Musician Chitragupta: दिल का दिया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में…

Biography of Musician Chitragupta

न्याजिया बेग़म
Biography of Musician Chitragupta: दिल का दिया जलाके गया ये कौन मेरी तन्हाई में… दगा दगा वई वई, इक रात में दो दो चांद, लगी छुटे न, कोई बता दे दिल है जहां, छेड़ो न मेरी ज़ुल्फ़ें, चांद जाने कहां खो गया…, अंखियन संग अखियां लागी आज.., एक बात है कहने की आंखों से कहने दो … आजा रे मेरे प्यार के राही…., चल उड़ जा री पंछी ,ये पर्वतों के दायरे …, क्या आपको ये सब गाने अपनी ओर नहीं खींच रहे हैं पर क्या इन सब गीतों की फिल्मों के नाम आपको याद हैं नहीं न ,या हो सकता है आप के पसंदीदा गानों की फेहरिस्त में ये गीत भी शामिल हों पर आपने कभी गौर नहीं किया किया कि इनकी धुन किसने बनाई है तो हम आपको बता दे कि इस तरह का दिलकश संगीत रचते थे चित्रगुप्त श्रीवास्तव जो न केवल फिल्मों को नई ऊंचाई देता था बल्कि बी या सी ग्रेड फिल्मों के गीतों को भी ए ग्रेड फिल्मों के जैसा यादगार बना देता थे और शायद स्वर सम्राज्ञी लता मंगेशकर की संगीत यात्रा चित्रगुप्त के संगीत के बिना अधूरी है क्योंकि उनके संगीत निर्देशन में लता जी लगभग “240 गाने गाए हैं।

साठ के दशक में अपनी धुनों को सदाबहार नग़्मो में संजोते चित्रगुप्त बिहार से ताल्लुक रखते थे और इस लिए भी उन्हें ज़्यादा इज़्ज़त मिलती थी क्योंकि वो बहुत पढ़े लिखे थे , उन्होंने अर्थशास्त्र से एम ए करने के बाद पण्डित शिवप्रसाद त्रिपाठी से संगीत की शिक्षा ली थी और भातखण्डे संगीत विद्यालय, लखनऊ से भी जुड़े थे , उन्होंने हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत, पश्चिमी संगीत और उनकी बारीकियों को सीखा था, साथ ही वे एक बेहतरीन हारमोनियम वादक भी थे। उन्होंने ज़्यादातर गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी के गीतों को संगीतबद्ध किया और भोजपुरी सिनेमा की शुरुआती गीतों में उन्होंने अपने संगीत के ज़रिए एक सुंदर पृष्ठभूमि तैयार की थी जिसमें गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो का संगीत आज भी याद किया जाता है इसके अलावा मगही, गुजराती और पंजाबी फिल्मों में 1,500 से ज़्यादा गानों को संगीतबद्ध किया ।

पर पहले संगीत निर्देशक बनने के बारे में उन्होंने सोचा ही नहीं था वो तो माया नगरी यानी मुंबई आए थे पार्श्वगायक बनने जहां उनकी मुलाकात कुछ संगीत निर्देशकों से हुई पर बतौर गायक मौका मिलना आसान नहीं था लेकिन किसी तरह कोरस में गाने का मौका मिल गया ,वो बड़े मायूस हो गए तभी एक भोला भाला मासूम नौजवान उनके पास आया और उनसे उनका परिचय पूछा ,इसके बाद चित्रगुप्त जी ने भी उनका नाम पता पूछा तो पता चला कि वो कोटला सुल्तान सिंह, मजीठा, जिला अमृतसर, पंजाब से आए मोहम्मद रफी हैं ये एक गायक और संगीतकार बनने वाली दो महान हस्तियों का फिल्मी दुनियां में पहला क़दम और एक दूसरे से पहली मुलाक़ात थी ।

एक बात और हम उनके बारे में बता दें कि वो कभी बुरे शब्द या अपशब्द नहीं बोलते थे जिसकी वजह से एक बार वो अंजान का लिखा भोजपुरी गीत पढ़ रहे थे तो उनके मुँ से कोई बुरा शब्द निकल गया जिसे बदलवाने के लिए उन्होंने अंजान जी को इशारे से कहा कि दूसरी लाइन में बाएं से तीसरा शब्द बदल दीजिए , वो बहोत नए नए आविष्कार करते थे जैसे अगर गद्य की भी वो धुन बनाते तो पहले कविता की तरह उसकी पंक्तियों में फेर बदल करके उसमें रस भरते और माधुर्य की मिसाल बना देते उदाहरण के लिए अंगारे फिल्म का गीत, ज़रा हंस लूं डर लगता है …,आप सुन सकते हैं जिसे गीत की शक्ल में लाने के लिए तर्ज़ और साज़ों की खनक को निहायत खूबसूरती से संजोया गया है यहां तक कि उनकी बनाई आधी रात के बाद फिल्म का गीत ,मेरा दिल बहारों का वो फूल है जिसे गुलिस्तां की नज़र लग गई, की धुन बड़ी प्यारी लगती है लेकिन आप उसके बोलों को ग़ौर से सुनेंगे तो वो एक कहानी जैसा गीत है , इसी तरह उन्होंने ग़ज़लों, क़व्वालियों, लोकगीतों, भजनों, लोरी और मुजरा में भी दिलकश धुनों से अपनी अलग छाप छोड़ी हैं । 1998 में प्रदर्शित ‘चंडाल’ आपके संगीत निर्देशन में आई आखिरी फिल्म थी।
14 जनवरी 1991 को अपनी मंज़िल ए मकसूद पर पहुंच कर उन्होंने चैन की सांस ली और इस फनी दुनिया को अलविदा कह गए पर वो अपने बेमिसाल संगीत के ज़रिए अपने चाहने वालों के दिलों में हमेशा जावेदा रहेंगे।

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