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Bhojshala Survey Report: जानें राजा भोज की भोजशाला का इतिहास

Bhojshala

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मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने 11 मार्च को ASI (Archaeological Survey of India) को भोजशाला मंदिर के परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया है. भोजशाला मंदिर मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित है जिसे मुस्लिम पक्ष कमाल मौलाना मस्जिद कहता है. हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले वागदेवी ( सरस्वती ) का मंदिर हुआ करता था. आइए इस पूरे विवाद को समझने के लिए पहले भोजशाला का इतिहास जानते हैं.

History of Bhojshala, Bhojshala Ka Itihas, Bhojshala Kahan Hai, Bhojshala Men Kiski Murti Hai, Kamal Maulana Mosque: मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने 11 मार्च को आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया (ASI) को भोजशाला मंदिर के परिसर का वैज्ञानिक सर्वे करने का आदेश दिया है. यह मध्यप्रदेश के धार जिले में स्थित एक विवादित स्मारक है जिसे मुस्लिम पक्ष कमाल मौलाना मस्जिद कहता है. हिंदू पक्ष का दावा है कि यहां पहले राजा भोज का बनवाया हुआ वागदेवी ( सरस्वती ) की का मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर मस्जिद बना दिया गया.

भोजशाला मंदिर को लेकर पहले भी मामला ASI पहुंचा था, जिसके बाद सर्वे हुआ और अप्रैल 2003 में एक आदेश भी जारी हुआ था. इसके अनुसार हिंदुओं को हर मंगलवार मंदिर भोजशाला परिसर के अंदर पूजा करने की अनुमति दी गई, जबकि मुसलमानों को हर शुक्रवार यहां नमाज अदा करने की अनुमति दी गई. परिसर के हक़ को लेकर धार्मिक संगठनों में मतभेद होता रहता है.

भोजशाला मंदिर का इतिहास

धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइड के अनुसार भोजशाला मंदिर को राजा भोज ने बनवाया था. राजा भोज परमार वंश के सबसे पराक्रमी राजा थे. उन्होंने 1000 से 1055 ईस्वी तक राज किया था. इस दौरान उन्होंने 1034 ईस्वी में एक महाविद्यालय की स्थापना की, जिसे बाद में भोजशाला के नाम से जाना गया. दूर-दूर से छात्र यहां पढ़ने आया करते थे. इसी महाविद्यालय का में देवी सरस्वती का मंदिर भी बना था. कहा जाता है कि यह मंदिर भव्य था. सरस्वती मंदिर का उल्लेख शाही कवि मदन ने अपने नाटक कोकरपुरमंजरी में किया है.

अलाउद्दीन खिलजी ने मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवा दिया

14वीं सदी में मंदिर को मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया. बताया जाता है कि 1305 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी ने भोजशाला पर हमला कर दिया था. जिसके बाद से इस जगह का नक्शा ही बदल दिया गया. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 1401 ईस्वी में दिलावर खान गौरी ने भोजशाला के एक हिस्से में मस्जिद बनवा दी. 19वीं शताब्दी में एक बार फिर इस जगह बड़ी घटना घटी. दरअसल उस समय खुदाई के दौरान देवी सरस्वती की प्रतिमा मिली थी. उस प्रतिमा को अंग्रेज अपने साथ ले गए और फ़िलहाल वो लंदन के संग्रहालय में है. प्रतिमा को भारत वापस लाए जाने की मांग की जा रही है.

क्या कहती है ASI की रिपोर्ट?

आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया भोपाल की रिपोर्ट में कहा गया है कि मस्जिद के निर्माण में मूल सरस्वती मंदिर की संरचना के प्रमाण मिलते हैं. धार जिले की ऑफिशियल वेबसाइड पर कहा गया है कि विवादित स्थल में ऐसी टाइल मिली हैं जिनमें संस्कृत और प्राकृत भाषा का साहित्यिक रचनाएं गढ़ी हैं. इन शिलालेख में जो अक्षर दिखाई देते हैं वो 11वीं 12वीं शताब्दी ईस्वी की हैं. परिसर में ऐसी बातें भी लिखी मिली हैं जो हिंदू संगठन के दावे को मजबूत करते हैं. यहां पाई गई एक रचना में परमार राजाओं उदयादित्य और नरवर्मन की प्रशंसा की गई है जो राजा भोज के तुरंत बाद उत्तराधिकारी बने. दूसरी रचना में कहा गया है कि उदयादित्य ने स्तंभ पर शिलालेख को गढ़वाया था.

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