ब्लैक आउट। पहलगांव में आंतकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के 9 आंतकी ठिकानों पर हवाई हमला किया है। जिसमें 100 से अधिक आंतकियों के मारे जाने की खबर है। भारत हर स्थित से निपटने के लिए देश भर में तैयारी कर रहा है। मार्कड्रील एवं ब्लैकआउट उसी तैयारी का हिस्सा है। जिसके तहत लोगो को बचाव संबंधी जानकारी दी जा रही है।
1971 में हुआ था ब्लैक आउट
अतीत पर जाए तो 1971 में ब्लैक आउट तब हुआ था जब भारत-पाकिस्तान के बीच भंयकर युद्ध हुआ था। ऐसा बताया जाता है कि उस समय पुलिस के अधिकारी ब्लैक आउट का पालन करवाने के लिए सड़क पर उतरते थे। बुलेट से अधिकारी जबकि इंस्पेक्टर और आरक्षक साइकिल से घूम कर इसकी जानकारी देते थें।
घरों के चिराग भी ढ़क जाते थें
बताते है कि 1971 में जब ब्लैक आउठ की घोषणा होती थी तो घरों में लोग चिमनी, लालटेन की रोशनी को पूरी तरह से ढ़क देते थें। इसके लिए घर में खिड़कियों पर गीले बोरे या मोटे कंबल लटका दिए जाते थे, ताकि कहीं से भी रोशनी बाहर न जा सकें। लोग टार्च तक का प्रयोग नहीं करते थे। शहरी क्षेत्रों में अगर लाइट लगी है तो दुकानदार बल्ब में कागज लगाकर रखते थें। जिससे रोशनी न फैल सकें।
ब्लैक आउट का यह है मक्सद
ब्लैक आउट को लेकर बताया जाता है कि अगर दुश्मन हमला करता है तो ब्लैक आउट से निशाना लगाने में समस्या आएगी, यानि कि अंधेरा होने से उसे सही जानकारी नही मिल पाएगी और गुप अंधेरा होने से वह सटीक निशाना नही लगा पाएगा। देश भर में 7 मई को ब्लैक आउट की घोषणा की गई है। जिससे लोगों को यह पता चल सके कि जब सायरन बजेगा तो इससे डरे नही बल्कि घर की लाइटें बद करके अंधेरा कर दें, ताकि बाहर से कही भी लाइट नजर न आ सकें। बात दें कि यह कोई युद्ध की घोषणा नही हुई है बल्कि ब्लैक आउट का महज रिहर्सल है।