चौरी-चौरा कांड एक जनआंदोलन जिसके बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था

Chauri Chauri Kand Kya Hai | 1 अगस्त 1920 को महात्मा गांधी ने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध देश में अहसहयोग आंदोलन छेड़ा था, इस आंदोलन का त्वरित कारण, जलियाँवाला बाग नरसंहार था, इस आंदोलन के तहत स्वदेशी का उपयोग करना, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करना, इसके साथ ही शासन, प्रशासन में सरकार को असहयोग देना, यही इस आंदोलन का प्रमुख लक्ष्य था, 1921-22 में देश में इस्लामी खलीफा के समर्थन में, खिलाफत आंदोलन भी प्रारंभ हो गया था, जिसे काँग्रेस ने समर्थन दिया था, महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन चरम पर था, उसी समय उत्तर-प्रदेश के गोरखपुर के चौरी-चौरा नाम के स्थान पर, एक घटना घटी जिसे चौरी-चौरा कांड कहते हैं, इस घटना से आहत होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस ले लिया था।

क्या थी चौरी-चौरा की घटना

घटना से कुछ दिन पहले की बात है, कुछ आंदोलनकारियों ने मुँडेरा बाजार पर धरना दिया था, लेकिन बाजार के मालिक संतबक्स सिंह के आदमियों ने, थाने से पुलिस बुला रखी थी, पुलिस वालों ने आंदोलनकारियों को पीट कर खदेड़ दिया। इसीलिए आंदोलनकारियों ने पीटने और गिरफ्तार होने के भय से अगली बार और भी संख्या में आने का फैसला लिया, इनको प्रशिक्षण दे रहे थे भगवान अहीर, जो प्रथम विश्वयुद्ध के समय ब्रिटिश सेना में थे और इराक में तैनात थे।

4 फरवरी 1922 को शनिवार के दिन लगभग 8 बजे से ही सैकड़ों लोग मुंडेरा बाजार में इकट्ठा होने लगे थे, इधर थाने को भी इसकी भनक लग गई थी, उन्होंने गोरखपुर और पास के थानों से अतिरिक्त पुलिस बाल बुला लिया था, उनके पास बंदूकें भी थीं। इलाके के एक जमींदार उमराव सिंह के प्रबंधक हरचरण सिंह ने आंदोलनकारियों और पुलिस के बीच मध्यस्थता करने की कोशिस की, आंदोलनकारियों ने आश्वासन दिया कि वह शांतिपूर्ण जुलूस ही निकालेंगे, जुलूस लगभग शांतिपूर्ण निकल ही रहा था की आंदोलनकारियों और पुलिककर्मियों में किसी बात को लेकर विवाद हो गया, भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिसकर्मियों ने दारोगा के आदेश पर गोली चला दी, जिसमें कुछ आंदोलनकारियों की मृत्यु हो गई, इस कृत्य से गुस्साई भीड़ ने थाने पर धावा बोल दिया, गोली खत्म होने के बाद पुलिककर्मी जान बचाने के लिए थाने के अंदर चले गए, गुस्साई भीड़ ने थाना ही फूँक दिया, दरोगा गुप्तेश्वर सिंह ने भागने की भी कोशिश की, लेकिन भीड़ ने उसे भी पकड़कर आग में फेंक दिया।

रीवा में अवैध कालोनाइजर्स एफआईआर होगी दर्ज, दस्तावेज सौंपने तीन दिन का दिया गया समय

दरोगा के अलावा सब-इंस्पेक्टर पृथ्वी पाल सिंह, बशीर खां, कपिलदेव सिंह, लखई सिंह, रघुवीर सिंह, विशेसर यादव, मुहम्मद अली, हसन खां, गदाबख्श खां, जमा खां, मंगरू चौबे, रामबली पाण्डेय, कपिल देव, इन्द्रासन सिंह, रामलखन सिंह, मर्दाना खां, जगदेव सिंह, जगई सिंह को भी आग के हवाले कर दिया गया, उस दिन थाने में वेतन लेने के लिए गाँव के कुछ चौकीदार भी आए थे, चौकीदार वजीर, घिंसई, जथई और कतवारू राम को भी आंदोलनकारियों ने जलती आग में फेंक दिया, कुल मिलाकर बाईस पुलिसवाले जिंदा जलाकर मार दिए गए। हालांकि आंदोलनकारियों ने थाने परिसर में ही स्थित पुलिस वालों के बीवी-बच्चों को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया, मुहम्मद सिद्दिकी नाम का एक सिपाही किसी तरह बच गया था, उसी ने नजदीकी थाने और गोरखपुर में बड़े आधिकारियों को इस घटना के बारे में सूचित किया।

इस आंदोलन के बाद ब्रिटिश सरकार ने सैकड़ों आंदोलनकारियों पर केस दर्ज किया, पुलिस रिपोर्ट के अनुसार लगभग 6000 लोग इस घटना के समय उपस्थित थे, इनमें से करीब 1000 लोगों से पूछताछ की गई, और इसी आधार पर गोरखपुर कोर्ट ने लगभग 225 आन्दोलकारियों के खिलाफ सुनवाई शुरू की और 172 लोगों को मौत की सजा सुनाई, गोरखपुर काँग्रेस कमेटी ने इस फैसले के विरुद्ध हाई कोर्ट में अपील की, जहां काँग्रेस के बड़े नेता पंडित मदन मोहन मालवीय ने इस केस की पैरवी की, बाद में हाई कोर्ट ने 19 लोगों को मृत्युदंड दिया, 16 लोगों को कालापानी भेज दिया, कुछ लोगों को कारावास की सजा हुई और लगभग 38 लोगों को बरी कर दिया गया।

जब महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन बंद कर दिया

इस घटना में हुई हिंसा के बाद दुखी होकर महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर दिया था, गांधी जी ने 12 फरवरी को काँग्रेस वर्किंग कॉमेटी के सामने असहयोग आंदोलन को स्थगित कर देने का प्रस्ताव रखा, और इसके बाद औपचारिक रूप से यह आंदोलन बंद हो गया। जिसके बाद मोतीलाल नेहरू, देशबंधु बाबू चितरंजन दास समेत कई काँग्रेस नेताओं ने अपनी असहमति भी जताई, जिसके बाद दिसंबर में हुए काँग्रेस के गया अधिवेशन में यह दोनों नेताओं ने काँग्रेस से अलग होकर स्वराज पार्टी की स्थापना की।

इसी पार्टी की यूथ इकाई हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन थी जिसके साथ रामप्रसाद बिस्मिल, आशफ़ाक़उल्ला खान, चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह इत्यादि नौजवान क्रांतिकारी भी जुड़े थे, जो शायद महात्मा गांधी के सत्य, अहिंसा से सहमत नहीं थे। असहयोग आंदोलन के अचानक से समाप्त हो जाने पर, खिलाफत आंदोलन के प्रमुख मुस्लिम नेताओं का काँग्रेस से मोहभंग हो गया। हालांकि ब्रिटिश सरकार ने असहयोग आंदोलन के चलते, गांधी जी के विरुद्ध राजद्रोह का मुकदमा भी शुरू किया था, और उन्हें 6 वर्ष की सजा भी दी गई थी।

ब्रिटिश सरकार ने मारे गए पुलिसकर्मियों की याद में एक स्मारक की स्थापना की, जिसमें आजादी के बाद जयहिन्द लिख दिया गया, स्थानीय लोग उन 19 आन्दोलकारियों को नहीं भूले, जिन्हें फांसी की सजा दी गई थी, 1971 में ‘शहीद स्मारक समिति’ का निर्माण किया गया। 1973 में समिति ने झील के पास 12.2 मीटर ऊँची एक त्रिकोणीय मीनार का निर्माण करवाया, जिसमें तीनों फलकों पर गले में फाँसी का फन्दा को चित्रित किया गया। बाद में भारतीय रेल्वे ने 1990 में गोरखपुर से इलाहाबाद तक एक रेल सेवा प्रारंभ की, जिसे चौरी-चौरा एक्स्प्रेस कहा गया, 2022 को इस घटना के 100 वर्ष पूर्ण होने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने शताब्दी समारोह का आयोजन किया और एक डाक टिकट भी जारी किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *