भगवान् राम द्वारा रावण वध के बाद अयोध्या लौटने की ख़ुशी में अयोध्यावासियों ने मिट्टी के दिए जला कर अपनी ख़ुशी व्यक्त की थी, और तभी से दीपावली पर्व मनाने की शुरुआत हुई थी। दिवाली का त्योहार अपने साथ खुशियां लेकर आता है। वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और सर्द ऋतु की शुरुआत मानी जाती है। समय बदलने के साथ ही त्योहार मनाने के तरीकों में भी बहुत परिवर्तन आ गया है।
पटाखों से प्रदूषित होता पर्यावरण
जहाँ एक ओर कुछ लोगों के लिए दिवाली पटाख़ों और शोर-शराबे का त्योहार है वहीँ कुछ लोगों और पशु-पक्षियों के लिए यह मुसीबतों का त्योहार है। इस समय देश की राजधानी दिल्ली और उसके आस-पास के बढ़ते जानलेवा प्रदूषण से सभी भली-भांति परिचित हैं। साल दर साल बढ़ते प्रदूषण के कारण सुप्रीम कोर्ट का सब्र भी जवाब दे चुका है। दिल्ली में सर्दियों की छुट्टियां एक महीने पहले ही घोषित करनी पड़ी हैं। देश की राजधनी दिल्ली में इमरजेंसी जैसे हालत बन गए हैं। दिवाली के दिन फोड़े जाने वाले पटाखों के प्रदूषण के कारण वातावरण में हानिकारक गैसों की मात्रा अचानक से बढ़ जाने से अस्थमा के मरीज और बच्चों को सांस लेने में समस्या के चलते हॉस्पिटल में भर्ती होना पड़ रहा है। जिम्मेदार नागरिक होने के नाते अगर हम वायु प्रदूषण की समस्या को कम नहीं कर सकते तो “ग्रीन दिवाली” मनाकर इस समस्या को बढ़ने से जरूर रोक सकते हैं।
क्या है ग्रीन दिवाली (Green Diwali) या इको फ्रेंडली दिवाली (Eco Friendly Diwali)
भारतीय सनातन परंपरा में सदैव ही पर्यावरण को खास महत्व दिया गया है। हिन्दू धर्म के सभी त्योहार पर्यावरण को ध्यान में रख कर मनाने की परम्परा रही है और यही बात दिवाली पर भी लागू होती है। पूर्वजों के बताये रास्ते पर चलकर पटाख़ों और अर्टिफिशियल लाइट के स्थान पर सादगी पूर्वक मिट्टी के दिये वाली ग्रीन दीवाली मना सकते हैं।
नार्मल पटाखों से करें तौबा
दिवाली में होने वाले प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण बाजार में बिकने वाले पटाख़े हैं। जो ध्वनि प्रदूषण के साथ-साथ वायु प्रदूषण में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। इन पटाखों में बारूद और जवलनशील रसायन होते हैं जो वायु प्रदुषण के साथ साथ स्किन और आँखों के लिए भी हानिकारक होते हैं। इस दिवाली इन पटाखों से तौबा कर हम ग्रीन पटाखों का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिनमे हानिकारक कैमिकल जैसे बोरियम, पोटैशियम नाइट्रेट और कार्बन को या तो हटा दिया जाता है या उत्सर्जन को 30% तक कम किया जाता है। अगर संभव हो तो किसी भी प्रकार के पटाखों का इस्तेमाल न कर बच्चो को गुब्बारा फोड़ कर दिवाली पर एन्जॉय करवा सकते हैं।
न करें अर्टिफिशियल लाइट का इस्तेमाल
बाजार में बिकने वाली रंग-बिरंगी लाइट और मोमबत्ती के स्थान प्राकृतिक मिट्टी से निर्मित दीयों का इस्तेमाल कर हम इको फ्रेंडली दिवाली (Eco friendly Diwali) मना सकते हैं, जिससे बिजली का बिल भी कम होगा और मिट्टी के दिए बनाने वाले गरीब कुम्हार भी दिवाली को खुशी से एन्जॉय कर पाएंगे।
केमिकल वाले रंगोली कलर को कहें बाय-बाय
केमिकल वाले रंगोली कलर भी पर्यावरण को हानि पहुंचाते हैं। ये जल स्रोतों में पहुँच कर जल प्रदूषण का कारण बनते हैं। इन हानिकारक कलर के स्थान पर प्राकृतिक कलर जैसे आटा, चावल, हल्दी, कुमकुम, गेरू और फूलों का उपयोग कर इको फ्रेंडली रंगोली बनाई जा सकती है।
इसके अलावा भी प्लास्टिक और फाइबर के सजावटी सामान के स्थान पर बांस, लकड़ी, कपड़े से बने सामान और बायोडीग्रेडिबल चीज़ों से घर की सुंदरता को बढ़ा सकते हैं। दिवाली पर गिफ्ट देने के लिए होम मेड गिफ्ट का उपयोग कर सकते हैं।