Ancient Shiv Temple Vindhya | चौमुखनाथ: मध्यप्रदेश के पन्ना में स्थित भगवान शिव का दुर्लभ मंदिर

Ancient Shiv Temple Vindhya: भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में सलेहा के पास गंज में स्थित है, जिसे चौमुखनाथ शिव मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर लोकआस्था का केंद्र है, शिवरात्रि और सावन इत्यादि में यहाँ खूब भीड़ होती है, लोग भगवान शिव के दर्शन के लिए आते हैं, माना यह जाता है यह मंदिर अतिप्राचीन है। आइए जानते हैं मंदिर के इतिहास और स्थापत्य पर।

मंदिर का इतिहास

मंदिर भारत के इतिहास का अभिन्न अंग रहे हैं, भारत में वैसे तो मंदिर का निर्माण अतिप्राचीन काल से होता आ रहा है, लेकिन हमारे पास आज के समय में केवल गुप्तयुग के समय के ही मंदिरों की संरचना प्राप्त है, उससे पहले की मंदिर संरचनाओं के ना मिलने का कारण विद्वान मानते हैं, संभवतः ये मंदिर लकड़ी इत्यादि के बनते रहें होंगे। गुप्तकाल के समय का ही एक मंदिर मध्यप्रदेश के पन्ना में देवेन्द्रनगर के पास सलेहा में स्थित है, जिसे नचना-कुठार का मंदिर भी कहते हैं, यह मंदिर भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित है। दरसल यहाँ दो मंदिर हैं, पहला है पार्वती मंदिर और दूसरा मंदिर जिसमें एक चतुर्मुख शिवलिंग स्थापित है, जिसके कारण इसे स्थानीय लोग चौमुखनाथ शिवमंदिर कहते हैं। ऐसा माना जाता है, यह मंदिर गुप्तकाल के समय निर्मित हुआ है, गुप्त राजाओं ने तीसरी शताब्दी से लेकर 6 वीं शताब्दी तक भारत के बहुत बड़े हिस्से में शासन किया है। नचना के क्षेत्रों में गुप्तशासन की पुष्टि एक अभिलेख से भी होती है, जो उच्चकल्प के एक राजा व्याघ्रदेव का है, इस अभिलेख के अनुसार राजा व्याघ्रदेव वाकाटक वंश के शासक पृथ्वीसेन की अधीनता स्वीकारता था, लेकिन बाद में समुद्रगुप्त के विजयअभियानों के समय उसने गुप्त शासकों की आधीनता स्वीकार कर ली थी, जिसकी पुष्टि बाद के अभिलेखों इत्यादि से होती है। हालांकि यह अभिलेख विवादित है, केवल व्याघ्रदेव के नाम बस के कारण विद्वान इसे लेकर एकमत नहीं है कि यह अभिलेख किस व्याघ्र देव का है। इसके साथ ही यह गुत्थी भी नहीं सुलझती इसका निर्माण किसने करवाया था।

इस मंदिर की प्राचीनता को लेकर भी इतिहासकारों में विवाद है, चूंकि दो मंदिर हैं एक मंदिर गुप्तपूर्व का है, कनिंघम के अनुसार यह पार्वती मंदिर है, इस मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत पाषाण मूर्तियों का अंकन किया गया है, जिसके कारण यह कुछ-कुछ खजुराहो मंदिर की याद दिलाता है। और दूसरा मंदिर जिसे गुप्त युग के बाद का माना जाता है, जो भगवान शिव को समर्पित है।

मंदिर स्थापत्य और शैली

नागर शैली में निर्मित यह मंदिर, खूबसूरत पत्थरों से बनाया गया है, यहाँ एक मुखलिंगम स्थापित है, जिसके चार मुख है, इसीलिए यह शिव के पंचमुख पहलुओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, यह पंचमुख पाँच जीवन तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं, उत्तर की तरफ का मुख- जल तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे वामदेव या भव भी कहा जाता है, शिव का यह रूप संरक्षण का प्रतीक है। पूर्व दिशा की तरफ का मुख- वायु तत्व का प्रतिनिधित्व करता है, जिसे तत्पुरुष या उग्र कहते हैं, यह छुपाव का प्रतीक है। पश्चिम तरफ का मुख पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व है, जिसे सद्योजात कहते हैं, यह सृजन का प्रतीक है। दक्षिण की तरफ का मुख अग्नितत्व का प्रतिनिधि करता है, जिसे आघोर भी कहते हैं, जो विनाश का प्रतीक है। जबकि पांचवा है स्वयं शिवलिंग जो आकाश तत्व का प्रतिनिधि है, इसे ईशान भी कहते हैं, जो अनंत रहस्यमयता का प्रतीक है।

मंदिर की खोज

मंदिर की खोज का श्रेय भारतीय पुरातत्व के संस्थापक कनिंघम को दिया जाता है, जिन्होंने 1885 में यहाँ की यात्रा की थी, और इस पर एक लेख लिखकर इसे प्रकाशित किया था, जिसके बाद पश्चिमी विद्वानों का इस तरफ ध्यान गया। हालांकि घनघोर जंगल में स्थित होने और दुर्गम पहुँच मार्ग के बाद भी कनिंघम यह मानते हैं कि इस मंदिर के बारे में यहाँ के लोगों को जानकारी थी और वे अक्सर यहाँ दर्शन करने के लिए आया करते थे, इसके अलावा कनिंघम यह भी कहते हैं कुछ लोगों की यह भी मान्यता है, यह बुंदेलखंड की पुरानी राजधानी था। कनिंघम इन मंदिरों को तीसरी शताब्दी से पाँचवीं शताब्दी के बीच निर्मित मानते हैं, हालांकि कुछ इतिहासकार उनसे सहमत नहीं है।

पुरातात्विक संभवानाएँ

पुरातत्विदों और इतिहासकारों का मानना है, यहाँ बहुत संभव है कोई नगर रहा हो, ऐतिहासिक अन्वेषण के बाद ही, इस पर कुछ कहा जा सकता है, पिछले वर्ष ही पुरातत्व की टीम ने यहाँ खुदाई की थी और आगे भी उनका अनुसंधान जारी रहेगा और शायद हमें भविष्य में कुछ बेहतरीन परिणाम मिल सके।

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