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Bipin Rawat Birth Anniversary | जनरल बिपिन रावत जो चीन को भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे

Bipin Rawat Birth Anniversary | जनरल बिपिन रावत जो चीन को भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे।

Bipin Rawat Birth Anniversary | जनरल बिपिन रावत जो चीन को भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे।

Bipin Rawat Biography In Hindi: कारगिल युद्ध के बाद बनी सुब्रह्मण्यम कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था, तीनों सेनाओं में तालमेल की कमी है, इसे दूर करने के लिए कमेटी ने चीफ ऑफ डिफेन्स स्टॉफ के पद की सिफ़ारिश की, जिससे सेनाओं में बेहतरीन समन्वय बनाया जा सके, लेकिन राजनैतिक इच्छाशक्तियों की कमी की वजह से पूर्ववर्ती सरकारें हिम्मत नहीं कर पाईं, लेकिन 2019 के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नारेंद्र मोदी ने लाल किले से , इस पद को सृजन किए जाने की घोषणा की और पहले सीडीएस बनाए गए जनरल बिपिन रावत, जनरल रावत सीडीएस बनने से पहले देश के थलसेना अध्यक्ष भी थे, सीडीएस का पद भारतीय सैन्य सुधारों की दृष्टि से एक बहुत बड़ा कदम था, आइए जानते हैं जनरल रावत के प्रारंभिक जिंदगी और सैन्य कैरियर के बारे में।

जन्म और परिवार

जनरल बिपिन रावत का जन्म 16 मार्च 1958 को उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल सैंजी गाँव में हुआ था, उनको सेना से जुड़ाव विरासत में मिला था, उनके दादा भी सेना में थे, पिता लक्ष्मण सिंह रावत और दो चाचा भी सेना में थे, उनके पिता लक्ष्मण सिंह रावत तो सेना में लेफ्टिनेंट जनरल और उपथलसेनाअध्यक्ष भी थे।

इसी विरासत को आगे बढ़ाते हुए वह 1978 में इंडियन मिलेट्री अकडेमी से पासआउट हुए और टॉप रहने वाले ऑफिसर्स को मिलने वाला ‘स्वार्ड्स ऑफ ऑनर’ भी मिला। उन्होंने डिफेंस सर्विसेज स्टाफ कॉलेज वेलिंगटन और यूनाइटेड स्टेट्स आर्मी कमांड एंड जनरल स्टाफ कॉलेज फोर्ट लीवनवर्थ कंसास से हायर कमांड कोर्स से स्नातक भी कर रखा था।

इसके अलावा वह डिफेन्स स्टीडीज से एम. फिल. भी थे, उन्होंने मेरठ के चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से ‘मिलिट्री और मीडिया- सामरिक अध्ययन’ पर शोध कार्य करके पीएचडी की डिग्री भी प्राप्त की थी।

सैन्य कैरियर का प्रारंभ

इंडियन मिलेट्री अकडेमी से पास आउट होने के बाद, उन्हें पाँच गोरखा रायफल में कमीशंड किया गया, उनके पिता भी उसी यूनिट में थे। अपने सैन्य कैरियर में उन्होंने पूर्वोत्तर और जम्मू-कश्मीर दोनों प्रमुख क्षेत्रों में उन्होंने अपनी सेवा दी, और वहाँ कई अभियानों को उन्होंने लीड भी किया। पूरे दस सालों तक भारतीय सीमाओं में उनकी तैनाती रही, जहाँ उन्होंने बहुत ही बेहतरीन कार्य किए।

जनरल बिपिन रावत जो चीन को भारत की सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे

1987 के भारत-चीन झड़प के समय वह पूर्वोत्तर में सुमडोरोंग चू घाटी में पीपल्स लिबरेशन आर्मी के विरुद्ध बतौर कर्नल तैनात थे और उस दल का नेतृत्व किया था जिसने चीनी सेना से युद्ध करके उन्हें पीछे लौटने को मजबूर किया था।

26 जनवरी 2001 को उन्हें विशिष्ट सेना मेडल दिया गया, सेना के प्रति अपने कर्तव्य और समर्पण के कारण ही 2005 में उन्हें सेना मेडल दिया गया, कश्मीर में तैनाती के दौरान सेना के बेहतरीन कमांड्स के कारण उन्हें युद्ध सेवा मेडल भी मिला था।

उन्होंने कांगो में यू. एन. पीस मिशन के लिए भी अपनी सेवाएं दी। 2015 में जब इंडियन आर्मी ने म्यांमार में उग्रवादियों के विरुद्ध जब सर्जिकल स्ट्राइक किया था, तो उन अभियानों के कमांडिंग ऑफिसर जनरल बिपिन रावत ही थे, जिसके बाद उन्हें 26 जनवरी 2016 में उत्तम युद्ध सेवा मेडल दिया गया था। 1 जनवरी 2016 को उन्हें भारतीय सेना के दक्षिणी कमांड का चीफ बनाया गया।

सितंबर में वह इंडियन आर्मी के वाइस चीफ बने और जनरल दलबीर सिंह सुहाग के सेवानृवित्ति के बाद 31 दिसंबर 2016 को उन्हें भारतीय थलसेना अध्यक्ष नियुक्त किया गया।

भारत के थलसेना अध्यक्ष

थलसेना अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने सेना को बहुत ही बेहतरीन तरीके से लीड किया, इसी दौरान उनका एक बयान काफी सुर्खियों में रहा जब उन्होंने कहा था भारत को दो मोर्चों पर युद्ध के लिए तैयार रहना चाहिए। वह चीन को भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा मानते थे, एक कार्यक्रम में उनके द्वारा दिए गए इस बयान की चीन ने काफी तीखी आलोचना की थी।

थलसेनाअध्यक्ष रहते ही इंडियन आर्मी ने आतंकवादियों के विरुद्ध बहुत सफल अभियान किए थे। कश्मीर में विरोध प्रदर्शनों के नाम पर अलगाववादियों के उकसावे पर युवाओं द्वारा इंडियन आर्मी और जम्मू-कश्मीर पुलिस पर पत्थर फेंके जाते थे, जिसे स्थानीय भाषा में कन्नीजंग कहा जाता था।

जिसके बाद सुरक्षाबलों द्वारा पैलेट गन का प्रयोग किया जाता था, हालांकि इसके कारण काफी राजनैतिक विवाद भी हो जाते थे, लेकिन जनरल रावत ने आर्मी की इन कार्यवाइयों का बचाव किया, जनरल रावत के कार्यकाल के समय से ही पत्थरबाजी में बहुत कमी आई।

भारत के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टॉफ

31 दिसंबर 2019 को जनरल रावत बतौर थलसेना अध्यक्ष सेवानिवृत्ति हुए, बतौर थलसेना अध्यक्ष उनका कार्यकाल पूरे तीन साल का था, उसके अगले ही दिन 1 जनवरी को 2020 को उन्हें भारत का पहला चीफ ऑफ डिफेन्स स्टॉफ बनाया गया।

सीडीएस बनने के बाद जनरल रावत ने तीनों सेनाओं के मध्य बेहतरीन तालमेल बनाने के लिए, उन्हें तकनीकी रूप से बेहतरीन करने के लिए और आधुनिक बनाने के लिए उन्होंने कई सुधार योजनाओं को प्रारंभ किया, एक तरह से देखा जाए तो भारतीय सेना में सुधार की नींव रखने वाले जनरल रावत ही थे।

दुखद मृत्यु

लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण रहा 8 दिसंबर 2021 में एक प्लेन क्रैश दुर्घटना में जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत सहित कुल 14 लोगों का दुखद निधन हो गया, देश के लिए यह दुर्घटना बहुत दुर्भाग्यपूर्ण रही, इसके साथ सैन्य सुधारों के प्रयास कार्यों को भी धक्का लगा, जिसकी कभी क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती।

जनरल बिपिन रावत का संबंध विंध्यक्षेत्र से था, उनकी पत्नी मधुलिका रावत शहडोल के सोहागपुर घराने से संबंध रखती थीं, मधुलिका रावत के पिता मृगेंद्र सिंह कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे और विधायक थे।

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