CAA….ये शब्द सुनते ही दिल्ली के शाहीनबाग में हुए उस प्रदर्शन और उन दंगों की याद आ जाती है। विपक्षी, अलगाववादी सहित अर्बन नक्सल्स द्वारा इस अधिनियम को लेकर एक समूह के लोगों को ऐसा बरगला दिया कि वो जान लेने-देने और उतारू हो गए. इस हिंसा में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. CAA के खिलाफ यह प्रदर्शन दिसंबर 2019 से लेकर तबतक चला जबतक मार्च 2020 में कोरोना के चलते लॉकडाउन नहीं लगा दिया गया. सड़कों में धरना दे रहे उन लोगों में ज्यादातर मुसलमान थे जिन्हे ये कहकर धोखे में रखा गया कि केंद्र सरकार उनकी नागरिकता छीन रही है जबकि नागरिक संशोधन अधिनियम छीनने वाला नहीं बल्कि सिटिजनशिप देने वाला एक्ट है. जो उन हिन्दू, सिख, ईसाई, बोध, यानी पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता देता है जो अपने देश में प्रताड़ना सह रहे हैं और भारत में पनाह चाहते हैं.
दिल्ली सहित देशभर में हुए प्रदर्शन के 4 साल बाद केंद्र सरकार ने एक बार फिर से CAA को लेकर बड़ी बात कह दी है. गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के अनुसार इसी साल 26 जनवरी से पहले-पहले CAA के नियम-कायदों को अधिसूचित कर दिया जाएगा। गृह मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया को बताया कि ‘हम जल्द CAA के नियम जारी करने वाले हैं. नियम जारी होने के बाद, कानून लागू किया जा सकता है और पात्र लोगों को भारत की नागरिकता दी जा सकती है.
केंद्र सरकार के इस फैसले से बंगलदेश, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आए हिन्दू-सिख शरणार्थियों को बड़ी राहत मिलेगी। आंकड़ों के अनुसार 2014 तक पाकिस्तान-अफ़ग़ानिस्तान से 32 हजार लोग भारत आए हैं जिन्हे नागरिकता की दरकार है.
अब सबसे बड़ा सवाल और डर इसी बात का है कि कहीं फिर से 2019 की तरह CAA को लेकर लोग सड़कों में धरना देने न बैठ जाएं, कहीं वो लोग फिर से आम लोगों को बरगलाने में न जुट जाएं कि सरकार किसी खास समुदाय की नागरिकता छीन रही है. ऐसे में हम आज आपको बताने वाले हैं कि आखिर CAA क्या है, इससे किसको फायदा होगा, और भारत की नागरिकता किसे छोड़नी पड़ेगी।
CAA किसे नागरिकता देता है?
CAA के तहत 21 दिसंबर 2014 से पहले पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बांग्लादेश से धार्मिक आधार पर प्रताड़ित होकर भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, ईसाई और पारसी समुदाय के लोगों को नागरिकता दी जाएगी। इन तीन देशों के लोग ही भारत की नागरिकता के योग्य हैं. दूसरे देश या इनके अलावा किसी दूसरे समुदाय के लोगों का CAA का लाभ नहीं मिलता है.
क्या CAA किसी की नागरिकता छीन लेगा
यही सवाल तो बवाल मचाए हुए था, जिसका जवाब जानते हुए भी मुस्लिम समुदाय के लोगों को बरगलाया गया कि अगर वो कागज नहीं दिखाएंगे तो उन्हें देश छोड़ना पड़ जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं है. संविधान के तहत भारतीयों को भारत की नागरिकता का अधिकार है और CAA या कोई भी कानून उनसे यह हक़ नहीं छीन सकता।
CAA विदेशियों को निकालने के बारे में नहीं है। इसका गैरकानूनी शरणार्थियों को निकालने से लेना-देना नहीं है। ऐसे शरणार्थियों के लिए विदेशी अधिनियम 1946 और पासपोर्ट अधिनियम 1920 पहले से लागू हैं। दोनों कानूनों के तहत किसी भी देश या धर्म के विदेशियों का भारत में प्रवेश या निष्कासन किया जाता है।
फ़िलहाल के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत 9 राज्यों के 30 से अधिक जिला मजिस्ट्रेट और गृह सचिवों को नागरिकता देने के अधिकार दिए गए हैं. राज्य हैं- गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब, यूपी, दिल्ली, महाराष्ट्र।
CAA है क्या?
भारतीय नागरिक कानून 1955 में बदलाव के लिए 2016 में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 (CAB) संसद में पेश किया गया. यह लोकसभा में 10 दिसंबर 2019 को और अगले दिन राज्यसभा में पास हुआ था. 12 दिसंबर को मंजूरी मिलते ही CAA कानून बन गया. भारतीय नागरिकता कानून 1955 में अबतक 6 बार 1986, 1992, 2003, 2005, 2015 और 2019 में संशोधित हो चुका है. पहले भारतीय नागरिकता लेने के लिए भारत में 11 साल रहना जरूरी था लेकिन नए कानून में ये अवधि घटाकर 6 साल कर दी गई.
गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने दिसंबर 2021 में राज्यसभा में बताया था कि वर्ष 2018 से 2021 के दौरान पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान से आए कुल 3117 अल्पसंख्यकों को भारत की नागरिकता दी गई. वहीं गृह मंत्रालय की 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार, अप्रैल-दिसंबर 2021 में कुल 1,414 विदेशियों को भारतीय नागरिकता दी गई।
अब सरकार लोकसभा चुनाव से पहले CAA को पूरी तरह से लागू करने जा रही है. डर यही है कि कहीं फिर से वही आज़ादी, कागज नहीं दिखाएंगे, भारत तेरे टुकड़े होंगे जैसे नारे सुनने को न मिलने लग जाएं, कहीं फिर से शहीनबाग के घरों में कांच की बोतलों को इकठ्ठा न किया जाने लगा हो और कहीं फिर से सड़कों पर उपद्रव की तैयारियां शुरू न कर दी गई हों.
CAA Explained In Hindi