Site iconSite icon SHABD SANCHI

Chhath Puja 2023: बिहार में ही इतने धूम धाम से क्यों मनाया जाता है?

Chhath Puja 2023Chhath Puja 2023

Chhath Puja 2023

जब ट्रेनों में भीड़ बढ़ने लगे, दफ्तरों में उदासी छाने लगे और बिहार, यूपी, झारखंड के गावों, कस्बों में खुशहाली दिखने लगे तो समझ जाइये कि महापर्व छठ आरहा है।छठ एकमात्र ऐसा पर्व है जिसे महापर्व भी कहा जाता है, एक ऐसा पर्व जिसे मनाने के लिए बिहार के लोग जो अपने प्रदेश से दूर होते हैं वो सालभर में कई छुट्टियों की कुर्बानी दे देते हैं ताकी वो छठ पूजा में अपने प्रदेश,अपने घर बिहार जा सके।

आखिर बिहार में ही क्यों इतने धूम-धाम से छठ महापर्व मनाया जाता है? आइए जानते हैं क्या है मान्यताएं.

यूं तो छठ पूजा की धूम पूरे देश-विदेश में रहती है। पर छठ पूजा का जो महत्व बिहार में है। जितने हर्ष और उल्लास के साथ इस पर्व को बिहार में मनाया जाता है वह दुनिया में कहीं और देखने को नहीं मिलता। लोक व आस्था का महापर्व छठ पूजा हर वर्ष कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाई जाती है। छठ पूजा में देवी षष्ठी की आराधना की जाती है। आम बोलचाल की भाषा में देवी षष्ठी को ही छठी मैया का नाम दिया गया है।

छठ पूजा जिसकी धूम पूरे चार दिनों तक रहती है, जिसकी शुरुआत पहले दिन के नहाय खाय से होती है और चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इसका समापन किया जाता है।इस पर्व का महत्व विशेष तौर पर निसंतान महिलाओं के लिए बताया जाता है। कुछ ऐसी मान्यता भी हैं कि छठ पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है।

अगर बात की जाए इस महापार्व के इतिहास की तो ईसकी शुरुआत पौराणिक कथाओं से बताई जाती हैपौराणिक कथा के अनुसार छठ का संबंध बिहार के भागलपुर से है, सूर्यपुत्र कर्ण के संबंध को बिहार के भागलपुर से माना गया है कारण यहां पूरी निष्ठा और श्रद्धा से पानी में घंटे खड़े होकर सूर्य देव की उपासना करते थे। सूर्य के आशीर्वाद से वह योद्धा बन पाए थे। छठ पूजा को लेकर आज भी यही मान्यता प्रचलित है।

ऐसे ही एक और मान्यता है जो रामायण काल से जुड़ा हुआ है।

इस मान्यता के अनुसार, जब राम-सीता 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या नगरी लौटे, तब रावण वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर सूर्य यज्ञ करवाया। उन्होंने इस पूजा के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किया था। मुग्दल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का उन्हें आदेश दिया। इससे सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव की पूजा अर्चना की और फिर सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।

अर्घ्य दान की ऐसी ही मान्यताओं को लोग आज भी मानते हैं और पूरे धूम धाम से इस महापर्व को मनाते हैं। इस वर्ष छठ पुजा की शुरूआत 17 नवंबर से शुरु होकर 20 नवंबर को खत्म होगी।

Exit mobile version