लेख: जयराम शुक्ल | किसी शहर के चरित्र को जनआंकाक्षाओं के अनुरूप गढ़ना सरल नहीं। मुश्किल तो यह कि सबकी अपनी-अपनी आकांक्षाएं व परिभाषाएं होती हैं। लेकिन जब सर्वस्पर्शी और सर्वग्राही विकास की बात चलती है तो रीवा आज पूरे प्रदेश में एक प्रकल्प की तरह प्रस्तुत होता है। नि: संदेह इस प्रकल्प के प्रणेता यशस्वी उप मुख्यमंत्री राजेन्द्र शुक्ल हैं। इस शहर में आठ सितंबर को संयोग की त्रिवेणी के दर्शन होंगे। गणेशोत्सव के पवित्र वातावरण में जहां विन्ध्य के एक विलक्षण सपूत को ब्रह्मशक्ति द्वारा ब्रह्मरत्न सम्मान से विभूषित किया जा रहा है वहीं उसी के हाथों एक और फ्लाईओवर(सिरमौर चौराहा एक्सटेंशन) का लोकार्पण किया जा रहा है।
सपने देखना और उसे यथार्थ के धरातल पर उतारकर मूर्त रूप देना, राजनीति में यह दुर्लभ गुण और पुरुषार्थ किसी में देखना है तो राजेन्द्र शुक्ल के अतिरिक्त विरले ही राजनेता ढूंढे मिलेंगे। एक युवावय विधायक से उप मुख्यमंत्री पद तक की यात्रा के पीछे यदि सबसे महत्वपूर्ण कारक है तो मेरी समझ में यही है।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भाजपा में जिस धैर्य, विनम्रता और सर्व समावेशी, सर्वस्पर्शी दृष्टि की अपेक्षा की जाती है श्री शुक्ल इस कसौटी पर खरे उतरते हैं। एक बार की घटना का मुझे ध्यान है। मध्यप्रदेश भवन में कैलाश विजयवर्गीय(तब भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष) अपने मित्रों से राजेन्द्र जी का परिचय दे रहे थे कि ये ‘लो प्रोफाइल’ में रहने वाले मध्यप्रदेश के बड़े कद के नेता हैं, मुझसे भी बड़े। यह विजयवर्गीय जी का बड़प्पन और स्नेह था, वे जो कह रहे थे उसका भाव कदाचित ‘चने के झाड़’ में चढ़ाने वाला नहीं था।
2013 के विधानसभा चुनाव हुए तब राजेन्द्र शुक्ल प्रदेश के ऊर्जा मंत्री थे। तब एक बड़ा मुद्दा था बिजली का। स्थिति कुछ ऐसी थी कि सरकार और संगठन की बैठकों में सिर्फ एक बात उठती – यदि हम चौबीसों घंटे बिजली नहीं दे पाए तो क्षेत्र में जाकर वोट मांगना मुश्किल होगा। हम लोगों ने बिजली को लेकर कांग्रेस का बहुत मजाक बनाया है यदि व्यवस्था ठीक न हुई तो हम सब मजाक बन जाएंगे।
मध्यप्रदेश में बिजली की व्यवस्था को दुरुस्त करने की चुनौती ऊर्जा मंत्री के तौरपर राजेन्द्र शुक्ल को मिली। चौबीस घंटे बिजली देने की योजना पर काम हुआ और इस मिशन का नाम दिया गया ‘अटल ज्योति योजना’। उन दिनों मध्यप्रदेश में निजी बिजली घरों में काम चल रहे थे और सरकारी क्षेत्र के बिजली घरों की उत्पादन क्षमता सीमित थी।
बिजली का कैसे प्रबंध हुआ यह राजेन्द्र शुक्ल और उनके ऊर्जा विशेषज्ञों की टीम जाने लेकिन मध्यप्रदेश के लोगों ने रोशनी का मोल जाना। सिंचाई के लिए खेतों में पंप निर्बाध गति से हरहराते रहे। बच्चों की पढ़ाई में बिजली बाधा नहीं बनी, गर्मी और उमस रात की नींद हराम न कर सकी।
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत के पीछे ‘लाड़ली लक्ष्मी’ की कृपा तो रही ही लेकिन शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में ‘अटल ज्योति योजना’ ने पंख लगा दिए। इस उपलब्धि के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने ऊर्जा मंत्री के तौर पर राजेन्द्र शुक्ल को दिल्ली बुलाकर सम्मानित किया। और मीडिया के मित्रों को सिहोर के शेरपुर का वह किसान सम्मेलन भी ध्यान में होगा जब प्रधानमंत्री ने ऊर्जा क्षेत्र में मध्यप्रदेश की उपलब्धियों का बखान करते हुए कहा था कि आज हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि ऊर्जा प्रबंधन के मामले में मध्यप्रदेश गुजरात से आगे निकल गया। विनय की प्रतिमूर्ति राजेन्द्र जी ने इसका श्रेय मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और ऊर्जा विभाग की कर्मठ टीम को दिया।
मुझे ध्यान है, एक बार देश के मंत्रियों के प्रतिनिधिमंडल में राजेन्द्र शुक्ल जर्मनी गए। डेस्टिनेशन में यूरोप के की अन्य देश भी थे। लौटने पर मैंने उनसे यूरोप यात्रा के संस्मरण और अनुभव जानने चाहे। मुझे उम्मीद थी कि वे स्विट्जरलैंड, फिनलैंड की आबोहवा, पेरिस के एफिल टावर या जर्मनी के बर्लिन की साफ-सुथरी सड़कों, अल्पस पर्वत के सैर-सपाटे पर कुछ दिलचस्प बताएंगे। पर ये क्या..? उन्होंने बिना वक्त गंवाए कहा- शुक्ला जी कमाल है इडिनबर्ग में बिजली की खेती होती है। बिजली की खेती..! लोग अपने घर की छतों में सोलर पैनल से बिजली पैदा करते हैं, जरूरत के अलावा उसे सरकार को बेंच देते हैं।
उन्होंने मुझे नेट मीटरिंग के बारे में समझाते हुए कहां – विश्व का भविष्य अब सौर ऊर्जा पर ही है इसी दिशा में आगे बढ़ना होगा। दो महीने बाद पता चला कि रीवा के उजागर बदवाल पहाड़ और पठार की पंद्रह सौ से ज्यादा हेक्टेयर भूमि पर सौर ऊर्जा संयंत्र की तैयारी चल रही है। एक उपक्रम गठित हुआ रीवा अल्ट्रा मेगा सोलर प्रोजेक्ट। और दो साल के भीतर जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसका वर्चुअल लोकार्पण किया तो हमने जाना कि यह विश्व के सबसे बड़े सोलर एनर्जी काम्प्लेक्स में से एक है।
यहां साढ़े सात सौ मेगावाट बिजली पैदा होती है जो ग्रिड से होते हुए दिल्ली के मेट्रो तक पहुंचती है। रीवा अल्ट्रा मेगा की उत्पादित बिजली का टैरिफ विश्व में सबसे कम है, शायद डेढ़ रुपए की एक यूनिट। इसकी प्रोजेक्ट को लेकर एकबार पाकिस्तान की संसद में बहस हुई कि क्या भारत के रीवा में सूरज ज्यादा रोशनी देता है कि वे सस्ती बिजली बना रहे हैं और हम अबतक इसके बारे में सोच भी नहीं पाए।
राजेन्द्र शुक्ल ने समय समय पर वन, पर्यावरण, आवास, उद्योग, खनिज जैसे मंत्रालयों का दायित्व संभाला। जब जिस विभाग में रहे कर्मचारियों, अधिकारियों ने उसे स्वर्णकाल माना। एक जानकारी लोगों को शायद कम ही है। 2008 में ये वन मंत्री बने। तब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था। उन्होंने अधिकारियों से पूछा पन्ना को बाघों से कैसे आबाद किया जाए। और फिर उन्होंने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन के समक्ष खुद की साख को दांव पर लगाते हुए कैप्टिव टाइगर्स को वाइल्ड बनाने की मंजूरी ली।
पन्ना आज फिर बाघों से आबाद है। कैप्टिव को वाइल्ड बनाने की यह घटना विश्वभर के वन्य प्रेमियों के लिए विलक्षण है क्योंकि ऐसा पहली बार हुआ था। सफेद बाघ रीवा की पहचान रहा। 1976 में गोविंदगढ़ का आखिरी सफेद बाघ भी नहीं रहा। हम सब रीवा में सफेद बाघ का ख्याली पुलाव ही पकाते रहें। वन मंत्री रहते हुए विन्ध्य में एक बार फिर सफेद बाघ लाने की पहल की। आज मुकुन्दपुर के ह्वाइट टाइगर सफारी का नाम दुनिया में है। राजेन्द्र जी ने जिन विभागों की कमान संभाली वहां अपनी छाप छोड़ी, नवाचार किए और इतिहास रचा।
2018 का चुनाव भाजपा के लिए संघातिक रहा। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बन गई। यह धैर्य और कार्यकर्ताओं को जोड़े रखने का समय था। पूरे प्रदेश में सिर्फ विन्ध्य ही ऐसा था जो भाजपा संगठन की रीढ़ बनकर तना रहा। 30 में से 24 सीटें भाजपा के खाते में आईं। स्वाभाविक तौर पर यहां के नेता राजेंद्र शुक्ल थे। उनके प्रभार के जिलों सिंगरौली, शहडोल व गृह जिले रीवा में भाजपा ने क्लीन स्वीप किया, मतलब कांग्रेस शून्य। दो साल बाद कांग्रेस की सरकार गिरी। शिवराज सिंह के नेतृत्व में भाजपा की सरकार गठित हुई।
देशभर के राजनीतिक प्रेक्षक हैरत में रह गए कि राजेन्द्र शुक्ल को मंत्रिमंडल में नहीं लिया गया। यहां तक कि विपक्ष भी हतप्रभ सा रहा। राजेन्द्र शुक्ल अपनी चिर-परिचित विनम्रता के साथ रहे आए। पत्रकार जब पूछते तो उनका जवाब होता – बहुत रह लिया मंत्री, जिनकी वजह से सरकार बनी उनका मंत्री बनना ज्यादा जरूरी है। उल्टा पूछते – क्या विधायक की हैसियत किसी मंत्री से कम होती है? बहरहाल मीडिया और राजनीतिक लोगों को पता था कि ऐसा क्यों हुआ..? इस दुरभिसंधि के किरदार कौन लोग थे? खैर राजेन्द्र शुक्ल को कोई फर्क नहीं पड़ा और रीवा के लोगों को यह अहसास तक न हुआ कि वे मंत्री नहीं हैं।
2023 के चुनाव में भाजपा को मिली प्रचंड सफलता के पीछे भी विन्ध्यविजय है। पिछली बार से एक सीट ज्यादा 25 सीटों पर परचम लहरा। भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को विन्ध्य के राजेन्द्र शुक्ल की महत्ता समझ आई। इस समझ के पीछे वे दो साल महत्वपूर्ण है जिन्हें राजेन्द्र जी ने धैर्यपूर्वक बिताए। जब मुख्यमंत्री पद पर मोहन यादव के साथ उप मुख्यमंत्री पद के लिए राजेन्द्र शुक्ल का नाम घोषित हुआ तो प्रदेश के लोगों को आश्चर्य नहीं हुआ, लगभग हर जुबान से यही निकला कि श्री शुक्ल डिजर्व करते हैं।
राजेन्द्र शुक्ल आज प्रदेश के स्वास्थ्य व चिकित्सा शिक्षा मंत्री हैं। यह उत्कट सेवा का क्षेत्र है। छह महीने के भीतर ही ‘स्वस्थ्य प्रदेश स्वस्थ जन’ का रोड मैप तैयार हो गया। 40000 से ज्यादा रिक्तियों पर भर्ती आरंभ। पंचायत स्तर तक स्वास्थ्य सेवाएं पहुंचे इसके जतन शुरू। हर जिले में मेडिकल कालेज खुले युद्धस्तर पर काम सामने। राजेन्द्र शुक्ल 100 प्रतिशत परिणाम देने के लिए जूझते हैं, इसलिए आज उन्हें विजन, मिशन और एक्शन का पर्याय कहा जाता है।
राजेन्द्र जी की कर्मठता को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने एक नजर में ही भांप लिया था। भाजपा के पितृ पुरुष कुशाभाऊ ठाकरे की एक्सरे वाली नजर इनपर पड़ी और पितृवत स्नेह व दुलार के साथ भाजपा में ले आए और 1998 में कांग्रेस के किले रीवा के रणांगन में उतार दिया। पहला चुनाव हारने के बाद उससे सबक लेकर 2004 से जो शुरूआत की वह निरंतर, निर्बाध जारी है। विन्ध्य में कई यशस्वी नेता हुए जिन्हें एक दूसरे की लकीर मिटाने के लिए भी जाना जाता है लेकिन राजेन्द्र शुक्ल इस राजनीति में बिल्कुल नासमझ हैं।
न वे कोई लकीर मिटाते न खींचते बल्कि सपनों को यथार्थ के धरातल पर उतारने में यकीन करते हैं। उदाहरण सामने है- रीवा का हवाई अड्डा, सुपर स्पेशियलिटी, टाईगर सफारी, सोलर पार्क, फ्लाईओवर्स, विश्वस्तरीय टनल, पत्रकारिता का विश्वविद्यालय, स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स, इको पार्क और भी बहुत कुछ जो रीवा शहर को महानगर के कायांतरण के लिए अनिवार्य है।