‘भय बिनु होय ना प्रीत’ का अर्थ और महत्त्व भी जानें

Operation Sindoor के सफल होने के बाद DGMO Press Briefing हुई. इस ब्रीफिंग में एयर मार्शल भारती ने तुलसीदास रचित रामचरितमानस की एक चौपाई दोहराई। उन्होंने कहा ‘विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।’ इस चौपाई के बाद यह लाइने सोशल मीडिया में ट्रेंड करने लगीं। वो लोग जल उठे जो रामचरितमानस के विरोधी हैं. खैर यह पोस्ट रामचरितमानस के विरोधियों के लिए नहीं है. आज हम आपको इस चौपाई के महत्त्व के बारे में बताएंगे और इसका अर्थ समझाएगे।

‘भय बिनु होय ना प्रीत’ पूरा श्लोक

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।

भय बिनु होय ना प्रीत कहां लिखा है

यह पंक्ति सुंदरकांड, दोहा 57 के बाद की चौपाई में आती है.

भय बिनु होय ना प्रीत’ का अर्थ

विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत। बोले राम सकोप तब, भय बिनु होय न प्रीति।

यह उस घटना की बात है जब श्री राम लंका तक पहुँचने के लिए समुद्र से स्थान मांग रहे थे. लेकिन तीन दिन बीत जाने के बाद बीच जब समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तब श्री राम क्रोधित हो उठे थे.

प्रभु श्रीराम समुद्र के चरित्र को देखकर ये समझ गए कि अब आग्रह से काम नहीं चलेगा, बल्कि भय से काम होगा। तभी श्रीराम ने अपने महा-अग्निपुंज-शर का संधान किया, जिससे समुद्र के अन्दर ऐसी आग लग गई कि उसमें वास करने वाले जीव-जन्तु जलने लगे। तब समुद्र प्रभु श्रीराम के समक्ष प्रकट होकर हाथ में अनेक बहुमूल्य रत्नों का उपहार ले अपनी रक्षा के लिए याचना करने लगा और कहने लगा कि वह पंच महाभूतों में एक होने के कारण जड़ है। अतः श्रीराम ने शस्त्र उठाकर उसे उचित सीख दी। रामायण की कथा से हमें यह सीख मिलती है कि यदि आग्रह से जब काम न बने तो फिर भय से काम निकाला जाता है।

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