Superhit Movie Bhabhi : एवीएम प्रोडक्शंस के लिए कृष्णन-पंजू द्वारा निर्देशित 1957 की हिंदी फिल्म, जो ये कहते हुए रुपहले परदे पर जगमगाती है “चल उड़ जा रे पंछी अब ये देस हुआ बेगाना….,” जी हाँ ये फिल्म है “भाभी” जो हर पड़ाव पर समाज और परिवार को सीख देती है एक जुट रहने की ,सामंजस्य बिठाने की और रिश्ते निभाने की भी तो आइये आज बात करते हैं फिल्म “भाभी “की जिसकी कहानी शुरू होती है, इस गीत के साथ मृत्युशय्या पर लेटे रतन के पिता जी से जिनके पास उनकी रिश्ते की बहन (दुर्गा खोटे) हैं और सबसे बड़ा बेटा रतनलाल दवा लेकर आता है लेकिन डॉक्टर कहते हैं अब उन्हें दवा की ज़रूरत नहीं और वो जल्द ही अपने तीन और बेटों, रमेश, राजन और बलदेव या ‘बिल्लू’ को रतन की देखभाल की ज़िम्मेदारी सौंपकर ,इसके अलावा 1,000 रुपये का क़र्ज़ भी चुकाने का वचन लेते हुए दम तोड़ देते हैं, इसलिए रतन अपनी पढाई छोड़कर कुछ काम करना चाहता है ताकि वो अपना और अपने भाइयों का पेट पाल सके, उन्हें पढ़ा लिखा सके।
क़र्ज़ चुका देने का भरोसा दिलाने के लिए वो वकील मोतीलाल (बिपिन गुप्ता) के पास भी जाता है, तो मोतीलाल कहते हैं कि इसकी कोई ज़रूरत नहीं है और वो रतन की कुछ काम करने की इच्छा को जानकार उसकी मदद करने के लिए मैसूर के एक कपड़ा व्यापारी के पास भेज देते हैं ,जहाँ मोतीलाल जी की सिफारिश से उसे काफी कपड़ा फेरी में बेचने के लिए मिल जाता है और रतन पूरे जोश से गली – गली चिल्लाकर अपने कपड़ों के गुण गान गाता हुआ कपड़े बेचता है। ये किशोर लड़का अपने नाज़ुक कन्धों पर कपड़ों का बोझ उठाए हुए बड़ा हो जाता और उसके कपड़ों के चर्चे पूरे शहर में होने लगते हैं उसे बहोत मुनाफा होता है और उसके कपड़े बेचने की कला से व्यापारी भी बहोत खुश हो जाता है। अब रतन नाम का ये लड़का जवान हो जाता है और हमारे सामने अभिनेता बलराज साहनी बनके एक नए रूप में आता है एक बड़ा सादगी भरा चेहरा और बड़प्पन भरा व्यवहार है उसका ,कई साल बीत चुके हैं और अब रतन का नाम भी बड़े कामियाब व्यापारियों में गिना जाता है ,उसने अपने तीनों भाइयों को भी पढ़ा लिखा दिया है ,जिनमें रमेश (जवाहर कौल) वकील बनने की राह पर है, और राजन (राजा गोसावी), डॉक्टरी की पढाई कर रहा है तो वहीं बिल्लू यानी (जगदीप) कॉलेज में पढ़ रहा है।
इस दौरान रतन ने शादी भी की थी लेकिन उसकी पत्नी बेटे को जन्म देते ही गुज़र गई अब वो और उसकी चाची जो घर की बुज़ुर्ग हैं इस बेटे को भी पालने की कोशिश में लगे हैं लेकिन बिन माँ का बच्चा पालना आसान नहीं है इसलिए मोतीलाल जी जो अब भी रतन के परिवार का अहम हिस्स्सा हैं और चाची जी भी उसे दोबारा शादी करने को कहते हैं और उनकी बात मान कर रतन शांता यानी अभिनेत्री पंडारी बाई से शादी कर लेता है जो अपनी समझदारी का परिचय जब ही दे देती है जब वो दुल्हन बनके आती है और रतन के रोते बिलख़ते बच्चे को सीने से लगाकर चुप करा देती है। रतन ये देखकर बहोत खुश होता है लेकिन कुछ देर बाद शांता उसे उदास लगती है और रतन के पूछने पर बताती है कि उसे अपनी चचेरी बाल विधवा बहन (नंदा) की याद आ रही है तो रतन कहता है – उसे भी बुला लो तुम्हारे साथ हम सबको भी अच्छा लगेगा इस तरह शांता की बहन लता भी इस परिवार का हिस्सा बन जाती है पर वो खुद भी नहीं जानती की वो विधवा है इस तरह से रतन और शांता उसे रखते हैं।
कुछ साल बाद रतन का बेटा मिट्ठू (डेज़ी ईरानी) अब करीब छह साल का हो गया लेकिन शांता ने अपनी कोई औलाद इसलिए नहीं पैदा की ताकि वो पूरी तरह रतन और उसके परिवार के लिए समर्पित रह सके, पूरा घर खुशियों से भरा है।
लता, बिल्लू के साथ खूब शरारतें करती है यहाँ दोनों के बीच एक गाना भी होता है ‘टाई लगाके माना बन गए जनाब हीरो…’ इस के बाद रतन का कर्मचारी मुंशीराम (शिवराज), रतन के पास क़र्ज़ लेने आता है क्योंकि उसे अपनी बेटी मंगला (नलिनी ) की शादी की चिंता है इस पर रतन कहता है कि वो परेशान न हो रमेश उनकी बेटी से शादी कर लेगा। लेकिन रमेश मोतीलाल जी को असिस्ट करता है और उसे उनकी बेटी तारा (श्यामा) से प्यार हो जाता है और इस प्यार की खबर जब रतन और मोतीलाल जी को लगती है तो वो भी इसे मंज़ूरी दे देते हैं ये रास्ता निकालकर कि अब डॉक्टर बनने वाला भाई राजन, मंगला से शादी कर लेगा राजन ने भी बात मान ली और इस तरह दोनों भाइयों की शादी हो गई।
वधुओं के घर में प्रवेश करते समय शांता आरती की थाली हाँथ में लिए उनका स्वागत करने के लिए आती है लेकिन लता आरती करने की ज़िद करती है और लोग उसके विधवा होने पर ऐतराज़ करते हैं ये बात जान कर मंगला आग उगलने लगती है। इस बात से एक तरफ राजन और मंगला की सुहागरात में ही लड़ाई हो जाती है तो वहीं दूसरी तरफ रमेश और तारा गीत गाते हैं। “छुपाकर मेरी आँखों को वो पूछे….”
नाराज़ राजन मंगला का मिज़ाज देखकर मेडिकल कॉलेज लौट जाता है। लेकिन मंगला का रवैया नहीं बदलता वो तारा को भी बड़ी भाभी यानी शांता के लिए और लता के खिलाफ भी भड़काती रहती है जिससे कुछ दिनों बाद तारा भी सभी घर वालों के खिलाफ हो जाती है । अब भी कोई खुश है घर में तो ,वो हैं ,लता ,मिट्ठू और बिल्लू ,वो साथ -साथ खेलते और पतंग भी उड़ाते हैं, यहाँ फिल्म में गाना हैं “चली चली रे पतंग मेरी चली रे. …”
शांता दोनों देवरानियों की ग़लतियों को नज़र अंदाज़ करती रहती है, पर जब बिल्लू भी अपनी पढाई में मन नहीं लगाता और एक दिन अपनी भाभी शांता को कम पढ़ा लिखा समझकर पढाई को लेकर ऐसे ही बहलाने लगता है तो शांता उसे इंग्लिश में लम्बा चौड़ा लेक्चर सुना देती है, जिसे सुनकर बिल्लू के होश उड़ जाते हैं और तब बिल्लू को पता चलता है कि हमेशा मुस्कुरा कर हर लड़ाई झगड़े को टाल देने वाली उसकी भाभी अपने पति यानी रतन भइया की वजह से खुद को कम पढ़ा लिखा बताती है ताकि उनके पति को ये न लगे कि उनकी पत्नी उनसे ज़्यादा पढ़ी लिखी है।
एक दिन लता को भी दोनों भाभियों -मंगला और तारा ने जता ही दिया कि वो विधवा है उसे सबके जैसे हँसने मुस्कुराने का हक़ नहीं है और उसी दिन लता ने विधवा का रूप धर लिया लता को ऐसे देखकर शांता और रतन को बहोत दुख हुआ।
दूसरी तरफ तारा का भाई जीवन (अनवर हुसैन) अपने पिता की सीरत को बिल्कुल नहीं पड़ा है और एक बिगड़ी हुई औलाद है इसलिए वो तारा और राजन को बहला-फुसलाकर रतन से संपत्ति को चार हिस्सों में बाँटने के लिए राज़ी कर लेता है। इस बात से रतन को बहोत दुख होता है लेकिन वो बड़ी समझदारी से सभी भाइयों में अपनी जायदाद का बँटवारा कर देता है रमेश को रतन की बनाई कपड़ों की फर्म मिलती है, राजन को बंगला दिया जाता है ,बिल्लू के नाम भी कुछ संपत्ति आती है और रतन अपने पिता जी के पुराने गाँव के घर चला जाता है, उसके साथ चाची, शांता ,लता ,बिल्लू ,मिट्ठू और उसका कुत्ता भी चल देते हैं फिर गाना बजता है “चल उड़ जा रे पंछी अब ये देस हुआ बेगाना ….. .”
ये दुख अभी उनके लिए कम नहीं था कि लता के देवर(ओम प्रकाश ) और उसकी लालची पत्नी (मनोरमा) उसे बुलाने आ जाते हैं और लता अपने ससुराल चली जाती है तब बिल्लू और लता को अपने प्यार का एहसास होता है और फिर गण बजता है -“चल उड़ जा रे पंछी अब ये देस हुआ बेगाना…” पर ससुराल पहुँच कर लता को पता चलता है कि वो लोग उसे नौकरानी बनाने के लिए लाए हैं और उसके नाम पर रतन भइया से भी पैसे ऐंठ चुके हैं।
इसके बाद रतन ,बिल्लू को भी अपना करियर बनाने के लिए बाहर भेज देता है ये भी कहता है कि रमेश से भी मिल लेगा रास्ते में क्योंकि वो पिता बनने वाला है पर जब बिल्लू रमेश से मिलने पहुँचता है तो जीवन उसे रमेश का पता ही नहीं देता तो वहीं दूसरी और राजन शराब में डूब जाता हैऔर उसे घर बार की कुछ खबर नहीं रहती, रमेश भी तारा की बातों में आकर घर और बिज़नेज़ जीवन को सौंप देता है इसका फायदा उठाकर जीवन फर्म और घर सब हथिया कर बर्बाद कर देता है ऐसे में रतन अपनी एक-एक पाई बेचकर फर्म के लोगों का क़र्ज़ चुकाता है पर इस दुख से रतन बहुत बीमार पड़ जाता है और एक दिन तूफानी रात में रास्ते से आते वक़्त अपने पिछले सुख याद करते हुए बेहोश हो जाता है उसके साथ मिट्ठू का कुत्ता होता है जो उसकी छड़ी को घर तक पंहुचा कर इशारा करता है की रतन कहीं मुसीबत में है किसी तरह फिर मोहल्ले वाले राजन को घर लेकर आते हैं।
ऐसे में शांता राजन को समझाने जाती है और उसी दिन राजन ये कहते हुए कि भइया से तभी मिलने जाऊंगा जब मै कुछ बन जाऊँगा , सही रास्ते पर चलने का प्रण ले लेता है। अब तक मंगला को भी समझ में आ जाता है की जीवन उसे भी धोखा देकर बंगला अपने नाम करा चुका है और अब उसके पास भी कुछ नहीं है तो वो अपने पिताजी रतन के वफादार कर्मचारी मुंशीराम के पास पहुँचती है और वो अपनी बेटी को बहोत डाँटकर रतन के पास माफ़ी मांगने को ले जाते हैं, शांता भी उसे माफ़ कर देती है और मंगला रतन के इलाज के लिए अपने ज़ेवर देती है लेकिन बात नहीं बनती आखिर में तारा के पिताजी तीर्थ यात्रा से लौटते हैं तो उन्हें बिल्लू स्टेशन पर मिलकर सारी बात बताता है और वो अपने बेटे की खबर लेकर तारा और रमेश को साथ लेकर रतन के पास पहुँचते हैं ,लता को भी शांता बुला लेती है। रतन अपने पूरे परिवार को साथ देखकर बहोत खुश हो जाता है पर राजन का इंतज़ार करता रहता है।
शांता – रतन की परछाईं बनकर उसके साथ रहती है और आख़री ख्वाहिश बताते हुए रतन उससे कहता है तुमने मेरे हर हाल में साथ दिया है लेकिन अब मेरे लिए तुम्हें एक और काम करना है वो ये कि बिल्लू और लता की शादी करा देना तुम इस ज़माने से लड़ सकती हो। और बस फिल्म हमें अपने आखरी पड़ाव पर ले आती हैं , राजन पुलिस वाला बनकर ट्रेन से उतरता है और गाँव के घर पहुँचता है जहाँ ताला लगा देख शहर के बंगले में पहुँचता है वहाँ जश्न का माहौल है और फिर उसे पता चलता है कि बिल्लू और लता की शादी हो रही है पर उसकी भाभी शांता विधवा के रूप में है और अपनी भाभी को देखकर वो रोने लगता है। पर शांता फिर रतन के परिवार को ममता की डोर से बाँध लेती है और माला चढ़ी हुई रतन की तस्वीर के सामने हमें उसका पूरा परिवार अंतिम दृश्य में दिखता है मिट्ठू का चहीता डॉगी भी साथ है। अब आपको समझ आ गया होगा कि फिल्म का नाम “भाभी” क्यों है।
ये फ़िल्म उस साल की आठवीं सबसे ज़्यादा कमाई करने वाली बॉलीवुड फ़िल्म है और 1954 की बंगाली फिल्म ‘बंगा गोरा’ की रीमेक है ,जो प्रभाती देवी सरस्वती के उपन्यास ‘बीजिला’ पर आधारित थी। इस बंगाली फिल्म को पहले तमिल में ‘कुला धीवम ‘के नाम से और बाद में कन्नड़ में ‘जेनु गुडु’ के नाम से बनाया गया था और आपको ये भी बता दें कि फिल्म में मुख्य भूमिका निभाने वाली पंडारी बाई ने बंगाली को छोड़कर सभी संस्करणों में ‘भाभी’ की मुख्य भूमिका निभाई हैं और वो कन्नड़ सिनेमा की पहली सफल नायिका मानी जाती हैं।
साउंडट्रैक की बात करें तो इन गीतों के अलावा फिल्म में और बेहतरीन गीत हैं – “जा रे जादूगर…”,”जा रे कारे बदरा ,कारे कारे बादरा …”, “है बहुत दिनों की बात, था एक मजनू और एक लैला…”,”जवान हो या बुढ़िया… ” गीतकार हैं ,राजेंद्र कृष्ण ,संगीतकार हैं ,चित्रगुप्त। ‘चल उड़ जा रे पंछी’ शायद कई बार बजने की वजह से फिल्म की पहचान भी है। इन गीतों को आवाज़ दी है मोहम्मद रफ़ी,लता मंगेशकर, मन्ना डे और एस. बलबीर ने। नंदा को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री के लिए फिल्मफेयर अवॉर्ड में नामांकित भी किया गया।
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