Site icon SHABD SANCHI

Bihar Politics: बिहार की राजनीति की कमान संभालेंगे युवा, इन नेताओं के इर्द गिर्द घूमती है बिहार की सियासत

Bihar Politics : बिहार में पुराने लोगो की राजनीति के दिन अब पूरे होते दिख रहे हैं। पहले बुजुर्गों को परिपक्वता की नजरों से देखा जाता था। उनसे भूल-चूक या गैर बराबरी की उम्मीद कोई नहीं करता था। बुजुर्ग राजनीतिज्ञों का अनुभव उनकी योग्यता का पैमाना था। अब सियासी पैरामीटर बदल रहे हैं। बीजेपी ने इस बदलाव की शुरुआत की थी। बीजेपी ने 75 साल के पॉलिटिशियन को रिटायर करने का चलन 2014 के बाद शुरू किया। लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को संरक्षक मंडल में बीजेपी ने बिठा दिया। दूसरे दलों में स्वाभाविक रूप से यह परिवर्तन आया है।

प्रशांत किशोर को छोड़कर सबको विरासत में मिली राजनीति। Bihar Politics

बिहार की बात करें तो लालू यादव के चारा घोटाले में जेल जानें के बाद तेजस्वी यादव ने पार्टी की बागडोर संभाल ली है। लालू यादव अब सिर्फ नाम मात्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह गए हैं। लोजपा नेता और केंद्रीय मंत्री रहे राम विलास पासवान ने भी बेटे चिराग पासवान को पार्टी की कमान सौंप दी थी। प्रशांत किशोर ने भी राजनीति में कदम रख दिया है। जनसुराज्य यात्रा ने अब पार्टी का रूप ले लिया है।

रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान बिहार का सबसे चर्चित युवा चेहरा।

लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के संस्थापक रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान भी जेपी के शिष्यों की छत्रछाया के बाद राजनीति में अपने लिए अवसर तलाश रहे हैं। चिराग की पार्टी दलित राजनीति की पिच पर मजबूत खिलाड़ी मानी जाती है और उनकी रणनीति बिहार गौरव की भावनात्मक जमीन पर ऊंची राजनीतिक इमारत खड़ी करने की है। चिराग के पिता रामविलास भी बिहार के कद्दावर नेता थे। लेकिन वे कभी सरकार का इंजन नहीं बन पाए।वे लालू यादव और नीतीश कुमार से सीनियर थे।

मछुआरा समुदाय के मसीहा हैं मुकेश सहनी। Bihar Politics

मुकेश सहनी पिछड़े वर्ग, निषाद यानी मछुआरा समुदाय की राजनीति भी करते हैं. उनकी राजनीति का मुख्य मुद्दा मछुआरा समुदाय के लिए आरक्षण का प्रावधान है. मुकेश सहनी भी युवा चेहरा हैं, वे सेट डिजाइनर से राजनीति में आए हैं. उनकी पार्टी भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में भी रही है. 2020 के बिहार चुनाव में मुकेश सहनी की पार्टी के चार विधायक जीते थे जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए थे. वे लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राजद के नेतृत्व वाले महागठबंधन में शामिल हो गए थे।

लालू के बड़े बेटे तेजस्वी ने संभाली अपने पिता की राजनीतिक विरासत।Bihar Politics

जिस आरजेडी से तेजस्वी यादव सीएम उम्मीदवार हैं, उसका गठन जेपी के शिष्य और उनके पिता लालू यादव ने किया था। आरजेडी की स्थापना के समय से ही ओबीसी और अल्पसंख्यक पार्टी के कोर वोटर रहे हैं। मुस्लिम और यादव (एमवाई) आरजेडी के कोर वोटर माने जाते हैं, लेकिन तेजस्वी यादव की रणनीति अब जनाधार बढ़ाने की है।

चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एंट्री ने बिहार की राजनीति में हलचल मचा दी है।

जिस राजनीतिक राह पर प्रशांत किशोर आगे बढ़ते दिख रहे हैं, वह भी कहीं न कहीं जेपी के सिद्धांतों और बातों के इर्द-गिर्द ही नजर आती है। जेपी उन नेताओं में से हैं, जिन्होंने राइट टू रिकॉल की मांग को लेकर आवाज उठाई थी। खुद सीएम नीतीश कुमार भी राइट टू रिकॉल की वकालत कर चुके हैं, लेकिन इस दिशा में कभी कुछ नहीं हुआ। अब जन सुराज पार्टी के लॉन्च से पहले पीके ने न सिर्फ राइट टू रिकॉल की बात की है, बल्कि यह भी बताया है कि वह इस व्यवस्था को कैसे लागू करेंगे।

Read Also : http://Jammu Kashmir Election Result : जम्मू-कश्मीर में 5 नॉमिनेट विधायक पलटेंगे चुनाव के नतीजे

Exit mobile version