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आज से चार धाम यात्रा शुरू, खुले गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट

Char Dham Yatra Hindi Mein: हिंदुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक चार धाम यात्रा आज से शुरू हो गई है। गंगोत्री धाम के कपाट 10 बजकर 57 मिनट में खुल गए हैं। जबकि यमुनोत्री धाम के कपाट आज ही 11 बजकर 55 मिनट में खुल गए हैं। इसी के साथ करीब 6 महीने तक चलने वाली चारों धाम यात्रा का विधिवत प्रारंभ हो गया।

आज गंगोत्री धाम में सुबह पूजा के दौरान हेलिकॉप्टर से फूल बरसाए गए इस दौरान सूबे के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी भी उपस्थति रहे। राजपूताना राइफल्स के के धुनों के बीच देवी गंगा की आरती-पूजा की गई। सुबह पट खुलने के साथ ही गंगोत्री तीर्थ में लगभग 1 हजार श्रद्धालु उपस्थित रहे। अनुमान है आज पहले दिन यमुनोत्री में करीब 10 हजार तीर्थ यात्री आ सकते हैं।

इस बार करीब 60 लाख तीर्थयात्रियों की आने की उम्मीद

अनुमान है इस वर्ष चारों धाम की यात्रा पर करीब 60 लाख तीर्थ यात्री आ सकते हैं। अब तक करीब 20 लाख लोगों ने यहाँ आने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है। पिछली बार मौसम की वजह से 15 दिनों की यात्रा बाधित होने के बाद भी करीब 48 लाख लोग इन धामों की यात्रा पर आए थे।

चार धाम यात्रा का कैलेंडर

गंगोत्री धाम के कपाट 30 अप्रैल को 10:30 बजे सुबह खुलेंगे जबकि यह 22 अक्टूबर 2025 को बंद होंगे। यमुनोत्री धाम के कपाट 30 अप्रैल को 11:55 बजे खुलेंगे और 23 अक्टूबर 2025 तक खुले रहेंगे। केदारनाथ धाम के केदारनाथ मंदिर के कपाट 2 मई 2025 तक खुलेंगे और 23 अक्टूबर 2025 तक बंद होंगे। बद्रीनाथ तीर्थ के कपाट 4 मई 2025 को खुलेंगे और 6 नवंबर 2025 तक खुले रहेंगे।

चार धाम यात्रा के चार प्रमुख तीर्थ

उत्तराखंड राज्य की चार धाम यात्रा जिसको लघु चार धाम भी कहा जाता है उत्तराखंड राज्य के हिमालय क्षेत्र में स्थित चार तीर्थ हैं। जहाँ प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालु तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं।

यमुनोत्री – यह चारों धाम यात्रा यमुनोत्री धाम से शुरू होती है। यमुनोत्री वह स्थान है जहाँ से यमुना नदी का उद्गम होता है। इसीलिए यह धाम भगवान सूर्य की पुत्री देवी यमुना को समर्पित है। टिहरी-गढ़वाल के राजा प्रताप शाह द्वारा बनवाया गया यहाँ एक मंदिर है। मंदिर तक पहुँचने के लिए तीर्थयात्रियों को जानकी चट्टी से 6 किलोमीटर पैदल यात्रा करनी पड़ती है।

गंगोत्री – चारों धाम यात्रा का दूसरा पड़ाव गंगोत्री है। गंगोत्री वह स्थान है जहाँ से देवनदी भागीरथी अर्थात गंगा का उद्गम होता है। यह तीर्थ देवी गंगा को ही समर्पित है। 19वीं शताब्दी में नेपाली सेना के एक गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा ने एक मंदिर का निर्माण करवाया था। यह मंदिर 3048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।

केदारनाथ – यात्रा का तीसरा पड़ाव केदारनाथ तीर्थ है जो भगवान शिव को समर्पित है। केदारनाथ को 12 ज्योतिर्लिंग में से एक माना जाता है। 3584 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह तीर्थ चारों ओर से हिमालय पर्वतों से घिरा हुआ है। माना जाता है केदार नाथ शिवलिंग की स्थापना और प्राण प्रतिष्ठा स्वयं द्रौपदी सहित पांडवों ने की थी। लेकिन यह मंदिर बहुत समय तक हिमयुग की चपेट में रहा। उसके बाद 8 वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने इस तीर्थ को ढूंढा और इसकी पुनर्स्थापना की। इस धाम के पहले मंदिर का निर्माण किसने किया था यह तो पता नहीं, लेकिन 11 वीं शताब्दी के मालवा के राजा भोज परमार को शिव जी के लिए पहला मंदिर बनवाने का श्रेय दिया जाता है। हालांकि कई सौ वर्षों तक यहा तीर्थ हिमयुग के चपेट में रहा बाद 18 वीं शताब्दी में यह हिमयुग से मुक्त हुआ। माना जाता है तब इंदौर की रानी रानी अहिल्याबाई ने शिवमंदिर का पुनर्निर्माण करवाया था।

बद्रीनाथ – बद्रीनाथ तीर्थ चारों धाम यात्रा का अंतिम पड़ाव माना जाता है। इस तीर्थ में दर्शन के बाद ही यह यात्रा पूर्ण हो जाती है। यह तीर्थ जगत के पालक भगवान श्री हरि विष्णु को समर्पित है। बदरी अर्थात बेर के वन में निवास करने के कारण ही भगवान को बद्रीनाथ या बद्रीविशाल कहा जाता है। कहते हैं यहाँ एकसमय बौद्ध अनुयायियों का बाहुल्य हो गया था। माना जाता है भगवान आदिशंकराचार्य ने गढ़वाल के स्थानीय राजा कनकपाल के साथ मिलकर अलकनंदा नदी से निकाल कर भगवान बद्रीविशाल की पुनर्स्थापना की थी। यहीं पर उनके द्वारा स्थापित जोशीमठ भी यहीं स्थापित है।

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