सोमवार को सदन में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर चर्चा के दौरान नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने संविधान के सहारे प्रधानमंत्री मोदी को जमकर घेरा। इसी बीच उन्होंने हिन्दुओ पर एक ऐसा बयान दिया जिससे सदन का माहौल गर्म हो गया. अब राहुल गाँधी को एक और झटका लगा है, उनके भाषण के कुछ हिस्से को रिकॉर्ड से हटा दिया गया है. आपको बता दे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राहुल गाँधी के बयान का विरोध अपनी जगह से खड़े होकर किया था।
किन बयानों को रिकॉर्ड से हटाया गया
राहुल गांधी के हिन्दुओ पर दिए गए बयान को रिकॉर्ड से हटा दिया गया साथ हि अग्निवीर को प्रधानमंत्री से जोड़ने वाले बयान को भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया. उन्होंने सत्ता पक्ष के हिन्दू न होने का दावा किया था, इसे भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया। साथ हि उन्होंने बीजेपी के हिन्दू न होने का दावा किया था उसे भी रिकॉर्ड से हटा दिया गया.
प्रधानमंत्री का जवाब
जब सदन में राहुल गाँधी ने हिन्दुओ पर बयान दिया तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी जगह खड़े होकर विरोध जताते हुए कहा,” पूरे हिन्दू समाज को हिंसक कहना काफी गंभीर बात है.” आपको बताते चले राहुल के इस बयान पर गृहमंत्री अमितशाह ने विरोध जताते हुए कहा ,” विपक्ष ने जो बयान दिया है , उन्हें इसके लिए माफी मांगनी चाहिए।
सदन से भाषण को रिकॉर्ड से हटाने के क्या हैं नियम
सदन के अंदर नियमित तौर पर नेताओ के कुछ शब्द या कुछ लाइन को हटा दिया जाता है. सदन में किस नेता का कौन सा रिकार्ड हटाना है, इसका निर्णय सदन के पीठासीन अधिकारी करते है. यह प्रावधान यह तय करता है कि सदन के अंदर मिली बोलने की स्वतंत्रता का दुरुपयोग न हो. आपको बता दे संसद की रूलबुक में कुछ ऐसे शब्द है जिन्हे सदन के भीतर बोलने पर मनाही है.
लोकसभा में ‘ प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिसनेस ‘ के नियम 380 ( ” निष्कासन “) में कहा गया है कि ,अगर अध्यक्ष को ऐसा लगता है कि सदन में दिया गया बयान ‘ अशोभनीय , अपमानजनक , असंसदीय ‘ हैं , तब अध्यक्ष अपने विवेक का इस्तेमाल कर उस भाषण को रिकॉर्ड से हटाने का आदेश दे सकता है.
वहीं नियम 381 के मुताबित सदन की कार्यवाही के जिस हिस्से को हटाया गया है , उसे तारांकन द्वारा चिन्हित किया जाना चाहिए और कार्यवाही में एक व्याख्यातम फुटनोट डाल देना चाहिए। ताकि यह पता चल सकेंगा कि अध्यक्ष के आदेश पर वह रिकॉर्ड हटाया गया है.
हालाँकि संविधान के अनुच्छेद 105( 2 ) के तहत, भारत की संसद में कही गयी कोई भी बात के लिए कोई भी सांसद कोर्ट के प्रति उत्तारदायी नहीं होता है. अर्थात सांसद के किसी भी बयान को कोई भी कोर्ट में चुनौती नहीं दे सकता।