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CV Raman Jayanti 2023: नोबेल विजेता एशिया के पहले वैज्ञानिक CV रमन का हुआ था जन्म, जानें इतिहास

Nobel Prize WinnerNobel Prize Winner

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भारत की भूमि ने इतिहास में कई महान वैज्ञानिकों को जन्म दिया है जैसे आर्यभट्ट, ब्रह्मगुप्त, भास्कर आदि, मगर आज हम बात करेंगे ऐसे वैज्ञानिक की जिन्होंने गुलामी के अंधकार में जकड़े भारत का नाम सारे विश्व में रोशन किया। विज्ञान के क्षेत्र में 1930 में नोबेल प्राइज जीतने वाले पहले एशियाई और भारतीय वैज्ञानिक चंद्रशेखर वेंकट रमन (Chandrashekhar Venkat Raman) की. C V Raman का जन्म 7 नवंबर 1888 को तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के तिरूचिरापल्ली (Tiruchirapalli ) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम चंद्रशेखर अय्यर और माता का नाम पार्वती अम्मल था। पिता कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर थे।

बचपन से ही थे मेधावी

कहते हैं कि पूत के पाँव पालने में ही दिख जाते हैं। बालक रमन बचपन में ही खेल खेल में विज्ञान के प्रयोग किया करते थे। रमन ने महज 12 वर्ष की उम्र में 10वीं कक्षा में टॉप किया था। साल 1903 में मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में दाखिला ले लिया। जहाँ पर इनकी प्रतिभा को देखकर कॉलेज प्रशासन द्वारा रमन को कक्षओं में उपस्थिति से छूट मिल गई। सर सी वी रमन ने भौतिकी में गोल्ड मैडल के साथ स्नातक परीक्षा पास की। 1907 में प्रसिडेंसी कॉलेज से ही मास्टर्स डिग्री हासिल की। उनके प्रोफेसर ने उन्हें विदेश से आगे की पढ़ाई की सलाह दी मगर ख़राब तबियत के चलते उन्हें यह विचार त्यागना पड़ा। मास्टर्स डिग्री के बाद वित्त विभाग में अकाउंटेंट के रूप में कार्य किया।

C V Raman के शोधकार्य

साल 1917 में वित्त विभाग की नौकरी से इस्तीफा देने के बाद कलकत्ता कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त हुए। 18 वर्ष की उम्र में ही रमन ने प्रकाश के व्यव्हार पर आधारित अपना पहला रिसर्च पेपर लिखा जिसे पढ़ कर ब्रिटेन के जाने माने साइंटिस्ट बैरन रिले बहुत प्रभावित हुए और रमन को प्रोफेसर समझ बैठे। ऑप्टिक्स के क्षेत्र में रमन के योगदान को देखते हुए उन्हें 1924 में “रॉयल सोसाइटी ऑफ़ लंदन ” (Royal Society Of London) का सदस्य बनाया गया। जो अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी।

रमन प्रभाव (Raman Effect) की खोज

विश्वविद्यालयों की कोंग्रेस अधिवेशन में 1921 में रमन को ऑक्सफ़ोर्ड(Oxford) जाने का मौका मिला।वहां से समुद्र मार्ग से लौटते समय पानी के नीले रंग ने रमन को प्रकाश की प्रकृति की खोज के लिए प्रेरित किया। कलकत्ता विश्वविद्यालय पहुंच कर रमन ने सात साल तक वस्तुओं में प्रकाश के बिखरने का अध्ययन किया और अंतत उस खोज पर पहुंचे जिसे पूरी दुनिया उनके नाम पर “रमन प्रभाव (Raman Effect)’ के नाम से जानती है। रमन प्रभाव के मुताबिक “जब प्रकाश की किरण धूल मुक्त रासायनिक माध्यम से गुजरती है तो दूसरी तरफ प्रकाश का एक छोटा अंश उभरता है इस प्रकाश की ज्यादातर तरंगदैधर्य अपरिवर्तित रहती है, हालांकि प्रकाश का एक छोटा सा अंश मूल प्रकाश की तरंगदैधर्य की तुलना में अलग तरंगदैधर्य वाला होता है और उसकी उपस्थिति रमन प्रभाव का नतीजा है। उन्होंने पाया की जब सूर्य का प्रकाश समुद्र पर पड़ता है तो प्रकाश के प्रकीर्णन के समय नीले रंग को छोड़ कर सभी रंग अवशोषित होकर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं लेकिन नीला रंग अपरिवर्तित रहता है इस वजह से समुद्र का रंग नीला दिखाई देता है।

C V Raman को मिले प्राइज

C V Raman का योगदान

1948 में सेवानिवृत्ति के बाद बैंगलोर में रमन शोध संसथान की स्थापना की। रमन ने सदैव अपने विद्यार्थियों को विज्ञान के नए-नए प्रयोगों के लिए प्रेरित किया। रमन के प्रयोगो ने कैंसर के उपचार में सहायता की। चन्द्रमा पर पानी की खोज में रमन स्पेक्ट्रोस्कोपी ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

निधन

दुनिया में भारत के विज्ञान का लोहा मनवाने वाले विज्ञान के इस मेधावी छात्र ने 21 नवंबर 1970 को 82 वर्ष की उम्र में बैंगलोर में अपनी अंतिम सांसे ली।

भारत सरकार ने देश में विज्ञान के प्रति छात्रों का रुझान बढ़ाने के लिए 28 फरवरी अर्थात रमन प्रभाव की खोज के दिन को “राष्ट्रीय विज्ञानं दिवस (National Science Day) के रूप में घोषित कर C V Raman को सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

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