30 अप्रैल 2025 को केंद्र सरकार ने 2026 की जनगणना के साथ जातिगत जनगणना (Caste Census) कराने का ऐलान कर बिहार (Bihar Politics) की सियासत में हलचल मचा दी। बिहार, जहां जातिगत समीकरण विधानसभा चुनावों के परिणाम तय करते हैं, वहां इस फैसले को NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के लिए मास्टरस्ट्रोक माना जा रहा है। 2025 के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव (Bihar Vidhan Sabha Chunav) से पहले यह कदम बीजेपी और उसके सहयोगी दलों—JDU, LJP (रामविलास), और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM)—को OBC, अति पिछड़ा वर्ग (EBC), और दलित वोटरों (Bihar Dalit Voters) को लुभाने का बड़ा हथियार दे सकता है। दूसरी ओर, इंडिया गठबंधन(INDI Alliance), खासकर आरजेडी (RJD) और कांग्रेस (Congress), के लिए यह फैसला उनके प्रमुख चुनावी मुद्दे को कमजोर कर सकता है।
बिहार की डेमोग्राफी और जातिगत समीकरण
Demography of Bihar 2025: बिहार की कुल जनसंख्या लगभग 13 करोड़ है, जिसमें जातिगत संरचना राजनीति का आधार है। 2023 के बिहार जातीय सर्वेक्षण के अनुसार:
- अति पिछड़ा वर्ग (EBC): 36.01%
- पिछड़ा वर्ग (OBC): 27.12%
- अनुसूचित जाति (SC): 19.65%
- अनुसूचित जनजाति (ST): 1.68%
- सवर्ण: लगभग 15%
- मुस्लिम: 17.7% (जातीय सर्वे में मुस्लिमों को अलग-अलग जातियों में बांटा गया)
इस डेमोग्राफी में OBC और EBC मिलकर 63% से अधिक आबादी बनाते हैं, जबकि SC और ST को मिलाकर 21% से ज्यादा। ये समुदाय चुनावी परिणामों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। यादव (14.26%), कुशवाहा (4.21%), पासवान (5.31%), और मुसहर (3%) जैसी जातियां अपनी सघन आबादी के कारण अहम हैं।
जातीय जनगणना का फैसला NDA के लिए कैसे फायदेमंद?
- OBC और EBC वोटरों को लुभाने की रणनीति:
बीजेपी और जेडीयू लंबे समय से OBC और EBC समुदायों को अपनी नीतियों से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। जातीय जनगणना का फैसला इन समुदायों को यह संदेश देता है कि एनडीए उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति को समझने और नीतियां बनाने के लिए प्रतिबद्ध है। बिहार में EBC की 36% आबादी नीतीश कुमार का कोर वोट बैंक रही है, और यह फैसला जेडीयू को इन वोटरों को मजबूती से अपने साथ रखने में मदद करेगा। बीजेपी भी विश्वकर्मा योजना और जनधन जैसी योजनाओं के जरिए OBC और EBC को लुभा रही है, और जनगणना का वादा इस नैरेटिव को और मजबूत करेगा। - दलित वोटरों पर नजर:
एनडीए में शामिल लोजपा (रामविलास) के नेता चिराग पासवान पासवान (दुसाध) समुदाय के बड़े चेहरे हैं, जो 5.31% आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के जीतन राम मांझी मुसहर (3%) समुदाय के नेता हैं। जातीय जनगणना का फैसला दलित समुदायों को यह भरोसा दिला सकता है कि उनकी आर्थिक और सामाजिक स्थिति के लिए केंद्र सरकार ठोस कदम उठाएगी। यह एनडीए को दलित वोट बैंक को मजबूत करने में मदद करेगा। - विपक्ष के नैरेटिव को कमजोर करना:
आरजेडी और कांग्रेस ने जातीय जनगणना को ‘सामाजिक न्याय’ का हथियार बनाया था। बीजेपी ने इस फैसले के साथ विपक्ष के सबसे बड़े मुद्दे को छीन लिया है। अब एनडीए इसे ‘सबका साथ, सबका विकास’ के तहत पेश कर सकता है, जिससे बीजेपी को सवर्ण और OBC दोनों वोटरों के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। बिहार में बीजेपी का सवर्ण आधार (वैश्य, ब्राह्मण, राजपूत) पहले से मजबूत है, और जनगणना का फैसला OBC और EBC को जोड़कर इसे और व्यापक बना सकता है। - नीतीश कुमार की साख मजबूत:
नीतीश कुमार ने 2023 में बिहार में जातीय सर्वे करवाकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर ला दिया था। केंद्र के इस फैसले से नीतीश को इसका श्रेय मिलेगा, जिससे जेडीयू की EBC और OBC वोटरों के बीच साख बढ़ेगी। यह एनडीए को गठबंधन के भीतर एकजुटता बनाए रखने में भी मदद करेगा। - चुनावी रणनीति में लचीलापन:
बिहार में एनडीए की रणनीति क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों पर टिकी है। उदाहरण के लिए, कुशवाहा वोटरों (4.21%) के लिए उपेंद्र कुशवाहा की राष्ट्रीय लोक मंच, और पासवान वोटरों के लिए चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) अहम भूमिका निभाती हैं। जनगणना का फैसला इन सहयोगी दलों को अपने-अपने समुदायों में बीजेपी के समर्थन को मजबूत करने का मौका देगा।
इंडिया गठबंधन (RJD और कांग्रेस) को क्या नुकसान?
- प्रमुख मुद्दे का कमजोर होना:
आरजेडी और कांग्रेस ने 2024 के लोकसभा चुनाव में जातीय जनगणना को मुख्य मुद्दा बनाया था। राहुल गांधी ने ‘जितनी आबादी, उतना हक’ का नारा दिया, और तेजस्वी यादव ने इसे सामाजिक न्याय का आधार बताया। अब जब केंद्र सरकार ने यह फैसला ले लिया है, इंडिया गठबंधन का यह सबसे बड़ा हथियार कुंद हो गया है। विपक्ष को अब नया नैरेटिव बनाना होगा, जो समय की कमी और एनडीए की रणनीति के सामने मुश्किल होगा। - यादव-मुस्लिम (M-Y) गठजोड़ पर असर:
आरजेडी का कोर वोट बैंक यादव (14.26%) और मुस्लिम (17.7%) समुदाय हैं। हालांकि, जनगणना का फैसला OBC और EBC समुदायों को अधिक प्रभावित करेगा, जो आरजेडी के लिए भी महत्वपूर्ण हैं। अगर एनडीए EBC और गैर-यादव OBC (जैसे कुशवाहा, कोइरी) को अपने पक्ष में कर लेता है, तो आरजेडी का वोट बैंक कमजोर हो सकता है। मुस्लिम वोटरों के बीच भी जनगणना का असर पड़ सकता है, क्योंकि कुछ मुस्लिम जातियां (जैसे पसमांदा) सामाजिक-आर्थिक लाभ की उम्मीद में एनडीए की ओर झुक सकती हैं। - कांग्रेस की दुविधा:
कांग्रेस बिहार में आरजेडी की जूनियर पार्टनर है, और उसका प्रभाव सवर्ण और कुछ दलित वोटरों तक सीमित है। राहुल गांधी ने पहले बिहार के जातीय सर्वे को ‘फर्जी’ बताया था, लेकिन अब केंद्र के फैसले का समर्थन कर रहे हैं। यह दोहरा रुख कांग्रेस की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचा सकता है। साथ ही, कांग्रेस के पास बिहार में मजबूत स्थानीय नेतृत्व की कमी है, जिससे वह इस फैसले का सियासी फायदा नहीं उठा पाएगी। - सामाजिक ध्रुवीकरण का खतरा:
अगर एनडीए जनगणना को OBC और दलित समुदायों के लिए कल्याणकारी नीतियों से जोड़कर पेश करता है, तो आरजेडी और कांग्रेस को ‘सवर्ण-विरोधी’ या ‘यादव-केंद्रित’ होने का टैग लग सकता है। इससे गैर-यादव OBC और EBC वोटर, जो पहले आरजेडी को समर्थन देते थे, एनडीए की ओर खिसक सकते हैं।
बिहार चुनाव पर जातीय जनगणना का प्रभाव
बिहार की 243 विधानसभा सीटों के लिए 122 सीटों का बहुमत चाहिए। 2020 के चुनाव में एनडीए ने 125 सीटें (बीजेपी: 74, जेडीयू: 43, लोजपा: 1, हम: 4) जीती थीं, जबकि महागठबंधन (आरजेडी: 75, कांग्रेस: 19, वाम दल: 16) को 110 सीटें मिली थीं। 2024 के उपचुनावों में एनडीए ने चारों सीटें जीतकर अपनी मजबूती दिखाई। जातीय जनगणना का फैसला एनडीए को 150+ सीटों का लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकता है, खासकर अगर वह EBC, गैर-यादव OBC, और दलित वोटरों को एकजुट कर ले। दूसरी ओर, आरजेडी और कांग्रेस को अपने M-Y गठजोड़ को बचाने और गैर-यादव OBC को अपने साथ रखने के लिए नया नैरेटिव बनाना होगा। अगर विपक्ष यह मौका चूकता है, तो उसकी सीटें 100 से नीचे जा सकती हैं।
केंद्र सरकार का जातीय जनगणना का फैसला बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में एनडीए के लिए सियासी सोना साबित हो सकता है। यह कदम बीजेपी और सहयोगी दलों को OBC, EBC, और दलित वोटरों को लुभाने का मौका देता है, जो बिहार की 80% से अधिक आबादी का प्रतिनिधित्व करते हैं। नीतीश कुमार की EBC साख, चिराग पासवान की दलित अपील, और बीजेपी की सवर्ण-OBC जोड़ने की रणनीति इस फैसले से और मजबूत होगी। दूसरी ओर, आरजेडी और कांग्रेस के लिए यह फैसला उनके सामाजिक न्याय के एजेंडे को कमजोर करता है, और उन्हें नए मुद्दे और रणनीति की तलाश करनी होगी। बिहार की सियासत में यह फैसला निश्चित रूप से एक टर्निंग पॉइंट बन सकता है, और अब नजरें इस बात पर हैं कि कौन इस मौके को बेहतर भुना पाता है।