Jammu Kashmir News : जम्मू-कश्मीर में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की सरकार द्वारा प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी (जेईआई) से जुड़े 215 स्कूलों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के फैसले ने राजनीतिक भूचाल ला दिया है। कई राजनीतिक दलों ने इस कदम की कड़ी आलोचना की है और इसे वापस लेने की मांग की है, जबकि भाजपा ने इसे राष्ट्रहित में एक ज़रूरी कदम बताया है। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ़्ती ने इस फैसले को लेकर सत्तारूढ़ नेशनल कॉन्फ्रेंस पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा, “यह बेहद दुखद है कि नेशनल कॉन्फ्रेंस भाजपा के एजेंडे को लागू कर रही है और एक स्थापित शिक्षा व्यवस्था को बर्बादी के कगार पर ले जा रही है।”
“यह दिल्ली के इशारे पर किया गया | Jammu Kashmir News
महबूबा ने सवाल उठाया कि जब उपराज्यपाल के शासनकाल में इन स्कूलों का अधिग्रहण नहीं किया गया, तो अब निर्वाचित सरकार में ऐसा क्यों हो रहा है? उन्होंने शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू से अपील की कि वह अपने लोगों के हक में खड़े हों और इस फैसले को रद्द करें। उन्होंने कहा, “यह जेईआई या फलाह-ए-आम ट्रस्ट का मामला नहीं है। आज यह दिल्ली के इशारे पर किया गया, कल कुछ और करने को कहा जाएगा।’ जमात-ए-इस्लामी के सदस्यों द्वारा गठित न्याय एवं विकास मोर्चा (जेडीएफ) ने इस कदम को ‘प्रशासनिक ज्यादती’ और ‘नेशनल कॉन्फ्रेंस के विश्वासघात की याद दिलाने वाला’ बताया।
‘शर्म और शर्म ने नए मायने पा लिए हैं | Jammu Kashmir News
जेडीएफ और कुछ अन्य संगठनों ने दावा किया कि इन स्कूलों पर ‘प्रतिबंध’ लगा दिया गया है, लेकिन शिक्षा मंत्री सकीना इट्टू ने इसे खारिज कर दिया और कहा कि स्कूलों का स्थायी रूप से अधिग्रहण नहीं किया जा रहा है। उन्होंने आश्वासन दिया, ‘नई प्रबंधन समितियों के गठन तक सरकार इन स्कूलों की देखभाल करेगी। उसके बाद इन्हें नई समितियों को सौंप दिया जाएगा।’ पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के प्रमुख और हंदवाड़ा के विधायक सज्जाद लोन ने भी नेशनल कॉन्फ्रेंस पर निशाना साधा। उन्होंने ‘एक्स’ पर लिखा, ‘जम्मू-कश्मीर सरकार ने 215 स्कूलों पर जबरन कब्ज़ा कर लिया। यह निर्वाचित सरकार का आदेश है। इस सरकार में शर्म और शर्म ने नए मायने पा लिए हैं।’
‘निर्वाचित सरकार ने ऐसा क्यों किया?’
सज्जाद लोन ने नेशनल कॉन्फ्रेंस पर निशाना साधते हुए कहा कि यह सरकार भाजपा की ‘ए-टीम’ है और पहले भी ऐसी गतिविधियों में शामिल रही है। ‘अपनी पार्टी’ के प्रमुख अल्ताफ बुखारी ने भी इस फैसले को ‘बेहद खेदजनक’ बताया। उन्होंने कहा कि 2019 में जमात-ए-इस्लामी पर प्रतिबंध के बावजूद उपराज्यपाल प्रशासन ने इन स्कूलों का प्रबंधन अपने हाथ में नहीं लिया, लेकिन चुनी हुई सरकार ने ऐसा क्यों किया? बुखारी ने सुझाव दिया कि स्कूलों का प्रबंधन अपने हाथ में लेने के बजाय, सरकार को सख्त नियम बनाकर छात्रों का भविष्य सुरक्षित करना चाहिए था। उन्होंने मांग की कि सरकार इस फैसले को तुरंत रद्द करे और स्कूलों की निगरानी के लिए एक नियामक प्राधिकरण बनाए।
भाजपा ने इसे राष्ट्रहित में एक कदम बताया | Jammu Kashmir News
दूसरी ओर, भाजपा के जम्मू-कश्मीर प्रवक्ता अल्ताफ ठाकुर ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया। उन्होंने इसे ‘राष्ट्रहित में एक आवश्यक हस्तक्षेप’ बताया और कहा कि इससे हजारों छात्रों को अलगाववादी विचारधाराओं से बचाकर एक सकारात्मक और सुरक्षित शैक्षणिक माहौल मिलेगा। कुल मिलाकर, जम्मू-कश्मीर सरकार के इस फ़ैसले ने राजनीतिक गलियारों में तीखी बहस छेड़ दी है, जहाँ विपक्षी दल इसे शिक्षा व्यवस्था और स्थानीय लोगों के हितों पर हमला बता रहे हैं, वहीं भाजपा इसे राष्ट्रहित में उठाया गया क़दम बता रही है। सबकी नज़रें इस बात पर टिकी हैं कि यह मामला आगे क्या मोड़ लेता है।