Kisan Diwas 2024 : किसानों के मसीहा कहे जाने वाले देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की आज 122वीं जयंती है। आपको बता दें कि चौधरी चरण सिंह से जुड़े किस्से इतने रोचक हैं कि कोई उनसे प्रेरणा लेता है तो कोई उनकी जिद और जुनून को स्वाभिमान मानता है। देश की आजादी की लड़ाई और इंदिरा गांधी की इमरजेंसी के खिलाफ आंदोलन दोनों में अहम भूमिका निभाने वाले चौधरी चरण सिंह ऐसे प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने एक दिन भी संसद का सामना नहीं किया। इससे पहले भी कुछ ऐसे हालात बने कि उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था।
चौधरी चरण सिंह का जन्म साल 1902 में हापुड़ में हुआ था।
23 दिसंबर 1902 को हापुड़ में जन्मे चौधरी चरण सिंह ने आगरा यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई पूरी की और 1928 में गाजियाबाद में वकालत शुरू की। इसके साथ ही उन्होंने आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू कर दिया, जिसने उन्हें राजनीति की राह दिखाई। 1937 में चौधरी चरण सिंह ने पहली बार यूपी के छपरौली से विधानसभा चुनाव जीता और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
आपातकाल के बाद बनी सरकार में वे उप प्रधानमंत्री बने।
यह 1975 की बात है, जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी थी। कभी कांग्रेस का अहम हिस्सा रहे चौधरी चरण सिंह ने उनका विरोध किया। नतीजतन चौधरी चरण सिंह को जेल जाना पड़ा। हालांकि, आपातकाल के बाद देश में हुए आम चुनावों में इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा और पहली बार देश में गैर-कांग्रेसी दलों ने सरकार बनाई। जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार के मुखिया मोरारजी देसाई थे, जिन्होंने अपनी सरकार में उप प्रधानमंत्री और गृह मंत्री का पद किसानों के नेता चौधरी चरण सिंह को सौंपा था। यह अलग बात है कि प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई लंबे समय तक अपने पद पर नहीं रह सके और जनता पार्टी में कलह के कारण उनकी सरकार गिर गई।
क्यों उन्होंने इंदिरा गांधी से समर्थन नहीं लिया? Kisan Diwas 2024
मोरारजी देसाई की सरकार गिरने के बाद चौधरी चरण सिंह 1979 में कांग्रेस यू के समर्थन से पीएम बने, लेकिन उनके पास सरकार चलाने के लिए जरूरी ताकत नहीं थी। वह चाहते तो इंदिरा गांधी का समर्थन लेकर अपनी सरकार बचा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। कहा जाता है कि चौधरी चरण सिंह की इस जिद के पीछे एक खास वजह थी। वह यह कि इंदिरा जी चाहती थीं कि आपातकाल को लेकर उनके और कांग्रेस नेताओं पर दर्ज मुकदमे वापस लिए जाएं। बस यही एक शर्त थी जिसे चौधरी चरण सिंह ने नहीं माना और 21 अगस्त 1979 को उन्होंने तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को अपना इस्तीफा सौंप दिया। वह सिर्फ 23 दिन तक देश के प्रधानमंत्री रहे और इस दौरान संसद का सत्र न चलने के कारण उन्हें संसद का सामना करने का मौका भी नहीं मिला।
राजस्व मंत्री बनते ही जमींदारी उन्मूलन अधिनियम लागू किया।
चौधरी चरण सिंह को अगर किसानों का मसीहा कहा जाए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। उन्होंने 1937 में यूपी के छपरौली से विधानसभा चुनाव जीता और फिर वह लगातार जीतते रहे। 1946, 1952, 1962 और 1967 में भी इस क्षेत्र की जनता ने उनका तहे दिल से स्वागत किया और उन्हें अपना नेता चुना। गोविंद वल्लभ पंत की सरकार में वे संसदीय कार्य मंत्री बने और राजस्व, कानून और स्वास्थ्य मंत्रालय भी संभाला।
1952 में चौधरी साहब किसानों के मसीहा बनकर उभरे।
डॉ. संपूर्णानंद हों या चंद्रभानु गुप्ता, दोनों ही सरकारों में उन्हें अहम मंत्रालय मिले। यह बात 1952 की है, जब उत्तर प्रदेश सरकार के राजस्व मंत्री के तौर पर चौधरी चरण सिंह किसानों के असली मसीहा बनकर उभरे। मंत्री बनते ही उन्होंने उसी साल विधानसभा से जमींदारी उन्मूलन अधिनियम पारित कराया। इस कानून के अस्तित्व में आने के बाद जमींदारों से और जमीन लेकर उन पर काम करने वाले असली किसानों को दी जाने लगी। जो किसान अब तक जमींदारों के यहां मजदूर के तौर पर काम करते थे, वे अब अपनी जमीन के खुद मालिक बन गए।
पंडित नेहरू से मतभेद के चलते छोड़ी कांग्रेस। Kisan Diwas 2024
पंडित जवाहर लाल नेहरू से मतभेद के चलते चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ दी थी। इसके बाद उन्होंने भारतीय क्रांति दल की स्थापना की। राज नारायण और राम मनोहर लोहिया की मदद से वे 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने, लेकिन अगले ही साल 17 अप्रैल को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इसके बाद हुए चुनावों में वे 17 फरवरी 1970 को फिर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। बाद में वे केंद्रीय राजनीति में चले गए और प्रधानमंत्री के पद तक पहुंचे। बाद में सरकार ने उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। देश में जब भी किसानों की बात होती है तो चौधरी चरण सिंह चर्चा में आ जाते हैं।
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