बांस की डंडी) इन सबका प्रतीकात्मक अर्थ होता है।
- बांस – शुद्धता, स्थायित्व और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक।
- बहंगी – मेहनत और समर्पण का प्रतीक, जो व्रती अपनी भक्ति से तैयार करते हैं।
- लचकती बहंगी – यह नारी के तप, संतुलन और मातृत्व की झलक है, जो परिवार और धर्म दोनों को संभालती है।
गीत में बहंगी का झूलना न सिर्फ शारीरिक क्रिया है, बल्कि भक्ति की लय भी है, जैसे मन श्रद्धा से झूम रहा हो।
भोजपुरी लोकजीवन और छठ गीतों की सांस्कृतिक भूमिका
बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में छठ गीत हर घर-आंगन में गूंजते हैं। ये गीत महिलाओं द्वारा पारंपरिक रूप से गाए जाते हैं और इनमें सूर्य देव, उषा, और छठी मैया की स्तुति होती है।“कांच ही बांस के बहंगिया” जैसे गीत लोकजीवन की सादगी और गहराई दोनों को उजागर करते हैं। यह गीत बताता है कि आस्था का मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन उसमें प्रेम, निष्ठा और उल्लास भी है। लोकगीतों की यही शक्ति है, वे न तो उपदेश देते हैं और न ही तर्क; वे केवल भावनाओं का अनुभव कराते हैं।
संगीत की दृष्टि से महत्व-इस गीत की धुन पारंपरिक बिहारी लोकताल में गाई जाती है। इसमें एक प्राकृतिक झंकार है, जो नदी, सूर्य और व्रती की चाल के साथ तालमेल बनाती है। बहंगी की लचक को संगीत की लय में पिरो दिया गया है। इस गीत को गाने का एक विशिष्ट अंदाज़ होता है धीमे-धीमे स्वर में, जैसे आस्था की नदी बह रही हो। यह गीत छठ के अवसर पर घाट की ओर जाते हुए, डूबते सूरज को अर्घ्य देने से पहले या संध्या आरती के दौरान गाया जाता है।
सामाजिक दृष्टिकोण से भाव-इस गीत में नारी का विशेष स्थान झलकता है। छठ पर्व मुख्यतः महिलाएं ही करती हैं — वे व्रत रखती हैं, पूजा सामग्री तैयार करती हैं, और घाट तक बहंगी लेकर जाती हैं। “कांच ही बांस के बहंगिया” में नारी-समर्पण, गृहस्थ जीवन की सादगी और मातृत्व का बलिदान एक साथ झलकता है। जब गीत में कहा जाता है, “बहंगी छठ मैया के जाए”, तो यह केवल एक वाक्य नहीं, बल्कि यह उस अखंड श्रद्धा का उद्घोष है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है।
छठ गीतों का आधुनिक रूप और लोकप्रियता – आज यह गीत न सिर्फ गांवों में, बल्कि शहरों, टीवी चैनलों और यूट्यूब तक पहुंच चुका है। कंचन, शारदा सिन्हा जैसे प्रसिद्ध लोकगायकों ने इसे अपने सुरों में अमर कर दिया। फिर भी, इसकी आत्मा वहीं रहती है,मिट्टी की सोंधी गंध में, आंचल की श्रद्धा में और नदी किनारे के दीपों में। यह गीत याद दिलाता है कि तकनीक और आधुनिकता के बीच भी लोकभावना अमर रहती है।
निष्कर्ष : लोकगीतों में छिपा अमर भक्ति-सूत्र – “कांच ही बांस के बहंगिया” केवल एक छठ गीत नहीं है, बल्कि यह भारतीय लोकसंस्कृति का जीवंत प्रतीक है। इस गीत में परिश्रम की गरिमा, भक्ति की मधुरता और नारी के अटूट विश्वास की प्रतिध्वनि सुनाई देती है। जब बहंगी लचकती है, तब यह केवल शारीरिक क्रिया नहीं, बल्कि श्रद्धा की लय है ,एक भक्त का मन झूम उठता है और प्रकृति भी उसके साथ गुनगुनाने लगती है। छठ पर्व के इस गीत के माध्यम से लोकजीवन हमें यह सिखाता है कि “भक्ति का मार्ग कठिन जरूर है, पर प्रेम और श्रद्धा से वह मधुर हो जाता है।”
